गुरुवार, 19 जुलाई 2007

खबर तूने क्या किया

राह चलते एक दिन
एक खबर हमसे आ टकराई
खबर का हाल काफी बुरा था
सीने में छह इंच का छुरा था
हमने पूछा अरे खबर कहां चली
बोली अखबार के दफ्तर की गली
हम चकराये
उसकी मूर्खता पर झल्लाए
हमने कहा-
अखबार का दफ्तर छोड़ो
खबरिया चैनलों का पता लो
और सीधे स्टूडियो पहुंच जाओ
हमने मन में सोचा
कि इस खबर में ड्रामे के पूरे चांस हैं।
मुंह में आह और सीने में खंजर
चैनल के लिए बेहद मुफीद है ये मंजर
इस बार हमने उसे समझाया-
तुम्हारी तो किस्मत ही बदल जाएगी
हर घर में बस तुम ही नजर आओगी
कुछ समझी
रिकार्ड तोड़ टीआरपी पाओगी
रातोंरात हिट हो जाओगी
देर मत करो वर्ना पछताओगी।
लेकिन वह बेचारी तो नासमझ निकली
हमारी नेक सलाह उसके भेजे में नहीं घुस पाई
शायद इसीलिये...
उसे यह बात समझ में नहीं आई
उसने अपनी लाल दहकती आंखें तरेरीं
और अखबार के दफ्तर की तरफ हो ली
अगले दिन जब हमने अखबार उठाया
तो खबर को महज सिंगल कॉलम में पाया
उसकी नासमझी पर हमें बेहद तरस आया
सचमुच जिसे चैनल वाले घंटों तान सकते थे
उसने सिंगल कॉलम में छपकर
अपनी अहमियत को खुद ही घटाया।

 
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