सोमवार, 2 जुलाई 2007

अनकही

जब मैं चुप था
तब वो चुप थे
जब मैं बोला तो बोल पडे
कुछ उसने सुना
कुछ हमने कहा
पर बात अभी कुछ रह ही गई.

ना रह उजाला जीवन में
अब लंबी-लंबी रातें हैं
जागाहूँ लंबी नींदों से
पर रात अभी कुछ रह ही गई.

उठता है दर्द सा सीने में
आंखों में है कुछ तूफां सा
दिन-रात रह मयखानों में
पर प्यास अभी कुछ रह ही गई.(1997)

2 comments:

exaption ने कहा…

This is one of the very touching compositions i ever came across.

kamal lohan ने कहा…

excellent, its inspired me to doing something special

 
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