tag:blogger.com,1999:blog-83432092563612027872024-03-19T03:46:13.084-07:00आशियाना Aashiyanaकुछ कहने से बेहतर है कुछ किया जाए, जिंदा रहने से बेहतर है जिया जाए...Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.comBlogger80125tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-74662753071454369312015-06-25T07:33:00.004-07:002015-06-25T07:33:47.900-07:00दिल्ली पुलिस बहुत बिजी है!!!<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">स्कूल से कॉलेज तक कितनी लड़कियों को धोखा दिया?</span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">पत्नी को धोखा देकर दूसरी के चक्कर में कब-कब पड़ा? </span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">अब तक कितनी बार अपनी पत्नी से मारपीट की? </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br />पत्नी से किये गये वायदों में कौन-कौन से नहीं निभाये?<br />राजनीति में क्यों आया, वही काम करता जो कर रहा था?<br />राजनीति करनी ही थी, तो भाजपा ज्वाइन करता, ये पार्टी क्यों ज्वाइन की?<br />पड़ोसी के साथ कितनी बार कहासुनी और मारपीट हुई?<br />पड़ोसी के लड़के को पीटकर कितनी बार मामला थाने तक पहुंचा?<br />क्लास में सहपाठियों के बस्तों से कितनी पेंसिल चुराईं?<br />किन-किन स्कूलों के सीसीटीवी फुटेज से चोरी के सबूत मिल सकते हैं?<br />स्कूल से कॉलेज तक कहीं कई फर्जी डिग्री तो नहीं?<br />स्कूल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कितनी बार क्लॉस बंक की?<br />परीक्षा के दौरान कौन-कौन से पेपर में नकल मारी?<br />अब तक पढ़ाई करके पास हुआ है या हमेशा नकल करके?<br />देशभक्त पार्टी से ताल्लुक रखने वाले कितने नेताओं की मानहानि की?<br />अब तक कितने स्टिंग में पकड़ा गया?<br />कितने लोगों से उधार लिया और कितनों का नहीं लौटाया?<br />कहां रहता है, वहां रहता है तो वहीं क्यों रहता है?<br />तीन-चार कमरे का फ्लैट क्यों खरीदा, एक कमरे का क्यों नहीं?<br />कितने घर हैं, कितनी जमीन-जायदाद है?<br />कौन सी कार है, बड़ी कार की क्या जरूरत मारुति 800 से नहीं चल सकता?<br />कार की क्या जरूरत है, मोटरसाइकिल से नहीं चल सकता?<br />मोटरसाइकिल की क्या जरूरत है, साइकिल से नहीं चल सकता?<br />साइकिल की क्या जरूरत है, पैदल नहीं चल सकता, भगवान ने पैर नहीं दिए?<br />विधायक क्यों बना, ऎसे भी तो जनता की सेवा कर सकता था?<br />चुनाव क्यों लड़ा, बिना चुनाव लड़े भी तो मंत्री बन सकता था?<br />चुनाव जीता क्यों, हारने के बाद भी तो मंत्री बन सकता था?<br />फर्जी डिग्री क्यों बनवाई, बिना डिग्री के भी तो मंत्री बन सकता था?<br />इतना पैसा कहां से आया, जरूर चोरी की होगी?<br />कहां-कहां और किस-किस तरह उसे फसाने के चांसेज हैं?<br />किसी मामलें में जेल भिजवाने की कितनी संभावना है?<br />कितना दबाव डालने पर पार्टी छोड़कर राष्ट्रभक्त पार्टी में आ सकता है?<br />कौन सी नस है जिसे दबाने से केजरीवाल का दुश्मन बन सकता है?<br />क्या-क्या करने पर मोदी जी, राजनाथ जी और जंग साहब से शाबासी मिल सकती है?<br />******************************************<br />इत्ता सारा इन्वेस्टीगेशन करना, वो भी एक दो नहीं 67 लोगों का...<br />प्रति व्यक्ति औसतन 12 से 15 डिग्री की सच्चाई पता लगाना<br />और वो सब अलग जो विधायक या मंत्री नहीं है, उन्हें भी किसी न किसी मामले में फंसाना।<br />ये सब कोई आसान काम है क्या?<br />वाकई दिल्ली पुलिस के पास बहुत काम है।<br />कौन कहता है दिल्ली पुलिस काम नहीं करती?</span>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-60764513279777821772015-06-23T08:59:00.004-07:002015-06-23T08:59:32.492-07:00रिपोर्टर- हिंदू रक्षक संवादहिंदू रक्षक- हिंदू धर्म दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है।<br />
रिपोर्टर- तो फिर आप लोगों को दूसरे धर्मों से इतना डर क्यों लगता है?<br />
हिंदू रक्षक- क्या मतलब?<br />
रिपोर्टर- मतलब ये क्या हिंदू धर्म इस्लाम और ईसाई को गाली देने से ही मजबूत होगा?<br />
हिंदू रक्षक- नहीं हमारा धर्म तो पहले से ही मजबूत है।<br />
रिपोर्टर- तो फिर इस्लाम और ईसाई धर्म से आपको इतनी मिर्ची क्यों लगती है?<br />
हिंदू रक्षक- हमें भला मिर्ची क्यों लगेगी, हिंदू धर्म तो सबसे महान है।<br />
रिपोर्टर- तो फिर आपको हमेशा ये डर क्यों लगा रहता है ईसाई और मुस्लिम हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा लेंगे?<br />
हिंदू रक्षक- हम भला क्यों डरने लगे?<br />
रिपोर्टर- इस्लाम और इसाई धर्म में कुछ तो खास होगा कि हिंदू अपना धर्म छोड़कर उनको अपना लेते हैं?<br />
हिंदू रक्षक- वो सब भटके हुए लोग हैं।<br />
रिपोर्टर- इस्लाम और ईसाई धर्म छोड़कर तो कोई हिंदू नहीं बनता, मतलब आपके धर्म में ही कुछ खामी है?<br />
हिंदू रक्षक- कहा ना वो भटके हुए लोग हैं हम उनकी 'घर वापसी' कराएंगे।<br />
रिपोर्टर- लेकिन 'घर वापसी' की नौबत ही क्यों आती है, आप अपने लोगों को संभाल कर क्यों नहीं रखते?<br />
हिंदू रक्षक- अरे आप समझते नहीं हैं, हिंदू धर्म लोगों को आजादी देता है उसी का फायदा उठाकर वो धर्म बदल लेते हैं।<br />
रिपोर्टर- अच्छा, तो दूसरे धर्म आजादी नहीं देते, इसीलिए उनके लोग धर्म परिवर्तन नहीं करते?<br />
हिंदू रक्षक- हां, वही तो...। हिंदू धर्म सबसे लोकतांत्रिक है।<br />
रिपोर्टर- लेकिन आपके बयानों से तो यही लगता है कि लोकतंत्र में आपका जरा भी विश्वास नहीं है?<br />
हिंदू रक्षक- नहीं नहीं, ये सब हमारे खिलाफ दुष्प्रचार है।<br />
रिपोर्टर- अच्छा ये बताएं कि आप तो इस देश में बहुसंख्यक हैं, फिर भी आपको अल्पसंख्यकों से इतना खतरा क्यों महसूस होता है?<br />
हिंदू रक्षक- वो क्या है कुछ हिंदू हैं जिन्हें अपने धर्म की महानता का अहसास नहीं है वो अल्पसंख्यकों को लगे लगाकर घूमते हैं, इसी से सारी गड़बड़ होती है।<br />
रिपोर्टर- आखिर वो हैं कौन लोग?<br />
हिंदू रक्षक- वामपंथी, आपिये, शेखुलर, खांग्रेसी, समाजवादी ये सब हिंदू धर्म के दुश्मन हैं, देशद्रोही और गद्दार हैं।<br />
रिपोर्टर- ये आप क्या कह रहे हैं?<br />
हिंदू रक्षक- सही कह रहा हूं और तुम भी उन देशद्रोहियों से मिले हुए हो, बिकाऊ पत्रकार हो, चलो जाओ यहां से, भारत माता की जय, वंदेमातरम।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-31692718074026451712015-05-07T07:22:00.002-07:002015-05-07T07:22:37.108-07:00''ऊपरवाला'' कुछ नहीं देख रहा है?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlxau4IiOGmP5q6a9BQz-AKBmgJ9HHAZWJp5mWG7zFgxYE1BokPt8mGmHB13mSmSR0jVZh6ACyd_p4s1Bc9KM6ugx0Jpe3hAux4poboaxUjVNuTWWPe-tlcHF6rwAByTqA2CKuNXlhJso7/s1600/cp+plus.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="109" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlxau4IiOGmP5q6a9BQz-AKBmgJ9HHAZWJp5mWG7zFgxYE1BokPt8mGmHB13mSmSR0jVZh6ACyd_p4s1Bc9KM6ugx0Jpe3hAux4poboaxUjVNuTWWPe-tlcHF6rwAByTqA2CKuNXlhJso7/s320/cp+plus.jpg" width="320" /></a></div>
''ऊपरवाले'' के यहां देर और अंधेर तो पहले से ही था. अब पता चला कि वहां भ्रष्टाचार भी बहुत है. ऊपर बैठकर ''सब कुछ'' देखने के लिए भगवान ने जो सीसीटीवी कैमरे लगवाए थे उनमें से ज्यादातर खराब पड़े हैं. जो कैमरे काम कर रहे हैं, वो घटिया क्वॉलिटी के कैमरे भी जल्द ही 'स्वर्ग सिधार' जाएंगे. लगता है भगवान ने सीसीटीवी लगाने का ठेका किसी भ्रष्ट इंजीनियर या भ्रष्ट ठेकेदार को दिया था. घटिया कैमरे लगाकर भोले-भाले भगवान जी को ठग लिया. मार्केट रेट से ज्यादा पैसा भी लिया, घटिया कैमरे भी लगा दिए और आफ्टर सेल्स सर्विस भी नहीं दी. हालांकि ठेका देने में भगवान पर भाई-भतीजावाद का शक नहीं किया जा सकता. वह तो मनमोहन सिंह की तरह सौ फीसदी ईमानदार हैं. लेकिन खराब कैमरों के चक्कर में आजकल उनके 'ग्रह-नक्षत्र' कांग्रेस की तरह खराब चल रहे हैं. धरती के प्राणी सोच रहे हैं कि ऊपरवाला सब देख रहा है, जहां उसकी जरूरत होगी वह हरकत में आएगा. गुनहगारों को सजा देगा. लेकिन भक्तों को क्या मालूम कि ऊपरवाले की आंखें भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं. आजकल उसे कुछ दिखाई-सुनाई नहीं देता. एक तो आंखों का मोतियाबिंद तो ऊपर से खराब कैमरे, जिनमें कुछ रिकॉर्ड ही नहीं होता. मुश्किल ये है कि अब नये कैमरे लगवाने के लिए भगवान पैसे कहां से लाएं? उनके पैसों पर तो पंडे, पुजारियों और मौलवियों ने कब्जा जमा रखा है. उनके नाम पर जमा सोना-चांदी पंडे, पुजारियों की तिजोरियों का वजन बढ़ा रहा है। कुल मिलाकर आज के जमाने में मजबूरी का नाम महात्मा गांधी नहीं, मजबूरी का नाम ''भगवान'' है.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-20395688745686031302014-06-25T19:33:00.004-07:002014-06-25T22:13:29.416-07:00...जब 'अच्छे दिन' से मुलाकात हो गई <div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7GsVWhoyQNOKncWcW7XuGQ7ij9dsdNNEUMqsVhZ9nATfuu8rmU2T72RKUdx_IG3-v1PLV2-uQaY6Oonap8wmlgh8CZGA-QL7h7KCR0v66143uqYsMITVsgcurJs58NHfpGbCUUhAHpnMk/s1600/n3ojv1w-copy-155135.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"></a><br /></div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7GsVWhoyQNOKncWcW7XuGQ7ij9dsdNNEUMqsVhZ9nATfuu8rmU2T72RKUdx_IG3-v1PLV2-uQaY6Oonap8wmlgh8CZGA-QL7h7KCR0v66143uqYsMITVsgcurJs58NHfpGbCUUhAHpnMk/s1600/n3ojv1w-copy-155135.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7GsVWhoyQNOKncWcW7XuGQ7ij9dsdNNEUMqsVhZ9nATfuu8rmU2T72RKUdx_IG3-v1PLV2-uQaY6Oonap8wmlgh8CZGA-QL7h7KCR0v66143uqYsMITVsgcurJs58NHfpGbCUUhAHpnMk/s1600/n3ojv1w-copy-155135.jpg" height="240" width="320" /></a>अचानक मेरी नजर सड़क के उस किनारे पर गई जहां सैकड़ों लोग जमा थे। शायद उन लोगों ने किसी को घेर रखा था। भीड़ से जोर-जोर की आवाजें भी आ रही थीं। सब एक साथ बोल रहे थे लिहाजा किसी एक की बात को समझ पाना मुश्किल था। अपने और उनके बीच की दूरी भी उनकी बातें समझने में बाधक बन रही थीं। देखते ही देखते भीड़ के कारण आसपास जाम लग गया। अब मेरे लिए भी वहां से निकलना तकरीबन नामुमकिन हो गया था। उत्सुकतावश मैं भी उस भीड़ की ओर बढ़ गया। यह देखने के लिए कि आखिर यहां हो क्या रहा है? <br />
<br />
नजदीक पहुंचा तो देखा लोगों ने सूट-बूट, टाई और ब्रॉन्डेड कपड़ों से लैस एक नौजवान को चारों तरफ से घेर रखा है। ''कौन है यह? सब इसके पीछे क्यों पड़े हैं?" मैंने भीड़ की तरफ सवाल उछालते हुए जानने की कोशिश की। सवाल के जुबान से फूटने की देर थी कि सब लोगों ने मेरी तरफ घूरकर देखा। <br />
<br />
मुझे अहसास हो चुका था कि उस नौजवान को न पहचानकर मैंने कोई बड़ा अपराध कर दिया है। जरूर वह कोई बड़ा आदमी होगा जिसे सब जानते हैं। उस भीड़ में मैं ही इकलौता ऐसा इंसान था जो उस नौजवान को नहीं जानता था।<br />
<br />
'जानते नहीं ये भइया 'अच्छे दिन' हैं इसीलिए तो सब इन्हें अपने साथ ले जाना चाहते हैं।' भीड़ से एक बुजुर्ग ने समझाने वाले लहजे में मुझे बताया। कोई उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच रहा था तो कोई उसके पैरों पर गिरा जा रहा है। मैंने देखा भीड़ में मौजूद 31 फीसदी लोग उसे अपनी तरफ खींच रहे हैं। उसे अपने साथ ले जाना चाहते हैं। कोई उससे साथ चलने की गुजारिश कर रहा है तो कोई खुद को किसी बड़े आदमी का दोस्त, रिश्तेदार या जान-पहचान वाला बताकर उस पर अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। बाकी 69 प्रतिशत लोग खड़े तमाशा देख रहे हैं। मैं भी उन्हीं 69 फीसदी वालों में घुल-मिल गया। <br />
<br />
मैं शर्म के मारे गड़ा जा रहा था, यह सोचकर कि मैं 'अच्छे दिन' को नहीं पहचानता। ऐसे में भला मेरे दिन अच्छे कैसे बनेंगे। कोई गुंजाइश ही नहीं। 'अच्छे दिन' को पता चलेगा तो बहुत नाराज होगा। अपमानित महसूस करेगा। मेरे साथ तो भूलकर भी नहीं आ सकता। यह सोचकर मैं लौटने के लिए पलटा और 392 नंबर की डीटीसी बस में चढ़ गया। <br />
<br />
शुक्र है सीट मिल गई। यह सोचकर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे 'अच्छे दिन' आ गए हों। तभी ये देखकर मैं चौंक उठा कि 'अच्छे दिन' नाम का वो नौजवान मेरे बगल वाली सीट पर ही बैठा था। कुछ सकारात्मक जवाब की उम्मीद किए बिना ही मैंने उससे पूछ लिया- ''भाई अच्छे दिन, आप हमारे घर कब आएंगे?'' <br />
<br />
'आएंगे-आएंगे, आपके घर भी आएंगे, लेकिन अभी तो मैं जरा जल्दी में हूं। ये बस तो एयरपोर्ट की तरफ ही जाती है ना? मुझे थोड़ी देर में मुंबई की फ्लाइट पकड़नी है। एंटालिया में मेरी एक बहुत महत्वपूर्ण मीटिंग है।'<br />
