शनिवार, 1 मार्च 2008

तुम्हारा नाम क्या है? ...(5)

[गतांक से आगे] ठीक है ! मैं कल ही बॉस से बात करती हूं। दोनों छुट्टी कर लेते हैं। वैसे मुझे नहीं लगता छुट्टी मिलने में कोई प्राब्लम आएगी।
हां, वो तो है। देख लो बात करके। प्रिया ने उदासीन लहजे में जवाब दिया।
हर दिन की तरह अगले दिन भी नेहा और प्रिया सुबह आफिस के लिये तैयार होने में जुटी थीं। हमेशा की तरह तैयार होने में देरी के लिये प्रिया ने नेहा की डांट खायी। हमेशा की तरह प्रिया ने उसकी बात एक कान से सुनी और दूसरे कान से निकाल दी।
अरे, इस लड़की ने तो मेरी जिंदगी का कबाड़ा कर दिया है। जब देखो आर्डर झाड़ती रहती है। एक पल को चैन नहीं लेने देती। आफिस में तो हैं ही सब बॉस बनने के लिये और कमरे पर आकर यह मेरी बॉस बन जाती है। जल्दी करो-जल्दी करो!! पता नहीं कौन सा तीर मारना है जल्दी पहुंचकर।
ज्यादा से ज्यादा वो रोहन यही ताना मारेगा न कि आज फिर लेट हो। बॉस के पास थोड़े चला जाएगा। अगर उसने ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश की न तो मैं उसे एक ही दिन में सीधा कर दूंगी। तू चिंता मत कर और मुझे अपने तरीके से तैयार होने दे। प्रिया बोलती जा रही थी और नेहा सुने जा रही थी।
नेहा ने प्रिया को घूर कर देखा और प्रिया खिलखिलाकर हंस दी। नेहा के होठों पर भी मुस्कुराहट तैर गई।
अच्छा अब कमरा बंद करो और चलो। बकवास मत करो।
ठीक है बबा ! चल तो रही हूं। क्यों किसी और का गुस्सा मेरे ऊपर निकालने में जुटी हो। यह कहते हुये प्रिया की आखों में शरारत साफ नजर आ रही थी।
प्रिया का इशारा नेहा अच्छी तरह समझ गई थी। शायद इसीलिये उसने खामोशी ओढ़ ली।
बस आई, दोनों उस पर चढ़ गईं। सीट भी मिल गई। लेकिन नेहा ने एक शब्द भी नहीं बोला। प्रिया भी शायद उसे टोकने की हिम्मत नहीं कर पाई।
नेहा की यह चुप्पी ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी।
अगले बस स्टाप पर वो लड़का एक बार फिर उसकी नजरों के सामने था। उस पर नजर पड़ते ही नेहा का तो जैसे खून खौल गया।
उस लड़के को देखते ही नेहा का ब्लडप्रेशर बढ़ जाता था।
हालांकि अभी तक उसने नेहा से कभी कोई ऐसी बात नहीं कही थी जिससे उस पर बदमाश या लफंगा लड़का होने का लेबल लगाया जा सके।
'आज आप लेट हो गईं?' उस लड़के ने नेहा की सीट पर आकर पूछा।
नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया।
प्रिया की नजरों दोनों को चुपके से घूर रहीं थी। शायद उसे इंतजार था नेहा के कुछ बोलने का।
आपने कोई जवाब नहीं दिया....
अच्छा आज तो अपना नाम बता दीजिये...
अच्छा मैं अपना नाम तो बता ही देता हूं....
मेरा नाम है मनीष और आपका...?
'मैंने तुमसे कहा था न कोई नाम नहीं है मेरा।' नेहा ने चुप्पी तोड़ी।
नाराज क्यों होती हो। नाम ही तो पूछा है। कोई गाली तो नहीं दे दी।
क्यों मेरा नाम जानना चाहते हो?
बताओ क्यों जानना चाहते हो मेरा नाम?
जवाब दो...
अब उस लड़के ने खामोशी ओढ़ ली।
अब चुप क्यों हो? बताओ क्यों पूछना चाहते हो मेरा नाम? नेहा ने खीझकर अपना सवाल रिपीट किया।
अभी नहीं, पहले वादा करो तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगी।
दिमाग खराब हैं क्या?
क्यों चलूंगी तुम्हारे घर....तुम कोई मेरे रिश्तेदार लगते हो?
नहीं, मैंने कहा था न, मैं तुम्हें अपने मम्मी-पापा से मिलाना चाहता हूं।
किसलिए? मुझे न तुममे कोई इंट्रेस्ट है औऱ न ही तुम्हारे मम्मी-पापा में। बस मेरा पीछ छोड़ दो।
इतना कहकर नेहा ने फिर खामोशी ओढ़ ली।
बस में बैठे सारे लोगों की निगाहें नेहा की तरफ ही टिकी थीं।
रोज आने-जाने वाले यात्री तो नेहा और उस लड़के से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके थे।
इसके बावजूद आज तक किसी ने उस लड़के को एक शब्द नहीं बोला।
शायद बस यात्रियों के लिये भी वो दोनों टाइम पास का साधन बन चुके थे। (जारी...)

 
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