<br />
''एंटालिया में ?'' मैंने कन्फर्म करने के लिए पूछा। ''हां वहीं'', अच्छे दिन ने बहुत ही संक्षिप्त में जवाब दिया और खिड़की से बाहर की ओर झांकने लगा। शायद वह मुझे खास अहमियत नहीं देना चाहता था, इसीलिए इग्नोर कर रहा था। मेरी उससे कोई जान-पहचान भी तो नहीं थी। अब मैं समझ चुका था कि 'अच्छे दिन' साहब फिलहाल मेरे घर तो चलने से रहे। फिर भी मैंने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाने की कोशिश की। <br />
<br />
''आप उन लोगों के साथ क्यों नहीं गए? कितना प्यार करते हैं वो सब आपको। हर कोई आपको अपने साथ ले जाना चाहता है। और आप हैं कि आपको उनकी भावनाओं की कद्र ही नहीं।'' <br />
<br />
''नहीं ऐसी बात नहीं है। आजकल मैं जरा ज्यादा बिजी हो गया हूं। आम लोगों से मिलना-जुलना कम ही हो पाता है। वैसे भी इन लोगों को तो आदत है कि मुझे देखकर ही खुश और संतुष्ट हो लेते हैं। अब भी वैसे ही चलेगा। अब आप ही बताओ की मेरे लिए एंटालिया में होने वाली मीटिंग ज्यादा महत्वपूर्ण है या फिर ये भूखे-नंगे लोग? वैसे मैं बता दूं कि इन्ही लोगों के लिए तो मैं इतनी दौड़-भाग करता हूं। बड़े-बड़े लोगों के साथ मीटिंग करता हूं। सबकी जिंदगी में पॉजिटिव बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।'' <br />
<br />
''भाई साहब, मुझे भी कोई टिप्स दीजिए, आजकल बड़ी आर्थिक तंगी चल रही है। वो पड़ोस वाला टिंकू तो कह रहा था कि जल्द ही सारी प्रॉब्लम खत्म हो जाएंगी। सबके अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे। लेकिन ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ।'' <br />
<br />
''आपको पैसे की प्रॉब्लम है ना? तो आप लोन क्यों नहीं ले लेते? रिलायंस फाइनेंस में अच्छा ऑफर चल रहा है। मैं दिलवा दूंगा। एक पर्सेंट कम भी करवा दूंगा। मेरी अच्छी जान-पहचान है। आसान किस्तों में लौटा देना। सिंपल। सारी प्रॉब्लम खत्म। जैसे चाहो खर्च करो। ऐश करो। पिछले एक महीने से तो मैंने कई लोगों को पर्सनल लोन दिलवाया है। आप भी ले लीजिए।'' <br />
<br />
''अच्छा ये बताइये कि आपका नाम 'अच्छे दिन' किसने रखा? क्यों रखा?'' उसकी सलाह को अनसुना करते हुए मैंने लगातार दो सवाल दाग दिए। <br />
<br />
''ये लो, आपको इतना भी नहीं पता। मेरे नामकरण पर इतना लंबा चौड़ा प्रोग्राम हुआ था। देश भर से लोग बुलाए गए थे। तमाम शहरों में जा-जाकर न्योता दिया गया था और आप पूछ रहे हैं कि नाम किसने रखा? बीस हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए थे मेरे नामकरण में, समझे।'' <br />
<br />
''जी समझ गया।" मैं निरुत्तर था। चुप हो गया। 'अच्छे दिन' भी खामोश ही बैठा रहा। इस खामोशी को भी मैंने ही तोड़ा। अच्छे दिन से उसका पता पूछकर। जवाब में उसने मुझे अपना विजिटिंग कार्ड पकड़ा दिया और मिलते हैं कभी कहकर अगले ही बस स्टॉप पर उतर गया। मैंने विजटिंग कार्ड देखा तो उसमें 7आरसीआर, नई दिल्ली का पता लिखा था। मैंने उसे संभालकर रख लिया, यह सोचकर कि कभी 'अच्छे दिन' से मिलने जरूर जाऊंगा।<br />
<br />Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-57886634630818931592013-05-08T14:46:00.000-07:002013-05-08T15:00:44.747-07:00राष्ट्रवादी की डायरी : पहला पन्ना <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRjcticcWY3x-N5pKJCr1MHBPtVIK0KsALTU6-nMl9M0LMDm0Fb7RKLMPVvO0s3H2yc_C1E0gB5-DUDpuRsTaUDu3eHkFa3yV1GX9N4KEorKJumORHbmXK881T7_3dM2QT9W4qd13ZUeXW/s1600/Rashtrawadi.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRjcticcWY3x-N5pKJCr1MHBPtVIK0KsALTU6-nMl9M0LMDm0Fb7RKLMPVvO0s3H2yc_C1E0gB5-DUDpuRsTaUDu3eHkFa3yV1GX9N4KEorKJumORHbmXK881T7_3dM2QT9W4qd13ZUeXW/s320/Rashtrawadi.jpg" width="225" /></a><br />
मैं एक राष्ट्रवादी हूं। राष्ट्रवाद की भावना मेरे अंदर कूट-कूट कर भरी है। इस भावना को पत्थर की तरह कूटा गया था या मिट्टी की तरह ये तो मुझे नहीं मालूम लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं की जीते जी ये भावना मेरे दिल से निकलने वाली नहीं, बल्कि ये दिनोंदिन बलवती होती जा रही है। आज से मैं अपनी डायरी लिख रहा हूं। इस डायरी के जरिये आप मुझसे, मेरे बैकग्राउंड से और मेरे देशप्रेम से ओतप्रोत विचारों से अवगत हो सकेंगे। आगे कुछ लिखने से पहले मैं अपना परिचय करा दूं। मेरा नाम आरएसएस भाई पटेल है। मेरे पिताश्री का नाम वीएचपी भाई पटेल था। वो गुजरात के रहने वाले थे। मेरा जन्म भी गुजरात में ही हुआ। परवरिश भी वहीं पर हुई।<br />
<br />
पिताजी ने हमें बचपन से ही राष्ट्रवादी संस्कार दिए थे। वह खुद भी कट्टर राष्ट्रवादी थे। संघ वालों से उनकी बहुत पटती थी। वही संघ वाले जो अपने सामाजिक कार्यों के लिए विश्व विख्यात हैं। पिताश्री रोजाना संघ की शाखा में जाया करते थे। वह बताते थे कि संघ से बड़ा देशभक्त संगठन दुनिया में नहीं है। उन्होंने अपने आप को पूरी तरह संघ के रंग में रंग लिया था। जब देखो तब एक खाकी हाफ पैंट में घूमते रहते थे। खाकी औऱ भगवा रंग से पिताजी को खासा लगाव था। असल में वो फौजी बनना चाहते थे, ताकि खाकी ड्रेस पहनकर वो भी देश की सेवा कर सकें। लेकिन कद छोटा होने की वजह से फौज में भर्ती नहीं हो पाए। लेकिन दिल में इस बात की कसक हमेशा रही। फिर पुलिस में भर्ती होने के लिए भी हाथ-पांव मारे, लेकिन उस समय पुलिस का बड़ा साहब दूसरे धर्म वाला था, बस उसी ने लंगड़ी मार दी और पिताश्री पुलिस अफसर बनते-बनते रह गए।<br />
<a name='more'></a>खाकी धारण करने की हसरत मन में ही रह गई। इसी की भरपाई करने के लिए के लिए पिता जी संघ में पहले से ज्यादा सक्रिय हो गए। खाकी की फुल ड्रेस नहीं पहन पाए तो क्या हुआ। कम से कम यहां खाकी हाफ पैंट तो पहनने को मिलता था। उसी से संतोष कर लिया। उसे ही गर्वित होने का जरिया बना लिया। पिता जी ने कभी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। आखिर तक उनका मानना था कि उनका धर्म श्रेष्ठ है। वह ये भी मानते थे भारत एक हिंदू राष्ट्र है। यहां सिर्फ हिंदुओं को ही रहना चाहिए। बाकी धर्मों के लोगों को देश से निकाल देना चाहिए। उनकी वजह से देश का माहौल खराब होता है। देश की पहचान बिगड़ती है।<br />
<br />
वह इस देश को इंडिया या भारत कहने के भी खिलाफ थे। उनका मानना था कि इस देश का नाम हिंदुस्तान ही होना चाहिए। हिंदुस्तान बोलने पर उन्हें हिंदू होने का अहसास होता था। इससे वो गर्व से भर उठते थे। सीना दो-चा इंच और चौड़ा हो जाता था। धर्मनिरपेक्षता से वो खासे दुखी रहते थे। उन्हें ये देखकर अफसोस होता था कि कुछ लोग हिंदू होते हुए भी दूसरे धर्मों की तरफदारी करते हैं। देश को सेक्युलर बनाने की वकालत करते हैं। एक ऎसा देश जहां सभी धर्मों के लोग प्रेम से मिलजुल कर रहें। पिताजी को यह सुनकर कोफ्त होती थी। उनके मुताबिक ऎसा कतई मुमकिन नहीं है। मिलजुल कर रहना हिंदुओं की आदत नहीं। जब वो खुद आपस में ही मिलजुलकर नहीं रह सकते तो भला दूसरे धर्म वालों के साथ कैसे मिलजुल कर रहेंगे? पिताजी की यह बात कुछ सेक्युलर टाइप के लोग समझते ही नहीं थे। इसीलिए वो सेक्युलरिज्म से दुखी रहते थे। इसी दुख को दिल में दबाए एक दिन वो स्वर्ग सिधार गए।<br />
<br />
पिताजी स्वदेशी के भी जबरदस्त समर्थक थे। हर विदेशी चीज से उन्हें चिढ़ थी। उनका बस चलता तो देश से विदेशी चीजों को चुन-चुनकर बाहर फिंकवा देते। चाहे वो सामान हो या इंसान। तकनीक हो या मशीनरी। वो जब भी बीमार होते थे तो वैद्य के पास जाते थे। जड़ी बूटियां खाकर अपना इलाज करते थे। अस्पताल जाना और विदेशी दवाइयां खाना उन्हें सख्त नापसंद था। कभी मजबूरन अस्पताल जाना भी पड़े तो उनकी सख्त ताकीद थी कि कोई अन्य धर्म का डॉक्टर उन्हें हाथ भी न लगाए। इससे धर्म भ्रष्ट हो जाता है। उसकी शुद्धता दूषित हो जाती है। उन्हें पराए धर्म वालों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। वह अपने धर्म के लिए जीते थे। जहां धर्म की बात आती थी, मरने-मारने पर उतारू हो जाते थे। गाली-गलौज पर उतर आते थे। मार डालने, काट डालने की बातें करने लगते थे।<br />
<br />
पिताजी की अंतिम इच्छा थी कि उन्हें खाकी हाफ पैंट में ही दफनाया जाए। मैंने इस बात का पूरा खयाल रखा। उनकी अंतिम यात्रा पर सैकड़ों संघी आए थे। बहुत लंबी यात्रा थी। गुजरात वैसे भी यात्राओं के लिए प्रसिद्ध है। गांधी जी का दांडी मार्च भी तो यहीं हुआ था। मेरे पिताजी को गांधी पसंद नहीं थे। वह गोडसे के भक्त थे। वही गोडसे जिसकी गोलियों ने गांधी का काम तमाम कर दिया था। मैंने गोडसे के बारे में बहुत पढ़ा है। मैंने तो राष्ट्रवाद माननीय गोडसे और अपने पिताजी से ही सीखा है। भावुकता में पिताश्री के बारे में काफी कुछ लिख गया। अब अगले पन्ने से अपने बारे में लिखना शुरू करूंगा। जय हिंद। जय हिंदुस्तान।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-30622463632844174962013-04-29T03:34:00.002-07:002013-05-04T14:47:02.753-07:00चमत्कारी मोदी ताबीज-पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2_D9dcJZtQ_2MlQNSRiiRU25jhm3Hn2DjK5g7IHHTaA38JhuWIzasRvmqNSdNIPVay9ORiMWOcBpxJzbQgX4y-TAm4fyGaFXMPEmOaCglZihWk5YztpDfAkLLr_Mxm6LyZXn_aEA4SLmL/s1600/tabeez.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2_D9dcJZtQ_2MlQNSRiiRU25jhm3Hn2DjK5g7IHHTaA38JhuWIzasRvmqNSdNIPVay9ORiMWOcBpxJzbQgX4y-TAm4fyGaFXMPEmOaCglZihWk5YztpDfAkLLr_Mxm6LyZXn_aEA4SLmL/s200/tabeez.jpg" width="200" /></a><br />
हाय, मेरा नाम...है। पहले मैं अपनी जिंदगी से बहुत परेशान रहता था। मेरा कोई भी काम ठीक से नहीं हो पाता था। कई बीमारियां घेरे रहती थीं। काफी इलाज करवाया। कोई फायदा नहीं हुआ। फिर मुझे किसी ने चमत्कारी 'मोदी ताबीज' के बारे में बताया। उस दिन के बाद से तो मेरी जिंदगी ही बदल गई। जिस दिन से मैंने श्रीश्री 1008 मोदी जी महाराज के नाम की ताबीज पहननी शुरू की उसी दिन से मेरी जिंदगी में चमत्कार शुरू हो गए। अचानक मैं खुद को काफी स्वस्थ महसूस करने लगा। आज मेरे दोस्त मुझे देखकर पहचान ही नहीं पाते कि मैं वही हूं। मुझे अब भी यकीन नहीं होता कि यह सब 'मोदी ताबीज' का कमाल है। लेकिन यही सत्य है। हालांकि 2002 में मेरे दादाजी ने मुझे 'मोदी ताबीज' के बारे में बताया था। तब 'मोदी ताबीज' नई-नई बाजार में लॉन्च हुई थी। लेकिन तब मैंने दादाजी की बातों पर यकीन नहीं किया। मैं नहीं मानता था कि ताबीज से भी कोई चमत्कार हो सकता है। लेकिन 'मोदी ताबीज' पहनने के बाद मेरी यह धारणा बदल गई है। मुझे अफसोस है कि अगर 2002 में ही मैंने दादाजी की बात मानकर 'मोदी ताबीज' पहनी होती तो आज मैं पता नहीं कहां से कहां पहुंच चुका होता। खैर, देर आए, दुरुस्त आए। मैंने अपनी गलती सुधार ली। आप भी मेरी कहानी से सीख लें। 'मोदी ताबीज' घर लाएं, सभी समस्याओं से निजात पाएं। <br />
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हेलो फ्रैंड्स मैं....। मैं अपनी कॉलेज लाइफ में काफी परेशान रहता था। दोस्तों के ताने सुन-सुनकर तंग आ चुका था। मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी। कई बार ट्राई किया लेकिन दोस्ती करना तो दूर कोई लड़की मेरी तरफ आंख उठाकर तक नहीं देखती थी। दोस्त मेरा मजाक उड़ाते था। उनकी ढेरों गर्लफ्रेंड थीं। मेरी एक भी नहीं। मैं डिप्रेशन में आ चुका था। सारे तरीके 'ट्राई' कर लिए। महंगे-महंगे कपड़े खरीदे। लाखों की बाइक खरीदी। स्टाइल दिखाईं। लेकिन कोई लड़की इंप्रेस ही नहीं होती थी। मैं हार चुका था। मुझे अपनी जिंदगी से कोई लगाव नहीं रह गया था। मैंने फैसला कर लिया था कि मैं ये दुनिया ही छोड़ दूंगा। गर्लफ्रेंड के बगैर जीना भी कोई जीना है। अगले दिन मैं खुदकुशी करने जा रहा था। मैंने तय कर लिया था कि नदी में कूद कर जान दे दूंगा। बिना किसी को बताए मैं उस दिन घर से निकला और नदी के पुल पर पहुंच गया। लेकिन मैं पुल से कूदने ही वाला था कि एक आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में किसी भली आत्मा ने मुझे 'मोदी ताबीज' के बारे में बताया। मुझ डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। मैं तुरंत घर आया और फटाफट ताबीज के लिए आर्डर बुक कर दिया। अगले दिन से 'मोदी ताबीज' मेरे गले में सुशोभित थी। आपको यकीन नहीं होगा कि उसी दिन एक खूबसूरत लड़की ने मुझसे लिफ्ट मांगी। हमारी दोस्ती भी हो गई। फिर हम बाइक पर लॉन्ग ड्राइव पर भी गए। हमने खूब सारी बातें कीं। यह यकीनन 'मोदी ताबीज' का ही कमाल था कि वो मेरी गर्लफ्रेंड बन गई। मेरी सारी समस्याएं ताबीज पहनते ही खत्म हो गईं। आज मेरी भी कई गर्लफ्रेंड हैं। मेरी पढ़ाई भी अच्छी चल रही है। सब मोदी ताबीज की कृपा है।<br />
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हाय फ्रैंड्स, मैं....। मेरी मां हमेशा मेरी शादी के लिए परेशान रहती थीं। मेरी उम्र 30 पार कर गई थी, लेकिन मेरे लिए कोई सुयोग्य वर नहीं मिल रहा था। मेरे मां-बाप लड़का ढूंढ-ढूंढ कर परेशान थे। तभी मेरी एक सहेली ने मुझे नमो-नमो मंत्र और मोदी ताबीज के बारे में बताया। मुझे लगा कि वो मजाक कर रही है। लेकिन फिर मैंने सोचा एक बार ट्राई करके देखने में हर्ज ही क्या है। मैंने मम्मी-पापा को बिना बताए चुपके से अहमदाबाद के पते पर मनीऑर्डर भेज दिया। अगले ही दिन कोरिअर से मोदी ताबीज घर आ गई। उसके साथ में नमो-नमो मंत्र की पुस्तिका भी मुफ्त दी गई थी। उस दिन से मैंने मोदी ताबीज धारण करना शुरू कर दिया। पत्रिका में दिए निर्देश के मुताबिक मैंने सुबह-शाम नमो-नमो मंत्र का 1008 बार जाप भी शुरू कर दिया। बस फिर क्या था। 24 घंटे में ही चमत्कार हो गया। अगली सुबह जब मैं मंदिर से लौटते वक्त मन ही मन नमो-नमो जाप कर रही थी, तभी एक बेहद स्मार्ट लड़का मुझे टकराया। इससे पहले कि मैं संभल पाती उसने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। उसने बताया कि वह डॉक्टर है और उसका अपना नर्सिंग होम है। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में अपनी कोठी है। मैंने उसका शादी का प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया। अब मैं बहुत खुश हूं। मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं। एक पल भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते। सचमुच मोदी ताबीज और नमो-नमो मंत्र नहीं होता तो शायद आज भी मैं अपनी शादी का बाट जोह रही होती। थैंक्यू नमो मंत्रा। थैंक्यू मोदी ताबीज। <br />
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नमस्कार साथियों, पहले मैं एक राजनीतिक पार्टी का मामूली कार्यकर्ता था। आज मैं गुजरात की एक बड़ी पार्टी से विधायक हूं। ये सब मुमकिन हुआ 'मोदी ताबीज' के चमात्कार से। बात साल 2002 की है। तभी मैने नमो-नमो मंत्र सीखा था। जब भी वक्त मिलता था मैं उसे मन ही मन दोहराया करता था। इसका जादुई असर हुआ। पार्टी में मेरा प्रमोशन हो गया। मुझे पार्टी में कई अहम जिम्मेदारियां दे दी गईं। इसी दौरान मेरे किसी प्रशंसक ने मुझे मोदी ताबीज भेंट की। मैंने श्रद्धा भाव से वो ताबीज अपने गले में पहन ली। मैं इसे कभी अपने से अलग नहीं करता। ये देखिए। यही है मेरी कामयाबी का मूलमंत्र। यह ताबीज पहनने के बाद मेरी तरक्की का दौर शुरू हो गया। 2002 में जब श्रीश्री 1008 मोदी जी महाराज का राज्यव्यापी 'कार्यक्रम' हुआ तो मैंने उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इतना ही नहीं अगले ही विधानसभा चुनाव में पार्टी ने मुझे एमएलए का टिकट दे दिया। मैं भारी वोटों से विजयी हुआ। सच में, अगर 'मोदी ताबीज' नहीं होती तो यह सब कभी संभव नहीं हो पाता। मैं शुक्रगुजार हूं 'मोदी ताबीज' का और इसे ईजाद करने वाले श्रीश्री 1008 मोदी जी महाराज का। अगर उन्होंने 2002 में इतना बड़ा 'कार्यक्रम' नहीं किया होता तो मैं उनके संपर्क में नहीं आ पाता। खैर, अब मैं अपने राजनीतिक करिअर से बहुत खुश हूं। मेरे पास बंगला है, कई बड़ी-बड़ी गाड़ियां हैं। अहमदाबाद में अरबों की जमीन है। अब मेरी तमन्ना एमपी का चुनाव लड़ने की है। नमो-नमो मंत्र के असर से मेरी ये चाहत भी जरूर पूरी होगी। मुझे पूरा विश्वास है। <br />
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देखा आपने, नमो मंत्र और मोदी ताबीज कितनी चमत्कारी है। तो देर न करें। आज ही आर्डर करें। सभी आर्डर वीपीपी से बुक किए जाएंगे। इस चमत्कारी ताबीज की कीमत है सिर्फ 1420 रुपये। लेकिन अभी ऑर्डर बुक कराने पर 'मोदी ताबीज' आपको मिलेगी सिर्फ 420 रुपये में। यानी पूरे 1000 रुपये की बचत। तो देर किस बात की? फौरन अपना ऑर्डर बुक कीजिए और सारी चिंताओं, परेशानियों को हमेशा के लिए अलविदा कह दीजिए। आज से ही नमो मंत्र का जाप शुरू करें और चमत्कारी मोदी ताबीज अपनाएं, सारे जहां की खुशियां घर ले आएं। खास तौर पर बनाए गए नमो-नमो मंत्र का रोज सुबह-शाम 1008 बार जाप करें। बाकी विवरण आपको हमारी ताबीज के साथ मिलेगा। यह ताबीज गले में हमेशा पहनें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोने, भूत-प्रेत का भी कोई असर नहीं होगा। यह वशीकरण का भी काम करेगी। इसे पहनने से मुकदमों में विजय प्राप्त होगी। रोगी जादू की तरह ठीक होने लगेगा। सभी चिन्ताएं दूर होंगी। शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी। जिस लड़की को चाहते हैं वो आपकी हो जाएगी। खोया हुआ प्यार पाना हो, बेवफा प्रेमी को वश में करना हो, संतान की चाहत रखते हों, पति को वश में करना हो, परीक्षा में पास होना हो, चुनाव जीतना हो, सरकार बनानी हो, बस मोदी ताबीज गले में धारण करें। आपकी सारी इच्छाएं पूरी होंगी। सभी परेशानियां दूर होंगी। बच्चों को भूत-प्रेत और जादू-टोने से बचाने के लिए मोदी ताबीज हमेशा उनके गले में डालकर रखें। हजारों समास्याओं का एकमात्र समाधान- मोदी ताबीज, हमेशा पहनें। श्रीश्री 1008 मोदी जी महाराज ने वर्षों के अनुसंधान और तपस्या से आपके लिए ये मंत्र और ताबीज ईजाद की है। मानव मात्र की सेवा के लिए उनका ये योगदान इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। आप भी देर न करें। पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-16137260688133583952012-08-25T04:14:00.002-07:002012-08-25T04:21:44.722-07:00मैं 'मेरी कोम' को नहीं जानता मेरी कोम! मैं तुम्हें नहीं जानता<br />
मैं तुम्हें नहीं पहचानता.<br />
<br />
क्योंकि तुम फिल्मी सितारों जैसी चमकती नहीं हो<br />
संज-संवर कर अदा से दमकती नहीं हो.<br />
तुम्हारी चाल 'हीरोइन' जैसी नशीली नहीं है<br />
तुम्हारी अदा कैटरीना जैसी कटीली नहीं है.<br />
<br />
तुम हिट फिल्म की हीरोइन की तरह नहीं इतराती.<br />
फेयरनेस क्रीम बेचने की 'संभावनाएं' भी नहीं जगाती.<br />
तुम्हारे चेहरे पर 'सुपर मॉडल' जैसी चमक नहीं है.<br />
तुम्हारी आवाज में 'इंडियन आइडल' जैसी खनक नहीं है.<br />
<br />
तुम अपनी कामयाबियों पर भी नहीं इठलाती.<br />
जुल्फें संवारकर कैमरों के सामने नहीं आती.<br />
तुम्हारी कमर में 'आइटम गर्ल' वाली लचक नहीं है.<br />
'दर्शकों' को रिझा सके, वो कसक नहीं है.<br />
<br />
तुम्हें तो 'स्टार पुत्रियों' की तरह<br />
नखरे दिखाना भी नहीं आता है.<br />
अफसोस! तुम्हारी त्वचा से<br />
तुम्हारी उम्र का पता चल जाता है.<br />
<br />
तुम टीवी शो में झलक भी नहीं दिखलाती.<br />
बड़ी-बड़ी बातों से लोगों को नहीं भरमाती.<br />
रियलिटी शो के मंच पर ठुमके भी नहीं लगाती.<br />
मर्दाना चाल चलती हो, कमर नहीं मटकाती.<br />
<br />
तुम्हारी कहानी में सस्पेंस और थ्रिल नहीं है.<br />
तुम किस्से गढ़ने का स्कोप नहीं दिलाती.<br />
और तो और, तुम्हारा किसी से अफेयर भी नहीं है.<br />
वाकई तुम्हारे व्यक्तित्व में कोई ग्लैमर नहीं है.<br />
<br />
तुम्हारे लिए देश की पब्लिक पागल नहीं होती.<br />
औरों की तरह तुम पर तोहफों की बारिश नहीं होती.<br />
तुम 'केबीसी' में पूछे जाने वाले सवाल में तो हो.<br />
लेकिन उसके बीच आने वाले 'ब्रेक' में नहीं हो.<br />
<br />
सच कहूं तो तुम्हारी कोई अदा भड़कीली नहीं है.<br />
तुम अप्सराओं की तरह खूबसूरत नजर नहीं आती.<br />
तुम महंगे-ब्रांडेड कपड़ों से खुद को नहीं सजाती.<br />
सुंदर स्त्रियों की तरह बनाव श्रृंगार भी नहीं करती.<br />
<br />
इसीलिए, मैं तुम्हें नहीं पहचानता<br />
मेरी कोम तुम कौन हो? मैं नहीं जानता. <br />
(रवींद्र रंजन--25-08-12 )Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-10754151321941078662011-12-07T20:43:00.001-08:002011-12-07T21:22:55.541-08:00मदेरणा हैं कि मानते नहीं<br />
<br />
नेता बेशर्म होते हैं यह तो दुनिया जानती है। लेकिन राजस्थान पूर्व जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा ने बेशर्मी की सारी हदें तोड़ दी हैं। अब भी वही राग अलाप रहे हैं जो उन्होंने सियासत की पाठशाला के पहले दर्ज में पढ़ा था। कहते हैं उनके खिलाफ साजिश हुई है। उन्हें फंसाया गया है। वह संघर्ष करेंगे। इसे ही कहते हैं सब कुछ गंवाकर भी होश नहीं आया। याद कीजिए टेलिविजन पर दिखाई गईं वो तस्वीरें जिसमें सीबीआई मदेरणा को गिरफ्तार करके जोधपुर से दिल्ली ले जा रही थी। उसी वक्त मदेरणा ने मीडिया के सामने ये बेशर्मी भरा बयान दिया कि उन्हें फंसाया गया है। उनके चेहरे पर अपने किए का ना तो कोई अफसोस था और ना ही कोई शर्म-लिहाज। उल्टा मदेरणा साहब तो बेशर्मी की सारी हदें तोड़ने को बेकरार थे।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIjqSxU5DoSvn2Yz0V-sj82ooiEqbeMBktSWABOgwiCIqsW9ToHXR-_XeYBxGBlHxucTMIyfr-ervKcoWBzqYdRzFU3IWAbUQTCyjBqymgikWFJqbmzwZ1Yf43OiC2h6hka70SGJOezI8k/s1600/Maderna.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="278" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIjqSxU5DoSvn2Yz0V-sj82ooiEqbeMBktSWABOgwiCIqsW9ToHXR-_XeYBxGBlHxucTMIyfr-ervKcoWBzqYdRzFU3IWAbUQTCyjBqymgikWFJqbmzwZ1Yf43OiC2h6hka70SGJOezI8k/s320/Maderna.JPG" width="320" /></a></div>
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वैसे भी अब मदेरणा के पास शर्म करने लायक बचा क्या है? सीडी में कैद उनकी 'डर्टी पिक्चर' को दुनिया देख चुकी है। लेकिन मदेरणा हैं कि मानते नहीं। उन्हें अब भी अपनी सियासी विरासत बचाने की फिक्र खाए जा रही है। तभी तो पकड़े जाने पर जैसे हर सफेदपोश खुद को बेकसूर बताता है, अपने खिलाफ साजिश रचे जाने की बात करता है, वही सब अब महिपाल मदेरणा भी कर रहे थे। मदेरणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री है। सियासत के पुराने खिलाड़ी हैं। जाहिर है, आसानी से हार नहीं मानेंगे।<br />
<br />
अब जरा मदेरणा की साहिबजादी की भी थोड़ी चर्चा कर लें। मदेरणा की बेटी दिव्या मदेरणा अपने पिता से कह रह थी कि टेंशन लेने की कोई बात नहीं है। उसका भी यही कहना था कि उसके पिता को फंसाया गया है। उनके पिता की राजनीतिक हत्या करने के लिए यह षड्यंत्र रचा गया है। राजनीति के अभिमन्यु की तरह उसके पिता इस चक्रव्यूह को तोड़ेंगे। दिव्या की बड़बोली बातें सुनकर हमें तो एक ही कहावत याद आई...बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभानअल्ला। सियासत के पुराने खिलाड़ी मदेरणा के मुंह से तो राजनीति के रंग में लिपटे लफ्ज निकलने लाजिमी थे। लेकिन सियासत की एबीसीडी से दूर रही, मदेरणा की साहिबजादी दिव्या भी बाप की जुबान बोल रही थी। ऎसे जता रही थी जैसे उसके पिताश्री बिल्कुल दूध के धुले हैं। किसी ने उन्हें साजिश करके फंसा दिया और वो बेचारे फंस गए।<br />
<br />
मदेरणा की बेटी तो काफी देर से मीडिया के सामने आई। उससे पहले उनकी पत्नी लीला मदेरणा ये बयान दे चुकी हैं कि सीडी में होना कोई गुनाह थोड़े हैं। किसी तरह का सीडी बरामद होना या फिर किसी से रिश्ते रखना अपराध नहीं है। लीला ने ये भी कहा था कि ये तो चलता है। राजा-महाराजाओं के वक्त से चला आ रहा है। लीला मैडम की लीला तो वाकई में अपरम्पार है। उन्हें सारी दुनिया विलेन और अपना पति हीरो नजर आता है। पति की असलियत देखकर भी दिखाई नहीं देती। या शायद वह देखना नहीं चाहतीं।<br />
<br />
एक बात पर और भी गौर करने लायक है। बाप और मां-बेटी जब भी मीडिया के सामने आईं उनके चेहरे पर अफसोस, रंज या गम की नन्ही सी लकीर भी नजर नहीं आई। मतलब साफ है राजस्थान के मदेरणा ने भी जो किया, अब उसकी बेटी और बीवी मिलकर उस पर लीपापोती करने में जुट गई हैं। बेटी तो मां से भी दो कदम आगे है। उसने अपनी तुलना बेनजीर भुट्टो से कर डाली है। दिव्या मदेरणा का कहना था कि जिस तरह बेनजीर ने पिता की विरासत संभाली थी उसी तरह वह भी पिता की राजनीतिक विरासत को संभालेगी। अब अगर अगले चुनावों में मदेरणा की साहिबजादी दिव्या अपने लिए वोट मांगती नजर आ जाएं तो आपको कोई अचरज नहीं होना चाहिए।<br />
<br />Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-18660906419344889012010-03-06T17:44:00.000-08:002010-03-06T20:08:55.569-08:00बीबीसी मुझे माफ करना, मैं हिंदुस्तानी हूं<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4HNcf1lLo9jrdXHiCTJozPKpnDijk3v9s3fpbr7D_4OdR-dEwyz0hGHCapIX16mUvWVrek9NX1Hbr9ZR3OvPZXfZ1PAaiyTRdyLSa80qLZFscooDlV723ikQh43mVp_-GYN60flq97XLl/s1600-h/BBC+LOGO.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 175px; height: 131px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4HNcf1lLo9jrdXHiCTJozPKpnDijk3v9s3fpbr7D_4OdR-dEwyz0hGHCapIX16mUvWVrek9NX1Hbr9ZR3OvPZXfZ1PAaiyTRdyLSa80qLZFscooDlV723ikQh43mVp_-GYN60flq97XLl/s320/BBC+LOGO.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445739014762300786" /></a>मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने बीबीसी की भाषा को लेकर एक <a href="http://rex-aashiyana.blogspot.com/2010/01/blog-post.html">सवाल</a> उठाया था। सवाल यह था कि दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकी और इंसानियत का दुश्मन ओसामा बिन लादेन सम्मान का हकदार कैसे? अभी तक तो हमने यही सुना है कि व्यक्ति के कर्म ही उसे महान बनाते हैं। कर्म ही सम्मान का हकदार बनाते हैं। लेकिन बीबीसी के लिए एक आतंकवादी भी सम्मानित है। कल्पना कीजिए कि अगर मुंबई हमले का गुनहगार आमिर अजमल कसाब बीमार हो जाए तो उसके बारे में लिखी गई बीबीसी की खबर का शीर्षक क्या होगा। शायद वह लिखेगा, 'बीमार हैं कसाब' या फिर 'बीमार हुए कसाब'। अब आप सोचिए कि कसाब के बारे में ऐसा संबोधन पढ़कर एक हिंदुस्तानी को कैसा लगेगा? हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें बीबीसी के इन भाषाई तौर-तरीकों में कोई बुराई नजर नहीं आती। वो बड़ी ही बेशर्मी से इसे बीबीसी की 'निष्पक्ष' पत्रकारिता कहते हैं। ऐसे लोगों से मैं पूछना चाहता हूं कि क्या वो महात्मा गांधी के हत्यारे के लिए ऐसा सम्मानजनक संबोधन पसंद करेंगे? क्या वो इंदिरा गांधी के कातिल के लिए 'उन्हें' या 'वे' जैसे संबोधन स्वीकार कर पाएंगे? <br /><br />टीवी चैनलों को भाषा ज्ञान देने वाले इस मुद्दे पर मौन हो जाते हैं। शायद उन्हें लगता है कि वो बीबीसी पर सवाल उठाएंगे तो 'सांप्रदायिक' की श्रेणी में आ जाएंगे। अन्यथा वो थोड़ा सा भाषा ज्ञान बीबीसी को भी क्यों नहीं देते? रुचिका मामले में सबने देखा कि मीडिया की भाषा कैसे रातोंरात बदल गई। जैसे ही हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर की कारगुजारी दुनिया के सामने आई, वो मीडिया की नजर में सबसे बड़ा खलनायक बन गया। एक दिन पहले तक वो महज आरोपी 'थे', लेकिन 24 घंटे बाद ही वो 'गुनहगार' हो 'गया'। चैनल में साफ-साफ 'उसे' रुचिका का गुनहगार कहा जाने लगा। यहां भी यही साबित हुआ कि व्यक्ति के कर्म ही उसे सम्मान का हकदार बनाते हैं। जैसे ही राठौर के कुकर्म उजागर हुए, मीडिया ने उसके लिए सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल करना भी बंद कर दिया। <br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgtNok3ze1Xbz8gjJf9XazpiqKkD14mDy7Tr9aEL30_Q8pFvxy7zgWqLtswLr5K6WVoEgDllW_TEtP2PSioTpijT3N4f3Un8EUxDCfmvAWlyc2XpU8PylA6vDP6iOAQ-HjwOrnRCwI10lT/s1600-h/image002.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 258px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgtNok3ze1Xbz8gjJf9XazpiqKkD14mDy7Tr9aEL30_Q8pFvxy7zgWqLtswLr5K6WVoEgDllW_TEtP2PSioTpijT3N4f3Un8EUxDCfmvAWlyc2XpU8PylA6vDP6iOAQ-HjwOrnRCwI10lT/s320/image002.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445702324821175938" /></a>कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि भाषा सबके लिए एक समान होनी चाहिए। सभी को सम्मान पाने का हक है। बात ठीक है लेकिन उस व्यक्ति को सम्मान पाने लायक भी तो होना चाहिए। हिंदी में अंग्रेजी जैसा नहीं है। इसीलिए हिंदी में दो तरह के संबोधन हैं। तुम और आप। अंग्रेजी में ऐसा कुछ नहीं है। अंग्रेजी में किसी एक व्यक्ति (एक वचन) के लिए 'हैं' या 'वे' नहीं लिखा जाता। इसलिए अगर अंग्रेजी मानसिकता वाले हिंदी में वेबसाइट चलाते हैं तो उन्हें हिंदी भाषा के 'नेचर' और जनमानस का खयाल रखना ही होगा। सिर्फ ये कहकर नहीं बच सकते कि ये तो हमारी 'स्टाइल शीट' है। सवाल ये है कि स्टाइल शीट अगर है भी तो ऐसी क्यों है जिसमें एक आतंकी को सम्मानजनक विशेषण दिया जाता है? वेबसाइट हिंदी में है और हिंदी का पाठक यह कतई नहीं कबूल कर सकता कि लादेन के लिए लिखा जाए कि 'वो ऐसे दिखते होंगे?' <br /><br />एक साहब हैं जो रोज बीबीसी पढ़ते हैं लेकिन उन्हें आज तक बीबीसी की भाषा में कोई खामी नजर नहीं आई। उल्टा वो हमें दोष देने लगे कि ये आपकी 'सोच' और देखने के नजरिये का दोष है। भई, अगर मुझे लादेन जैसे आतंकवादी को सम्मान देने में आपत्ति है तो मेरी 'सोच' खराब कैसे हो गई? फर्ज कीजिए अगर मैं उन साहब का और उनके परिवार का दुश्मन बन जाऊं। उनको और उनके पूरे परिवार को जान से खत्म करने की ठान लूं। उनके एक-दो रिश्तेदारों को मौत के घाट भी उतार दूं। तब क्या उनके दिल में मेरे लिए कोई सम्मान रहेगा? शायद नहीं। तो सवाल ये है कि हजारों-लाखों बेकसूर लोगों की जान लेने वाला आतंकी लादेन कैसे सम्मानित संबोधन का हकदार हो सकता है? <br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivI1S3qB-uqsZhGXrY_glPUyITJBBLCrt3wPpW8iPY9_3GQxTgufDpS34W7UEy0PfRFF9wxqDxb0ts7dKMMq48o9u2ibAVAs3Jz_5jc2Jj0D3rBtA1LBDfoGAvwe2K5Q8AG23PVlkr2BtB/s1600-h/Osama-bin-laden5.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivI1S3qB-uqsZhGXrY_glPUyITJBBLCrt3wPpW8iPY9_3GQxTgufDpS34W7UEy0PfRFF9wxqDxb0ts7dKMMq48o9u2ibAVAs3Jz_5jc2Jj0D3rBtA1LBDfoGAvwe2K5Q8AG23PVlkr2BtB/s320/Osama-bin-laden5.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445702538321006146" /></a>इसी तरह अगर हिंदी में खबर लिखी जा रही है और जिक्र महात्मा गांधी की मौत का हो रहा है तो नाथूराम गोडसे क्या सम्मानित संबोधन का हकदार हो सकता है? लादेन को 'हैं' और 'वे' जैसे संबोधन किसी भी कीमत पर नहीं दिए जा सकते। बीबीसी हिंदी की भाषा के पैरोकारों से मैं कहना चाहूंगा कि जरा आत्मविश्लेषण करके देखें कि निचले तबके में रहने वाले और उनकी नजर में साफ-सफाई जैसे तुच्छ काम करने वाले लोगों को वो कितनी बार 'आप' कहकर संबोधित करते हैं, जबकि हकीकत तो ये है कि वो लोग सम्मान के पूरे हकदार हैं क्योंकि वह अपना काम ईमानदारी से करते हैं। कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता। इसके बावजूद हकदार होते हुए भी हम उन्हें सम्मान देने में कतराते हैं। इसके विपरीत कातिल, गुनहगार और आतंकी को सम्मान देने में उन्हें बुराई नजर नहीं आती? शायद इसलिए क्योंकि ऐसा एक विदेशी संस्था कर रही है और विदेशी जो भी करते हैं वो ऐसे लोगों को महान नजर आता है। ऐसे लोगों को वो सिर आंखों पर बैठाते हैं। वह कचरा भी परोसे तो हमें सोना लगता है। ऐसे लोगों के लिए तो हम यही कहेंगे कि उन्हें अपनी आंखें खोलनी चाहिए और दिमाग के बंद दरवाजे को भी खुला रखना चाहिए। <br /><br />कुछ संकुचित मानसिकता वाले लोगों ने तो मुझ पर एक अजीबोगरीब आरोप मढ़ डाला। वो खुद को सेकुलर साबित करना चाहते थे लिहाजा उन्होंने हम पर आरोप लगा दिया कि हम बीबीसी हिंदी पर ऐसे सवाल इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि उसकी संपादक सलमा जैदी एक मुसलमान हैं। इसी आधार पर उन्होंने हमें दक्षिण चरमपंथी भी घोषित कर दिया। हमें तो तरस ही आई उनकी सोच पर। उन्होंने बीबीसी की एक-दो खबरों का उदाहरण देकर ये भी साबित कर दिया कि चूंकि बीबीसी बाला साहेब ठाकरे के लिए भी सम्मानजनक संबोधन इस्तेमाल करता है इसलिए लादेन भी सम्मान का हकदार है। चूंकि वो यह मान चुके हैं कि बीबीसी की भाषा पर सवाल उठाने वाला एक दक्षिण चरमपंथी है, इसीलिए शायद उन्होंने बाल ठाकरे का उदाहरण पेश किया। इस पर मैं कहना चाहूंगा कि बाल ठाकरे हों या राज ठाकरे अगर कोई संगीन गुनाह करते हैं तो वो भी सम्मान के जरा भी हकदार नहीं है। एक और साहब ने इसे बीबीसी की निष्पक्ष पत्रकारिता बताया। यानी आतंकी का सम्मान करना उनकी नजर में निष्पक्ष पत्रकारिता की श्रेणी में आता है। उन्होंने ये भी तर्क दिया कि पत्रकार को किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए। लेकिन जरा आप ही सोचिए कि लादेन के बारे में लिखते वक्त क्या पक्ष और विपक्ष की गुंजाइश रहती है?Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-36806711933836488492010-02-25T17:38:00.000-08:002010-02-25T17:49:25.899-08:00'फिदा' के जाने पर ये स्यापा क्यों?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLsgaF9cYonnDjsMK3KOcERryZfAj_kG8SOoqxCiCsRILUd5sLKxjmkpGm6jW__IebXKhmsihWtyyyifDWaQBWibuGGjFU5ZD1DlLSETW2TdyX1iiBBllWPA2vklWNYwsxCAq5JW8CSF2G/s1600-h/kundan.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 148px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLsgaF9cYonnDjsMK3KOcERryZfAj_kG8SOoqxCiCsRILUd5sLKxjmkpGm6jW__IebXKhmsihWtyyyifDWaQBWibuGGjFU5ZD1DlLSETW2TdyX1iiBBllWPA2vklWNYwsxCAq5JW8CSF2G/s200/kundan.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442363151281845362" /></a><strong>-कुंदन शशिराज</strong><br />मकबूल कतर जा रहे हैं। अब वहीं बसेंगे और वहीं से अपनी कूचियां चलाएंगे.. ये खबर सुनकर हिंदुस्तान में कुछ लोगों को बड़ा अफसोस हो रहा है। इस गम में वो आधे हुए जा रहे हैं कि कुछ अराजक तत्त्वों के चलते एक अच्छे कलाकार को हिंदुस्तान छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस पूरे ड्रामे को देखकर उन तथाकथित सहिष्णु लोगों पर हंसी, हैरानी और गुस्सा आता है। 95 साल का एक बूढ़ा जो अब तक आम लोगों की भावनाओं को अपनी कला के जरिये ठेंगे पर दिखाने की कोशिश करता आया है, जब वो खुद अपनी मर्जी से, अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए हिंदुस्तान छोड़ कर जा रहा है तो फिर ऐसे लोगों का कलेजा भला क्यों फट रहा है..? क्यों.. क्योंकि उनके पास आधी-अधूरी जानकारी है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वो इस पूरे ड्रामे को अपनी सहिष्णुता का झूठा चश्मा उतारकर ईमानदारी से देखें।<br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbKR8Lj07IkDtkYxbTiiF0V8iX7HHZ8STilfEVNviIc-SDBIHnmq4JrL2WZ_MT-j9SffKpMPxh34tij4enPDob68BUd8JTz-auLcJDVIdJSusJHVZRp5A2qjFOTUtSomEUtufBHoYMHYqG/s1600-h/mfh1.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442361764364326258" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 164px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbKR8Lj07IkDtkYxbTiiF0V8iX7HHZ8STilfEVNviIc-SDBIHnmq4JrL2WZ_MT-j9SffKpMPxh34tij4enPDob68BUd8JTz-auLcJDVIdJSusJHVZRp5A2qjFOTUtSomEUtufBHoYMHYqG/s200/mfh1.gif" border="0" /></a><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIKUKQyl7PXHPhgY4GNmb7R2spdV4v5XtbPWAWMA34omUQRWK8JZfz-eMiCOrFiATGA6wyl4YTomEtQd1c9z9IW_E6mxDhVI38WnlDs2AwLmhWNFjKatWVWXrK3rDdkI0n8xj3Kq-hSyUX/s1600-h/mfh1.gif"></a></div>मकबूल कतर में बस रहे हैं क्योंकि वहां उन्हें शाही परिवार का चारण बनकर शाही परिवार के लिए पेंटिंग बनाने का काम मिल गया है और जाहिर तौर पर जिंदगी को विलासिता से जीने के लिए वो शाही परिवार इस कलाकार को बेशुमार पैसा दे रहा है। पैसा इस करोड़पति कलाकार की पुरानी कमजोरी रही है। ये तस्वीरें सिर्फ अमीरों के ड्राइंग रूम के लिए बनाते हैं। इनकी करोड़ों की पेंटिंग्स खरीदने वाले धनपशुओं के लिए समाज का मतलब उनकी पेज थ्री सोसायटी होती है और खाली वक्त में टीवी चैनलों पर बैठकर किसी को भी धर्मनिरपेक्ष और धर्मांध होने का सर्टिफिकेट बांटना उनका शौक होता है। सवाल ये है कि हुसैन ने कुछेक 'पेंटिंग' बनाने के अलावा इस देश के लिए क्या कुछ सार्थक किया है? क्या उन्होंने गरीब.. अनाथ बच्चों के लिए कोई एनजीओ खोला या क्या उन्होंने पेंटिंग के जरिये कमाई अपनी करोड़ों-अरबों की दौलत का एक छोटा सा हिस्सा भी इस देश के सैनिकों के लिए समर्पित किया? मकबूल ने जो कुछ भी किया सिर्फ अपने लिए किया।<br /><br />तर्क देने वाले तर्क देते हैं कि एक कलाकार को कला की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। जरूर मिलनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि वो अपनी इस स्वतंत्रता का इस्तेमाल बार-बार दूसरों की सहनशक्ति का परीक्षण करने के लिए करें? कहते हैं अश्लील पेंटिंग्स का विरोध हुआ तो मकबूल व्यथित हो गए। सरकार ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया, लेकिन मकबूल को भरोसा नहीं हुआ। दरअसल मकबूल को समझ में आ गया था कि सरकार पर भरोसा न करने से पब्लिसिटी कुछ ज्यादा ही मिल रही है। लोगों के बीच इमेज एक ऐसे 'निरीह प्रतिभावान' कलाकार की बन रही है, जो अतिवादियों का सताया हुआ है। ये तो वाकई कमाल है। दूसरों की भावनाएं आपके लिए कुत्सित कमाई का सामान हैं। उस पर अगर विरोध हो तो आप बौद्धिक बनकर उनके विरोध पर भी ऐतराज जताने लगें।<br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmnPmSZbSnVMnNtstNGtWPlBs3_fms3jnELIsBdKd3ZtftiK7IhYPqe6x1AptBoCuzg3MRTdW4nrcSgSfMB9HPPQL0UJreTkjAqaz8oibXUnbjav2mh7cS4v2rKprdTe6DX0jKsm58RwLY/s1600-h/lead1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 232px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmnPmSZbSnVMnNtstNGtWPlBs3_fms3jnELIsBdKd3ZtftiK7IhYPqe6x1AptBoCuzg3MRTdW4nrcSgSfMB9HPPQL0UJreTkjAqaz8oibXUnbjav2mh7cS4v2rKprdTe6DX0jKsm58RwLY/s320/lead1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442362512316403426" /></a>अगर आपका दिल इतना ही बड़ा था तो आप एक माफी का छोटा सा बयान जारी कर खुद के एक दरियादिल कलाकार होने का परिचय दे सकते थे? मामले को शांत कर सकते थे। लेकिन आपके लिए न तो हिंदुस्तान के भावुक लोग कोई अहमियत रखते हैं और न ही हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था का आपके लिए कोई मतलब है। अश्लील पेंटिंग का मामला कोर्ट में गया तो इस 'कलाकार' ने एक बार भी कोर्ट में हाजिर होना जरूरी नहीं समझा। कोर्ट ने इसे अवमानना के तौर पर लिया और फिर मकबूल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया, फिर भी मकबूल को अक्ल नहीं आई। आती भी कैसे? अक्ल न आने की कीमत पर ही तो इतनी सारी पब्लिसिटी और करोड़पतियों के ड्राइंग रूम में पेंटिंग रखे जाने का कीमती तोहफा मिल रहा था। कतर में बसने की खबर भी मकबूल ने ऐसे फैलाई है, जैसे वो इसके जरिये हिंदुस्तान के मुंह पर तमाचा रसीद करने की खवाहिश पूरी कर रहे हों।<br /><br />दुबई में डेरा डाले हुसैन ने एक अंग्रेजी दैनिक को खुद अपनी तस्वीरें भेजी और कतर की नागरिकता मिलने की खबर दी। एक अखबार को खबर देने का मतलब ये था कि ये खबर पूरे देश में फैले। सरकार के तमाम आश्वासनों के बावजूद मकबूल के दिल में इस मुल्क में बसने की कोई ख्वाहिश नहीं है। अगर ये ख्वाहिश होती तो फिर इस देश में लौट आने के कई बहाने मकबूल के पास होने चाहिए थे। अगर बात विरोध की ही थी तो जितना विरोध 'माई नेम इज खान' का हुआ, उतना मकबूल का तो कतई नहीं हुआ था। 'खान' बढ़िया तरीके से रिलीज भी हुई और शाहरूख आज भी अपने मन्नत में उसी शान के साथ रह रहे हैं, जैसे पहले रहते थे।<br /><br />दरअसल मकबूल में खुद को सताया हुआ कलाकार दिखाने का शौक कुछ ज्यादा ही था। इसके साथ ही मकबूल का 'कला' बाजार दुबई और कतर जैसे अरब मुल्कों में खूब बढ़िया चलने भी लगा था। तेल भंडारों से बेशुमार पैसा निकाल रहे शेखों के पास अपने हरम पर खर्च करने के अलावा मकबूल की पेंटिंग खरीदने के लिए भी खूब पैसा है। मकबूल को और चाहिए भी क्या? सवाल ये है कि कतर में मकबूल को अपना बाजार दिख रहा है या फिर मकबूल को वाकई कतर में किसी कमाल की धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता की आस है? अगर ऐसा है तो फिर मां सरस्वती की तरह ही कतर में मकबूल बस एक बार अपने 'परवरदिगार' की एक 'पेंटिंग' बना दें.. फिर देखते हैं, जिस कतर ने आशियाना दिया है वो कतर मकबूल को एक नया आशियाना ढूंढने का वक्त भी देता है या नहीं। <strong>(इस पोस्ट के लेखक कुंदन शशिराज एक हिंदी न्यूज चैनल में काम करते हैं)</strong>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-56603107880182880292010-02-25T14:19:00.000-08:002010-02-25T14:29:10.071-08:00पत्रकार के कातिल डॉक्टर पर कानून का शिकंजा<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqN6idTDZq8YNIiK4nKncCp-ZNiSOGL5IGPH1N3DVVeIZe8UuGtLSI7UiuVvW3LNFOt9NfOhypbKCob4nbMWQBY-Bojl6l-mGXGRAf3Cb3pJ3MOOazqQgtRweNPxjmLSQ_-Gd4D4VGOhYK/s1600-h/Noida%25202%2520copy.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 238px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqN6idTDZq8YNIiK4nKncCp-ZNiSOGL5IGPH1N3DVVeIZe8UuGtLSI7UiuVvW3LNFOt9NfOhypbKCob4nbMWQBY-Bojl6l-mGXGRAf3Cb3pJ3MOOazqQgtRweNPxjmLSQ_-Gd4D4VGOhYK/s320/Noida%25202%2520copy.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442310976934620882" /></a>इस कहानी के दो अहम किरदार हैं। एक हाईप्रोफाइल और रसूखदार है, जो इस कहानी का खलनायक है। दूसरा पीड़ित है और एक अदना सा पत्रकार है, जो अब इस दुनिया में नहीं है। कहानी राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के एक जाने माने डॉक्टर और एक छोटे से अखबार में काम करने वाले पत्रकार के बीच अदावत की है। तारीख 16 अगस्त, 2007 थी। सुबह के करीब नौ बज रहे थे। नोएडा के सेक्टर 71 में रहने वाले महेश वत्स शायद अखबार के काम से ही घर से निकले थे।<br /><br />चश्मदीदों के मुताबिक पहले तो एक कार वाले ने उनके स्कूटर पर टक्कर मारी और फिर उस कार वाले समेत कई लोगों ने मिलकर लाठी और लोहे के रॉड से महेश वत्स पर कई वार किए। महेश के स्कूटर को टक्कर मारने वाले शख्स का नाम था डॉ. वीपी सिंह। डॉ. वीपी सिंह नोएडा के मशहूर अस्पताल के मालिक हैं। डॉक्टर साहब पर सिर्फ पत्रकार महेश वत्स के साथ मारपीट का ही इल्जाम नहीं है, बल्कि इल्जाम ये भी है कि वो मारपीट के बाद जख्मी हुए महेश वत्स को अपने दो गुर्गों की मदद से उठाकर अपने अस्पताल ले गए और अज्ञात जगह पर छिपा दिया। हालांकि इस घटना की खबर जब नोएडा पुलिस को मिली तो पुलिस ने प्रयाग अस्पताल पर छापा मारा और वहां से महेश वत्स की लाश को बरामद कर लिया।<br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizRu0F070CS1o1ekFunH_Qnt0ebFoRAyX0ZpzTURUvJ2-NBwJedpGXn4rnT5wmxBTE_OHC0diff9dpL_uRvDUqdMh8A5ck5GeJDw_rRUMh2Qk9sSjx8e0lhZaU3coMpG9lLladSUkj3NAq/s1600-h/Noida%25201%2520copy.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 228px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizRu0F070CS1o1ekFunH_Qnt0ebFoRAyX0ZpzTURUvJ2-NBwJedpGXn4rnT5wmxBTE_OHC0diff9dpL_uRvDUqdMh8A5ck5GeJDw_rRUMh2Qk9sSjx8e0lhZaU3coMpG9lLladSUkj3NAq/s320/Noida%25201%2520copy.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5442311202496771362" /></a>उस वक्त पुलिस ने डॉ. वीपी सिंह के खिलाफ महेश वत्स के अपहरण का मामला दर्ज किया था। लेकिन डॉ. वीपी सिंह अपने रसूख और पहुंच की वजह से बचते रहे। इसके बावजूद महेश वत्स के परिवारवालों ने हार नहीं मानी। वो यह सोचकर कानून की लड़ाई लड़ते रहे कि एक न एक दिन उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा। अभी उनकी ये लड़ाई अंजाम तक तो नहीं पहुंची है लेकिन इंसाफ का आगाज जरूर हो चुका है। गौतम बुद्ध नगर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने डॉ. वीपी सिंह को महेश वत्स के खिलाफ साजिश रचने और अपहरण करके उनकी हत्या करने का दोषी पाया है। कोर्ट ने नोएडा पुलिस को आदेश दिया है कि वो धारा 302, 364 और 120बी के तहत डॉ. वीपी सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज करे। <br /><br />एक पत्रकार की हत्या के इस मामले में सबसे अहम बात ये है कि महेश वत्स के डॉ. वीपी सिंह से पारिवारिक रिश्ते थे। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि डॉ. वीपी सिंह उनकी जान के दुश्मन बन गए। मुमकिन है कि महेश वत्स को डॉ. वीपी सिंह का कोई ऐसा राज मालूम हो गया हो, जिसे वो फाश करने की तैयार कर रहे हों। ये भी हो सकता है कि दोनों के बीच किसी बात को लेकर सौदेबाजी चल रही हो और बात बनने की बजाय बिगड़ गई है। इसीलिए शायद डॉ. वीपी सिंह ने महेश वत्स को सबक सिखाने के लिए दूसरा तरीका निकाला और हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटा दिया। हालांकि पत्रकार महेश वत्स की हत्या का सच क्या है। ये अभी भी पूरी तरह सामने नहीं आ पाया है।<br /><br />इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिल पाया है कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि डॉ. वीपी सिंह ने पत्रकार महेश वत्स की हत्या कर दी? महज एक्सीडेंट की घटना या उसकी वजह से हुआ कोई विवाद कत्ल की वजह नहीं बन सकता। वो भी तब जब महेश वत्स से उनके पारिवारिक संबंध थे। यानी कत्ल की इस कहानी में कुछ न कुछ ऐसा जरूर है जो अभी सामने आना बाकी है। डॉ. वीपी सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने और मामले की जांच करते वक्त नोएडा पुलिस को इन सभी पहलुओं पर भी गौर करना होगा।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-14922587938835656322010-01-17T01:08:00.000-08:002010-01-17T01:24:39.787-08:00बीबीसी की इस पत्रकारिता को सलाम!<span style="font-weight:bold;">बीबीसी हिंदी डॉट</span> कॉम में प्रकाशित इस <b><span class="Apple-style-span" style="color:#FF0000;"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2010/01/100115_laden_photos_pp.shtml">रिपोर्ट</a></span></b> में किसी रिपोर्टर का नाम तो नहीं है, लेकिन जिसने भी इस खबर को लिखा है उसके हाथ चूम लेने को जी चाहता है। यकीन मानिए मैंने तो जबसे ओसामा बिन लादेन जैसी 'महान' शख्सियत के बारे में ये रिपोर्ट पढ़ी है और बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर सजी 'उनकी' तस्वीरों को देखा है तभी से मैं बीबीसी की पत्रकारिता पर अभिभूत हूं। खबर का शीर्षक देखकर ही ओसामा की 'महानता' का एहसास हो जाता है। शीर्षक है- <b>'क्या ऎसे दिखते होंगे लादेन?'</b> आप समझ सकते हैं कि लादेन बीबीसी के लिए कितनी 'सम्मानित' शख्सियत हैं। आगे की पंक्ति पर गौर फरमाएं। रिपोर्टर लिखता है-<b>ख़ुफ़िया एजेंसियाँ वर्षों से ये दावा कर रही हैं कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर किसी क़बायली इलाक़े में छिपे हुए हैं।</b> वाकई दुनिया के सबसे बड़े और खतरनाक आतंकी के लिए इतना 'आदर भाव' बीबीसी के संपादक के 'दिल में' ही हो सकता है। बीबीसी हिंदी की संपादक <b>सलमा जैदी</b> इस 'लोकतांत्रिक' सोच के लिए वाकई बधाई की हकदार हैं। <div><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh10v59RwNIcYO5hE0De302XSKSjmaQAwlY9VjKV8ne-i0U3qF4un-vkHviWrkNKJsqKeGQR4HpEONNLTUxuDqgPGdVK5FVETfGgJYvgSWDf5J9_nHYHrJ-29xVckNiVz7Z0LsWdzG-ta-q/s1600-h/osama_photos_on+BBC.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 112px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh10v59RwNIcYO5hE0De302XSKSjmaQAwlY9VjKV8ne-i0U3qF4un-vkHviWrkNKJsqKeGQR4HpEONNLTUxuDqgPGdVK5FVETfGgJYvgSWDf5J9_nHYHrJ-29xVckNiVz7Z0LsWdzG-ta-q/s200/osama_photos_on+BBC.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5427635523811529410" /></a>आगे की चंद और पंक्तियों पर भी गौर करें-<b>'ये तस्वीर लादेन की वास्तविक तस्वीर नहीं, बल्कि डिजिटल तकनीक से बनाई गई तस्वीर है और इस तस्वीर में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि इस समय लादेन कैसे दिखते होंगे।'</b> खबर पढ़कर आपको कहीं भी ये नहीं महसूस होगा कि ओसामा बिन लादेन दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी है। खास बात यह भी है कि पूरी रिपोर्ट में लादेन के लिए कहीं भी आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। शायद बीबीसी के संपादक की नजर में लादेन भी उतनी सम्मानित 'हस्ती' हैं जितने कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री। इस खबर को पढ़ने के बाद शायद पत्रकारों को खबर लिखने का सही तरीका बीबीसी से सीखना होगा। कम से कम मुझे तो ऎसा ही लगता है। </div><div><br />खबर की अगली पंक्ति पर भी एक नजर डालें- <b>'एफ़बीआई के फ़ॉरेंसिक विशेषज्ञों ने उनके चेहरे की रूप-रेखा में थोड़ा सुधार किया है और यह दिखाने की कोशिश की है कि लादेन इस समय कैसे दिख सकते हैं।'</b> अमेरिका ने अपने स्वार्थ के लिए ओसामा को अब भी दुनिया की नजरों में जिंदा रखा है, ऎसी खबरें तो आप कई बार पढ़ चुके होंगे। लेकिन ब्रिटेन में ओसामा इतनी सम्मानित शख्सियत हैं ये आप नहीं जानते होंगे। ये मैं दावे के साथ कह रहा हूं। बीबीसी की ये खबर आतंकवाद से लगातार लड़ रहे हिंदुस्तान के लिए एक चेतावनी है कि वो अतंरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने, उससे लड़ने और उसे खत्म करने के अमेरिका और ब्रिटेन के दावों की असलियत को समझे। यह खबर इन देशों की उसी 'सोच' को उजागर करती है। </div><div><br />ये कितनी हैरत की बात है कि एक तरफ ब्रिटेन के सैनिक अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ 'अभियान' छेड़ते हैं। अभियान भी ऎसा वैसा नहीं, किसी आतंकवादी की तलाश में छेड़ा गया अब तक का सबसे अभियान। दावों के मुताबिक दोनों देश ओसामा की खोज में करोड़ों-अरबो डॉलर पानी की तरह बहा चुके हैं। इसके बावजूद ओसामा है कि हाथ ही नहीं आता। अब जरा बीबीसी पर गौर करें। बीबीसी ब्रिटेन का सरकारी मीडिया है। सरकार के पैसों पर चलता है। कहा भी जाता है कि किसी देश का सरकारी मीडिया उसकी सोच उसकी संस्कृति का 'आईना' होता है। उसी आईने का एहसास करा रही है बीबीसी हिंदी की यह खबर।</div><div><br />खबर की अगली कुछ और पंक्तियों पर गौर करने से पहले हम बता दें कि लादेन को ढूँढ़ निकालने की कोशिश में जुटी अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी फ़ेडेरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन यानी एफ़बीआई ने लादेन की नई तस्वीर जारी की है। इस तस्वीर को जारी करने का मकसद दुनिया को यह बताना है कि लादेन अब भी जिंदा है और उसने अपना रूप बदल लिया है। आइये अब बात करते हैं खबर की अगली कुछ पंक्तियों की। आगे लादेन की यह खबर लिखते वक्त भी उसके सम्मान का पूरा-पूरा खयाल रखा गया है। हो सकता है कि बीबीसी को डर हो कि कहीं लादेन उन्हें 'मानहानि का नोटिस' न भेज दे। </div><div><br />फिर गौर कीजिए। लादेन साहेब की दो तस्वीरों के बारे में जानकारी देते हुए खबर में लिखा गया है- <b>इन दो तस्वीरों में से एक में लादेन को पारंपरिक पोशाक में दिखाया गया है तो दूसरी तस्वीर में वे पश्चिमी वेश-भूषा में दिखते हैं और उनकी दाढ़ी भी कतरी हुई है।</b> हमें यकीन है कि लादेन जहां कहीं भी 'होंगे' बीबीसी की इस खबर को पढ़कर के बारे में जानकर उतने ही अभिभूत हो जाएंगे जितने कि हम हैं। पूरी खबर में लादेन के लिए 'उन्हें' और 'वे' जैसे सम्मानित शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। आगे लिखा है-<b>ओसामा बिन लादेन का कथित वीडियो आख़िरी बार वर्ष 2007 में आया था. वो वीडियो 30 मिनट का था और उस वीडियो में लादेन को ये कहते दिखाया गया था कि जॉर्ज बुश को अमरीकी जनता ने दूसरी बार समर्थन दिया है कि वे इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में लोगों की हत्या जारी रखें। </b></div><div><b><br /></b></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="font-family: monospace; font-size: 13px; font-weight: normal; white-space: pre-wrap; "><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi37h2RtvAJhx6xkMu1p70_lho77JOoJ3FX6Xf3o4t9rNKq6C7ri0Isi-C6sppEg7gXxtX6A0Vzt7yZfvzGQjLrslc3XQTPuPx7tundoltlyPgy0FUKl5sbswr5vxmN8hV2Wd_qP9Lcms4B/s1600-h/hakimullah226.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 150px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi37h2RtvAJhx6xkMu1p70_lho77JOoJ3FX6Xf3o4t9rNKq6C7ri0Isi-C6sppEg7gXxtX6A0Vzt7yZfvzGQjLrslc3XQTPuPx7tundoltlyPgy0FUKl5sbswr5vxmN8hV2Wd_qP9Lcms4B/s200/hakimullah226.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5427636509628634210" /></a></span></b>अब <b>बीबीसी हिंदी डॉट कॉम</b> की एक और <b><span class="Apple-style-span" style="color:#FF0000;"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/southasia/2010/01/100116_hakimullah_injured_vv.shtml">खबर</a></span></b> पर गौर करें। खबर का शीर्षक है-<b>'</b><b>घायल हो गए हैं हकीमुल्ला।' </b>दुनिया जानती है कि हकीमुल्ला तालिबान का एक खतरनाक आतंकवादी है। लेकिन बीबीसी हकीमुल्ला के बारे में खबर लिखते हुए उनके सम्मान का खास खयाल रखता है। खबर का पहला पैरा है-<b>पाकिस्तान में तालेबान प्रवक्ता ने स्वीकार किया है कि गुरुवार को हुए अमरीकी ड्रोन हमले में उनके नेता हकीमुल्लाह महसूद घायल हो गए हैं। इस हमले में हकीमुल्लाह महसूद के मारे जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन तालेबान ने दावा किया था कि वे बच निकलने में क़ामयाब हुए हैं।</b> खबर के एक और पैराग्राफ पर नजर डालिए औऱ खुद फैसला कीजिए कि बीबीसी की नजर में आतंकवादी कितने सम्मानित हैं।....<b>उधर अधिकारियों ने यह भी दावा किया है कि नौ जनवरी को हुए मिसाइल हमले में एक प्रमुख तालेबान नेता जमाल सईद अब्दुल रहीम की मौत हो गई है। जमाल सईद उन चरमपंथियों में से थे जिसकी अमरीकी केंद्रीय जाँच एजेंसी एफ़बीआई को सबसे अधिक तलाश है. उन पर 50 लाख डॉलर का ईनाम था. आरोप है कि 1986 में पैन अमरीकन वर्ल्ड एयरवेज़ के एक विमान के अपहरण में उनका हाथ था।</b></div><div><b><br /></b>बीबीसी की संपादक सलमा जैदी को एक बार फिर लाख-लाख बधाई। वैसे उन्हें जितनी बधाइयां दी जाएं कम हैं। हमारा सुझाव है कि सलमा जी बीबीसी के पाठकों को लादेन जैसी महान हस्ती से रूबरू कराने के लिए एक श्रृंखला शुरू करें। ताकि लोग उनकी 'खूबियों' से वाकिफ हो सकें। चाहे तो उनके समाजसेवी संगठन 'अलकायदा' के लिए ब्रिटेन समेत कई देशों के लोगों से आर्थिक सहायता की अपील भी कर सकती हैं। हमे यकीन है कि दुनिया में उनकी जैसी 'सोच' के लोगों की कमी नहीं होगी। उनकी एक अपील पर ही बीबीसी के दफ्तर पर चेकों का ढेर लग जाएगा। एक संपादक किस कदर 'निष्पक्ष' हो सकता है यह सलमा जैदी ने साबित कर दिया है। साथ ही उन पत्रकारों के लिए एक रास्ता भी बता दिया है जो भविष्य में बीबीसी की वेबसाइट का संपादक बनने की हसरत रखते हैं। बहुत-बहुत शुक्रिया सलमा जैदी जी। हम चाहेंगे कि आप का नाम भी एक दिन ओसामा की तरह ही दुनिया की सम्मानित शख्सियतों में शुमार हो। (दोनों संबंधित तस्वीरें बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से साभार)</div><div><br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-60484264123410737372009-11-05T17:39:00.000-08:002009-11-07T01:57:32.795-08:00अब कौन करेगा 'कागद कारे'<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeKn1-fP8utti2nSlFTi9QFU3cHKWEc-LRpG89897Wrfsof2R12ey_3RmXXvtPxQAMUnQgFJCHCiW4CATpoI332V7QNvH3deoxBFT-dzIrbmeLdaelN70gDYdeCV0ybnTVN9S6DZxUIr2q/s1600-h/PJoshi.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 181px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeKn1-fP8utti2nSlFTi9QFU3cHKWEc-LRpG89897Wrfsof2R12ey_3RmXXvtPxQAMUnQgFJCHCiW4CATpoI332V7QNvH3deoxBFT-dzIrbmeLdaelN70gDYdeCV0ybnTVN9S6DZxUIr2q/s200/PJoshi.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5400799760951500834" /></a>खामोश हो गई एक मुखर आवाज। हमेशा के लिए खामोश हो गए प्रभाष जोशी। हिंदी पत्रकारिता का एक युग खत्म हो गया। पत्रकारिता जगत में प्रभाष जोशी के मुरीद भी हैं और आलोचक भी। पैसे लेकर चुनावी खबरें छापने वाले अखबारों के खिलाफ अगर कोई सबसे पहले बोला तो वह प्रभाष जोशी ही थे। प्रभाष जोशी ने ऐसे अखबारों के खिलाफ बाकायदा अभियान ही छेड़ दिया था। उन्होंने चुनाव में बिकाऊ अखबारों की जमकर खबर लिखी। जनसत्ता में लगातार लेख लिखे। नतीजा यह हुआ कि पैसे लेकर खबरें छापने वाले अखबारों के खिलाफ पूरे देश में माहौल बनना शुरू हो गया। <br /><br />जातीय दंभ के मुद्दे पर प्रभाष जोशी को आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा। अपने एक लेख में बड़बोलापन दिखाते हुए जोशी ने अलग-अलग क्षेत्र की कुछ हस्तियों के नाम गिनाए और यह दावा कर दिया कि वह इसलिए श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह ब्राह्मण हैं। प्रभाष जोशी के इस लेख पर बवाल मच गया। समर्थकों को अचरज हुआ कि इतने बड़े पत्रकार के भीतर जातीयता को लेकर इतना दंभ कैसे हो सकता है? आलोचकों को भी यकीन नहीं हुआ कि प्रभाष जोशी ऐसा सोच सकते हैं।<br /> <br />प्रभाष जोशी ने जो कहा ताल ठोंककर कहा। यही उनकी पहचान भी बन गई। जनसत्ता में उन्होंने तकरीबन हर मुद्दे पर लिखा। संघ के खिलाफ उनकी वक्रदृष्टि। क्रिकेट के प्रति पागलपन। पत्रकारिता के प्रति लगाव और ईमानदारी। यही उनकी विरासत बन गई। वह प्रभाष जोशी ही थे जिन्होंने 1983 में जनसत्ता का संपादक पद संभालने के बाद इसे एक ऐसे अखबार की पहचान दिलाई जो बेखौफ होकर लिखता है। बेखौफ होकर अपनी बात कहता है। नतीजा यह हुआ कि प्रभाष और जनसत्ता एक दूसरे के पूरक बन गए। 1995 में जनसत्ता के संपादक पद से रिटायर होने के बाद वह बतौर सलाहकार इस अखबार से जुड़े रहे। सिर्फ जुड़े ही नहीं रहे। लगातार कागद भी कारे करते रहे।<br /><br />प्रभाष जोशी की जगह को भर पाना नामुमकिन है। जनसत्ता में हर रविवार को छपने वाला उनका कॉलम 'कागद कारे' अब नहीं होगा। जनसत्ता के पहले पन्ने पर क्रिकेट जैसे विषय पर एक से बढ़कर एक रिपोर्ट और टिप्पणियां लिखने वाला भी अब कोई नहीं होगा। जनसत्ता अब भी है लेकिन अब प्रभाष जोशी नहीं हैं। इस सच्चाई को स्वीकार करना ही होगा। उनके चाहने वालों को, उनके आलोचकों को और हम सबको।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-50210176920195862452009-10-25T13:43:00.000-07:002009-10-27T00:10:22.597-07:00बेनामियों के मारे ब्लॉगर बेचारे<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKjQiUVnGzI4O-jyt8INFG8_qCmQFQpk_a1U1p6h1AyoMktCbdTUQG-RhdLjMCDkqY9y0ze82dZ_v19FmkW_KgJxqNMEFtO-Ob8dEbN20YDlaMrFot5MetG3qT-_BcNkS5H8B-bwybF1do/s1600-h/blogger-logo.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 199px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKjQiUVnGzI4O-jyt8INFG8_qCmQFQpk_a1U1p6h1AyoMktCbdTUQG-RhdLjMCDkqY9y0ze82dZ_v19FmkW_KgJxqNMEFtO-Ob8dEbN20YDlaMrFot5MetG3qT-_BcNkS5H8B-bwybF1do/s200/blogger-logo.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5396642374354969442" /></a></a><strong>ऐतिहासिक शहर इलाहाबाद</strong> में संपन्न हुई दो दिनी 'ब्लॉगर मीट' (कुछ लोगों को इस शब्द पर आपत्ति है) के दौरान वैसे तो बहुत कुछ उल्लेखनीय हुआ। लेकिन मेरे खयाल से इस संगोष्ठी को सबसे ज्यादा याद किया जाएगा अराजकता के लिए। अराजकता का आलम यह था कि संगोष्ठी के लिए बाकायदा निमंत्रण और टिकट भेजकर बुलाए गए कई तथाकथित ब्लॉगर संगोष्ठी में शरीक होने की बजाए 'इलाहाबाद दर्शन' में व्यस्त थे। आयोजकों को यह तक नहीं मालूम था कि आखिर वो करना क्या चाहते हैं। हास्यास्पद बात तो यह थी कि कई ब्लॉगर मंच पर पहुंचने के बाद पूछ रहे थे कि उन्हें बोलना किस विषय पर है।
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<br /><strong>इस ब्लॉगर मीट में</strong> कई मशहूर ब्लॉगरों की गैरमौजूदगी खलने वाली थी। पता नहीं 'उड़नतश्तरी' वाले समीर लाल 'समीर' को आमंत्रित किया गया था या नहीं। अगर नहीं तो क्यों? अगर बात ब्लॉगिंग की हो रही है तो आप समीर की लेखनी को किसी भी हालत में दरकिनार नहीं कर सकते। वह जितनी खूबी से हल्के-फुल्के विषयों पर लिखते हैं उतनी ही खूबी से गंभीर विषयों पर भी। उनकी कई पोस्ट तो इतनी यादगार हैं कि बार-बार पढ़ने को दिल करता है। समीर के अलावा चोखेरबालियों की गैरमौजूदगी भी सवाल खड़े कर रही थी। महिला ब्लॉगरों के नाम पर अगर कोई दिखा तो सिर्फ मनीषा पांडे, मीनू और आभा। कई अच्छी महिला ब्लॉगर संगोष्ठी से नदारद थीं। या तो वो आईं नहीं या शायद उन्हें बुलाने काबिल नहीं समझा गया।
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<br /><strong>अविनाश, डॉ. अरविंद, अनूप शुक्ल</strong>, हर्षवर्धन, संजय तिवारी और रवि रतलामी की मौजूदगी अहम और सुखद थी। इस विशेष मौके पर रवि रतलामी की मौजूदगी का फायदा उठाया जा सकता था। ब्लॉगरों को तकनीकी ज्ञान दिलाया जा सकता था। रवि रतलामी इसके लिए तैयार भी नजर आ रहे थे, लेकिन मेहमान ब्लॉगर शायद तैयार नहीं थे। यही वजह है कि मंच पर आकर रवि भी बेबस से नजर आए। एक अच्छा मौका जाता रहा, क्योंकि तकनीक ही ऐसी चीज है जिससे हिंदी वाले दूर भागते हैं। रवि इस 'डर' को दूर करने में सक्षम थे।
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<br /><strong>पहले सत्र से शुरू हुई अराजकता</strong> दूसरे सत्र तक अपने चरम पर पहुंच गई। कुछ ब्लॉगरों ने तो हद ही कर दी। उन्हें यह तक नहीं पता था कि बोलना क्या है? कुछ महज इसलिए खुश हो गए कि जमकर खाने-पीने को मिल गया। कुछ इसलिए परेशान थे कि 'बेड टी' नहीं मिली। संगोष्ठी में जिस गंभीर चर्चा की उम्मीद की जा रही थी वह सिरे से गायब रही। ऐसा लग रहा था कि कुछ लोग एक जगह पर पिकनिक मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। खाए-पिए, अघाए और चल दिए। वैसे आखिर तक यह समझ में नहीं आया कि संगोष्ठी में निमंत्रण के लिए 'जरूरी योग्यता' क्या थी?
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<br /><strong>महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय</strong> और हिंदुस्तानी एकेडमी इलाहाबाद की तरफ से आयोजित राष्ट्रीय ब्लॉगर संगोष्ठी के दूसरे सत्र में बेनाम टिप्पणीकारों का मुद्दा छाया रहा। बेनाम टिप्पणीकारों से सभी ब्लॉगर परेशान नजर आए। यह ठीक है कि कुछ अनाम टिप्पणीकारों ने ब्लॉग जगत में अराजकता मचा रखी है, लेकिन 'अनाम' के तौर पर अपनी बात कहने की परंपरा हमेशा से रही है। यह एक व्यवस्था है, जिसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। कई बार 'बेनाम' टिप्पणीकार सच भी कह जाते हैं, जो कड़वा होता है। लेकिन होता सच है। बेनाम टिप्णीकार कमोबेश कुछ उसी तरह हैं जैसे एक मतदाता अपना वोट डाल जाता है। उसके वोट का असर भी दिखाई देता है, लेकिन किसी को पता नहीं चलता कि वो कौन है?
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<br /><strong>संगोष्ठी में ब्लाग जगत</strong> के ताकतवर होने और पांचवे खंभे के तौर पर स्थापित होने की खुशफहमी पालने वाले भी कम नहीं थे। इसमें कोई शक नहीं कि ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है। इसकी ताकत को लोग स्वाकार भी कर रहे हैं। लेकिन अराजकता किसी भी माध्यम में हो, हानिकारक होती है। आज टीवी चैनल अराजकता के दौर से गुजर रहे हैं तो कल ब्लॉग जगत के सामने भी यही समस्या आने वाली है। इसलिए जरूरत है कि वक्त रहते ही इस समस्या का हल निकाला जाए। ब्लॉगर गंभीर हो जाएं। बचपना छोड़ दें। वर्ना टीवी की तरह लोग उन्हें भी गंभीरता से लेना छोड़ देंगे।
<br />Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-56898455738906715762009-10-17T00:11:00.001-07:002009-10-17T00:14:31.205-07:00जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZzLMkndHGUUvWkrVE6Ce1GDYYsAxGfAyKVzjlwbr5wBD-cp_GPSrbLF71ucxcPNblG8oJZiPuA6U0pLJyiUTCq1GXBchDpfqFuTOrLzKKkJHf45XoLMxpMpToHl5FpjP0CEencRR0JKOx/s1600-h/Happy+Diwali.gif"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 301px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZzLMkndHGUUvWkrVE6Ce1GDYYsAxGfAyKVzjlwbr5wBD-cp_GPSrbLF71ucxcPNblG8oJZiPuA6U0pLJyiUTCq1GXBchDpfqFuTOrLzKKkJHf45XoLMxpMpToHl5FpjP0CEencRR0JKOx/s320/Happy+Diwali.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5393463300923493746" /></a>सच कहूं तो त्योहारों को लेकर मैं कोई खास उत्साहित नहीं रहता। त्योहार वाला दिन मेरे लिए आम दिनों जैसा ही होता है। घर पर टीवी देखना या इंटरनेट पर वक्त बिताना ज्यादा अच्छा लगता है। पूजा-पाठ, पटाखों का शोर और बाजार से ढेर सारा सामान जुटाने का झंझट, पता नहीं लोगों को यह सब करके क्या मिलता है। <br /><br />इस दिवाली पर एक अच्छी खबर सुनने को मिली। इस बार दिल्ली सरकार ने पटाखों के लिए लाइसेंस बहुत कम संख्या में जारी किए हैं। इसिलिए इस बार दिल्ली के बाजार में पटाखे कम ही नजर आए। वर्ना याद आते हैं दिवाली के वो दिन जब लोग इस मौके पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करते नजर आते थे। एक पड़ोसी ने 100 रुपये वाला बम फोड़ा तो अगले को 150 वाला बम फोड़ना है। महज इसलिए क्योंकि उसे खुद को ज्यादा ताकतवर, संपन्न जताना है। उनकी ताकत दिखाने वाले ये बम इतना शोर करते हैं कि मैं बता नहीं सकता। इन पटाखे रूपी बमों के फटने का सिलसिला शुरू होता था तो खत्म होने का नाम नहीं लेता था। <br /><br />उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार यह सिलसिला थम जाएगा। थमेगा नहीं तो कम तो जरूर हो जाएगा। अगर ऎसा होता है तो इसका असर दिल्ली के पर्यावरण पर भी पड़ेगा। वैसे पहले की तुलना में महानगरों के लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो गए हैं। बच्चे भी पीछे नहीं हैं। होश संभालते ही वो समझदारी की बातें करने लगें हैं। नई पीढ़ी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास जल्दी होता है। ऎसा मेरा अनुभव है। एक बात और मिठाइयां जरा संभलकर खाइये-खिलाइयेगा। मिलावटखोरों को सिर्फ अपनी आमदनी की फिक्र होती है, किसी की सेहत से उन्हें कोई मतलब नहीं। आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं। <span style="font-weight:bold;">आपका रवींद्र </span>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-91097186562396994302009-10-04T16:00:00.001-07:002009-10-04T16:11:00.402-07:00ब्रेकिंग न्यूज की मजबूरी क्यों?कुछ दिन पहले कई चैनलों वाले बड़े मीडिया ग्रुप के एक छोटे या फिर कहें मंझोले हिंदी चैनल के संपादक को पढ़ रहा था। वह छोटे और मध्यम श्रेणी के चैनलों की परेशानियां गिना रहे थे। उनका कहना था कि छोटे चैनलों की कई मजबूरियां हैं। बकौल संपादक, छोटे चैनल कितना भी अच्छा कर लें, उनका काम उतना नोटिस में नहीं आता जितना कि बड़े चैनलों का। संपादक महोदय की इस बात से असहमत होने की कोई वजह नहीं है। लेकिन इन्हीं तथाकथित मजबूरियों की आड़ लेकर ये छोटे चैनल कुछ भी करने को उतारू हो जाते हैं। छोटे और मंझोले चैनल किस तरह खबरों के साथ खिलवाड़ करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। <br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO6gClT1AAkh1p_9YU9zNPngwOOIfBV1pPXivGm30LYF6y3Ojgbq1W7VSw-A7MN_Abe8KXzI7Ftp_kqkMHKcb2YnxwrUVwfVAnpBzZqqvbm7ijg1sZ977u6FMTeJhcOD6H-mvxt1fD-ATS/s1600-h/breaking-news-india-003.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO6gClT1AAkh1p_9YU9zNPngwOOIfBV1pPXivGm30LYF6y3Ojgbq1W7VSw-A7MN_Abe8KXzI7Ftp_kqkMHKcb2YnxwrUVwfVAnpBzZqqvbm7ijg1sZ977u6FMTeJhcOD6H-mvxt1fD-ATS/s320/breaking-news-india-003.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5388883312455840658" /></a>एक छोटे चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चली। दिल्ली में मिली अज्ञात लाश। लाश किसकी है। मौत कैसे हुई। किसकी हुई। क्यों हुई। कुछ नहीं मालूम। इसके बावजूद देखते ही देखते यह खबर सभी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज बनकर चलने लगी। जो खबर किसी अखबार में संक्षिप्त तो क्या बमुश्किल सिंगल कॉलम में छपती और सिर्फ दो-तीन लाइन में खत्म हो जाती, वो चैनलों के लिए ब्रेकिंग न्यूज है। अब सवाल यह उठता है कि अगर अज्ञात लाश मिलना ब्रेकिंग न्यूज है तो रोजाना सैकड़ों ब्रेकिंग न्यूज सिर्फ अज्ञात लाश की ही चलनी चाहिए। कहीं से भी ये डेटा निकाला जा सकता है कि रोजाना हर शहर में एक-दो अज्ञात लाश तो मिल ही जाती हैं। तब तो सभी अज्ञात लाशें ब्रेकिंग न्यूज हैं? आखिर जब तक लाश के पीछे से कोई स्टोरी नहीं निकल के आती तो वह खबर चैनल की मुख्य खबर कैसे बन सकती है? इस लिहाज से देखा जाए तो खुद को नेशनल कहने वाले इन न्यूज चैनलों के हिसाब से उस वक्त देश की सबसे बड़ी खबर वही होती है? <br /><br />हिंदी न्यूज चैनलों में भेड़चाल का तो कोई जवाब ही नहीं। एक चैनल पर कोई खबर चलती है और अगले ही पल वही खबर सभी चैनलों पर ब्रेकिंग बनकर नजर आने लगती है। कोई चैनल यह तक पता करने की जहमत नहीं उठाता कि खबर सच भी है या नहीं। अगर झूठ निकली तो सिर्फ बेशर्मी से उसे हटा लिया जाता है। इससे ज्यादा ये चैनल कुछ कर भी नहीं सकते। उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए। <br /><br />एक खबर चलती है तो दूसरे चैनल में उसी वक्त वही खबर चलाने की हड़बड़ी मच जाती है। समझ में यह नहीं आता कि अगर कोई खबर चैनल पर पहले से चल रही है तो दूसरे चैनल उसे कॉपी करने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाते हैं? क्या वो यह सोचते हैं कि उनके चैनल पर वही खबर चलेगी तो दर्शक उस चैनल को छोड़कर उनका चैनल देखने लगेंगे? दर्शकों को भी तो वेराइटी चाहिए या नहीं? सभी चैनलों पर एक वक्त में एक ही खबर चलेगी वो भी अज्ञात लाश मिलने जैसी तो जरा सोचिए कोई न्यूज चैनल क्यों देखेगा। दिल्ली या नोएडा में अज्ञात लाश मिली तो मुंबई, पटना या रायबरेली में बैठे दर्शक को उससे क्या मतलब है? मतलब इसलिए भी नहीं हो सकता क्योंकि चैनल के पास उस लाश के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हो सकता है वह कोई नशेड़ी हो, गंजेड़ी हो? चैनल तर्क दे सकते हैं कि नशेड़ी गंजेड़ी का मरना भी तो खबर है। जरूर है। लेकिन पता तो हो कि अमुक व्यक्ति नशेड़ी है। गंजेड़ी है। चैनल को तो उसके बारे में कुछ भी नहीं पता। फिर भी वह ब्रेकिंग न्यूज है।<br /><br />कई बार चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज चलाने की इतनी हड़बड़ी होती है कि ठीक से खबर कन्फर्म तक नहीं की जाती। दूसरा चैनल चला रहा है, इसलिए चलाना है। फौरन चलाना है। पता नहीं इसके पीछे क्या सोच है? भले ही खबर बाद में गलत निकले। झूठी निकले। मुंबई हमला, दिल्ली बम धमाके जैसी बड़ी घटना या बड़ी खबर सभी चैनलों पर एक साथ चले तो समझ में आता है क्योंकि ऐसी खबर लगातार अपडेट होती रहती है। किसी चैनल के पास कोई इन्फार्मेशन होती है तो किसी दूसरे के पास कोई और। दर्शक भी ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए चैनल बदलता रहता है। लेकिन हर खबर को एक ही तराजू से तौलने की आदत के पीछे आखिर कौन सा तर्क है? आखिर यहां कौन सी मजबूरी है? दूसरे चैनल को फॉलो करके क्या कोई चैनल ये साबित कर सकता है कि वह सबसे तेज है। कतई नहीं। फिर यह अफरा-तफरी आखिर क्यों? <br /><br />संपादक महोदय, जब आप अफरा-तफरी मचा कर रखेंगे। बड़े चैनलों को फ़ॉलो ही करते रहेंगे। तो आपको कोई नोटिस भी करे तो क्यों? क्या भेड़चाल वाले इन चैनलों में से कोई यह दावा कर सकता है कि वह सबसे अलग है उसे ही देखें? जो अलग है वह देखा जाता है। यह फैक्ट है। इंडिया टीवी इसका उदाहरण है। यह अलग बात है कि अलग दिखने के लिए इंडिया टीवी वह दिखाता है जो खबर नहीं होती। कई बार दर्शकों से धोखा किया जाता है। लेकिन अलग करेंगे तो देखे जाएंगे। यह साबित हो चुका है। इसलिए चैनलों के संपादकों से गुजारिश है कि दूसरे चैनलों को फॉलो करने की बजाय अलग करें, अलग सोचें। उसके बाद आप जरूर देखे जाएंगे। जो पेश करें वह सच हो तो और भी बेहतर। झूठ दिखाएंगे तो एक न एक दिन एक्सपोज हो ही जाएंगे।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-26535065670156602162009-09-18T23:22:00.000-07:002009-09-18T23:40:42.698-07:00सनसनी बोले तो सन्नाटे को चीरते श्रीवर्धन<div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhreCTLkp3Mxg7Y_qAaukhz0DE4Ph6nZKIY6lcWIhh2O1KKW8DprHc2483xF_5mnzdMFsZoXRe5D3mmwOuIxIdnNXf_9RUG7L1SV3yxH1n8sC_Ayr6Uyzdxhk61Vd2CQkjVnUj0ESxMGGWy/s1600-h/Shri+vardhan.jpg"><img style="MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 150px; FLOAT: left; HEIGHT: 150px; CURSOR: hand" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5383060740875498514" border="0" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhreCTLkp3Mxg7Y_qAaukhz0DE4Ph6nZKIY6lcWIhh2O1KKW8DprHc2483xF_5mnzdMFsZoXRe5D3mmwOuIxIdnNXf_9RUG7L1SV3yxH1n8sC_Ayr6Uyzdxhk61Vd2CQkjVnUj0ESxMGGWy/s320/Shri+vardhan.jpg" /></a> <strong>एंकर श्रीवर्धन त्रिवेदी</strong> के बगैर सनसनी के बारे में सोचना भी मुश्किल है। आज की तारीख में सनसनी और श्रीवर्धन एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं। कल्पना कीजिए किसी दिन स्टार न्यूज पर सनसनी हो, लेकिन एंकर के तौर पर सेट पर श्रीवर्धन न हों तो क्या होगा? जाहिर है सब कुछ अधूरा-अधूरा सा लगेगा। दर्शक मिस करेंगे उस चेहरे को। उस रौबदार आवाज को, जो बरसों से टीवी के परदे पर सनसनी बनकर गूंज रही है। कामयाबी का इतिहास गढ़ रही है। वैसे तो एक कार्यक्रम की सफलता के पीछे एक पूरी टीम का हाथ होता है। लेकिन टीम तो दूसरी भी बनाई जा सकती है, श्रीवर्धन नहीं। अगर मैं यह लिख रहा हूं तो कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। लिम्का बुक में श्रीवर्धन का नाम आना कोई अश्चर्य की बात नहीं है। वह वाकई में बधाई के हकदार हैं। हर इंसान की तबीयत कभी न कभी तो खराब ही होती है। कोई न कोई तो ऐसा लम्हा आता है जब उसका सारा रूटीन गड़बड़ा जाता है। वह काम नहीं कर पाता। या कर नहीं सकता। तो क्या श्रीवर्धन की जिंदगी में ऐसे लम्हे कभी नहीं आए? कभी कोई अड़चन नहीं आई? वह लगातार कैसे उपलब्ध रहे? यकीनन ऐसे कई मौके आए। कई लम्हे आए। लेकिन हर बार श्रीवर्धन ने सनसनी को प्राथमिकता दी। मुझे याद है एक दिन वह शो की एंकरिंग कर रहे थे और उन्हें तेज बुखार था। इसके बावजूद उनके चेहरे पर न तो कोई शिकन थी औऱ ना ही उनकी आवाज लरज रही थी। हां अगर कोई उनकी आंखों को पढ़ता तो शायद उनकी मुश्किल को समझ सकता था।
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<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCL9eWU4VIIXAjceH79xDhw8LdW_wvQdO6k3K0gUjzBzFqhBRxqciee9d8bZaDItcsXK0gtleeCZNXhPKLX5p7Q1NaUwdpD8QnhWr1JuJtN9kevLX-C-KQQao1jqkzQrKVuoVE-5BjIM3p/s1600-h/shrivardhan.jpg"><img style="MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 237px; FLOAT: right; HEIGHT: 320px; CURSOR: hand" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5383061051401178770" border="0" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCL9eWU4VIIXAjceH79xDhw8LdW_wvQdO6k3K0gUjzBzFqhBRxqciee9d8bZaDItcsXK0gtleeCZNXhPKLX5p7Q1NaUwdpD8QnhWr1JuJtN9kevLX-C-KQQao1jqkzQrKVuoVE-5BjIM3p/s320/shrivardhan.jpg" /></a><strong>उस मौके को भला कैसे </strong>भुलाया जा सकता है जब श्रीवर्धन के पुश्तैनी घर में आग लग गई थी। इतना ही नहीं जब उनकी मां की तबीयत बुरी तरह खराब थी तब भी उन्होंने अपने घर यानी जबलपुर से सनसनी की शूटिंग जारी रखी थी। ऐसे छोटे-मोटे मौके तो कई बार आए जब श्रीवर्धन को दो-तीन दिन दिल्ली से बाहर रहना पड़ा। ऐसे में एडवांस एपिसोड रिकार्ड किए गए। ये अलग बात है कि दर्शकों को इस बात का एहसास तक नहीं हो पाता था कि वो रिकॉर्डेड एपिसोड देख रहे हैं। दर्शक हमेशा से यही समझते आए हैं कि सनसनी का लाइव प्रसारण होता है।
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<br /><strong>22 नवंबर 2004 </strong>को जब सनसनी की शुरूआत हुई तब यह हफ्ते में पांच दिन दिखाया जाता था। ऐसे में एंकर के साथ-साथ टीम से जुड़े बाकी सदस्यों को भी दो दिन का रिलैक्स मिल जाता था। लेकिन लोकप्रियता के रथ पर सवार सनसनी ऊंचाईयां पर ऊंचाइयां छूता गया। मुझे याद है कि शायद ही कोई ऐसा हफ्ता गुजरता था जब स्टार न्यूज के टॉप टैन प्रोग्राम की फेहरिस्त में सनसनी न शामिल रहता हो। चैनल के प्रोग्रामों की रेटिंग में अक्सर सनसनी पहले या दूसरे नंबर पर रहता था। वह स्थिति अब भी बरकरार है, क्योंकि अब भी श्रीवर्धन त्रिवेदी इसके एंकर हैं। श्रीवर्धन के रूप में सनसनी लगातार सन्नाटे को चीर रही है। बिना रूके। बिना थके। निश्चत तौर पर यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। सनसनी की बंपर कामयाबी को देखते हुए ही इसे 2005 में हफ्ते में सातों दिन प्रसारित करने का फैसला किया गया।
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<br /><strong>सनसनी को अगर</strong> दर्शकों का प्यार मिला तो इसके आलोचक भी कम नहीं हैं। खासकर श्रीवर्धन की हेयर स्टाइल और प्रस्तुतिकरण पर सवाल उठाए गए। क्राइम को सनसनीखेज तरीके से पेश करने के भी आरोप लगे। लेकिन सनसनी लगातार शिखर पर चढ़ता रहा। बढ़ता रहा। श्रीवर्धन त्रिवेदी को भले ही लोग सनसनी के एंकर के तौर पर जानते हैं, लेकिन यह शायद कम लोगों को ही मालूम है कि वो एक बेहतरीन एक्टर भी हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पास आउट हैं। कई शानदार और कामयाब नाटकों में अभिनय कर चुकें हैं। स्क्रिप्टिंग और निर्देशन कर चुके हैं। अब भी वह सक्रिय रूप से थियेटर से जुड़े हैं। एक एनजीओ के माध्यम से उन्होंने कई गरीब बच्चों की अभिनय प्रतिभा को निखारा है। उनसे अभिनय सीखकर कई बच्चे तो फिल्मों में काम भी पा चुके हैं। खैर, मैं श्रीवर्धन पर कोई जीवनी लिखने नहीं बैठा। इस आलेख का मकसद सिर्फ श्रीवर्धन को उनकी कामयाबी (लिम्का बुक में नाम दर्ज) की बधाई देना और उनसे जुड़ी यादों को ताजा करना है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-35065595107227656042009-08-13T18:36:00.000-07:002009-08-13T21:36:29.087-07:00हिंदी ब्लॉग जगत के चोरों से सावधान<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVMOJeg89YyK1MDNTuGhNpus-akTmojdzfxyzrCpVgpB_HGMirYgqjUS8fkk9k89LZ5VFHzxYTqH2ZztKK38pWRoJinC_qG_s1a4lZ_xFJJOYMuwnYWBD3mwXFbmxS-j93SDKj-UtL2Dji/s1600-h/getthumbnail.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5369631116531951714" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 150px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVMOJeg89YyK1MDNTuGhNpus-akTmojdzfxyzrCpVgpB_HGMirYgqjUS8fkk9k89LZ5VFHzxYTqH2ZztKK38pWRoJinC_qG_s1a4lZ_xFJJOYMuwnYWBD3mwXFbmxS-j93SDKj-UtL2Dji/s320/getthumbnail.jpg" border="0" /></a> <div>इंटरनेट पर कुछ सर्च कर रहा था तभी अचानक कुछ ऐसा मिला जिसे देखकर अचरज में पड़ गया। निगाह वहीं पर अटक गई। पहली बार तो यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। मुझे याद है कि ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर में एक ब्लॉगर ने मुझ पर किसी दूसरे का आयडिया चुराने का आरोप लगाया था। इस आरोप ने मुझे बेहद खिन्न कर दिया था। मैंने ना सिर्फ आरोपों का जवाब दिया बल्कि उनके इल्जामों को झूठा भी साबित किया। मैं तब भी यही सोचता था कि इंटरनेट पर जहां कही भी किसी से कुछ छिपा नहीं है वहां भला कोई ऐसा कैसे कर सकता है। अगर करने की हिमाकत करता भी है तो आज नहीं तो कल वह सबके सामने आ ही जाएगा। </div><br /><div>यह मेरी सोच थी। लेकिन अब मैं जिन साहब की बात करने जा रहा हूं वह शायद ऐसा नहीं सोचते। तो मैं बता रहा था कि कुछ सर्च करते वक्त मेरी नजर जिस पर अटकी वह एक ब्लॉग का लिंक था। लिंक के साथ जो तीन-चार पंक्तियां नजर आ रही थीं वो जानी पहचानी थीं। दरअसल वह मेरी ही लिखी पोस्ट थी जो दूसरे ब्लाग पर मौजूद थी। इस ब्लाग का नाम है <strong><span style="color:#ff0000;">tv 9 mumbai</span></strong> और ब्लाग के लेखक हैं गिरीश सिंह गायकवाड़। ब्लाग के नाम से लगता है कि ये साहब टीवी नाइन ग्रुप में काम करते हैं। मेरी पोस्ट का शीर्षक था <span style="color:#993399;">'<strong>वह न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर है</strong>'।</span> <a href="http://rex-aashiyana.blogspot.com/2008/12/blog-post.html"><span style="color:#006600;">यह</span></a> पोस्ट मैंने अपने ब्लॉग आशियाना पर 2 दिसंबर, 2008 को लिखी थी। गिरीश गायकवाड़ साहब ने 9 फरवरी, 2009 को बिना किसी कर्टसी के इसे कॉपी करके अपने ब्लाग <a href="http://tv9mum.blogspot.com/2009/02/blog-post.html">tv 9 mumbai </a>और <a href="http://girishgaikwad.blogspot.com/2009/02/being-producer.html">Paravarchya Goshti </a>पर अपने नाम से पोस्ट कर लिया। हैरत की बात है कि उन्होंने ना तो छोटा सा शब्द साभार लिखने की जहमत उठाई औऱ ना ही मुझे इस बाबत सूचित किया। इसके उलट गिरीश साहब ने इस पोस्ट को इस तरह अपने ब्लाग पर पेश कर रखा जैसे वह उनकी मौलिक पेशकश हो। इसे देखकर मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं है। </div><br /><div>बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं है। जब मैंने गिरीश गायकवाड़ का ब्लॉग tv 9 mumbai देखना शुरू किया तो वहां मुझे अपनी एक और रचना मिल गई। इस रचना का शीर्षक है <strong><span style="color:#006600;">फिल्म सिटी का कुत्ता।</span></strong> <a href="http://rex-aashiyana.blogspot.com/2007/08/blog-post_13.html"><span style="color:#cc33cc;">यह</span></a> कविता मैंने अपने ब्लॉग पर 22 अगस्त, 2007 को पोस्ट की थी। <a href="http://tv9mum.blogspot.com/2009/05/wo-kutta.html"><strong>इसे</strong></a> भी गिरीश साहब ने 5 मई, 2009 को इस तरह पोस्ट कर रखा है जैसे कि वह खुद उनकी रचना है। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि अगर आप किसी दूसरे की रचना अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत ही करना चहते हैं तो असली लेखक का नाम, उसके ब्लॉग का नाम और तीन अक्षर का शब्द साभार लिखने में आखिर बुराई क्या है? क्या गिरीश गायकवाड़ इतने नासमझ हैं कि वह ये नहीं जानते कि किसी की रचना चुराना कानूनन भी अपराध है। अचंभे की बात है कि वह इस अपराध को खुलेआम कर रहे हैं। मेरा खयाल है कि इनके ब्लॉग को अच्छी तरह खंगाला जाए तो दूसरे कई लेखकों को रचनाएं भी इनके नाम से नजर आ सकती हैं। अब मैं अपने ब्लॉगर बंधुओं से पूछना चाहूंगा कि मुझे क्या करना चाहिए और ऐसे लोगों पर लगाम लगाने के लिए ब्लॉग जगत को क्या करना चाहिए? </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-45181957974020744152009-05-24T19:59:00.000-07:002009-05-25T15:51:41.639-07:00ताकतवर होते बेजान पत्ते<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbZ7fRMvCLItaCPnLks_LlEl2wIHsIYFRfgv5QRkP-dFrzbeDfA98sfs1RY2W9-DeKICSTKVyJOmr7Oa95HNuEeIoC4q-qMJRCe-J-H2KcpTdB-2zKt0V27X55EvjShw6ShYF9XuvEUxTi/s1600-h/3.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339897982238186290" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 182px; CURSOR: hand; HEIGHT: 400px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbZ7fRMvCLItaCPnLks_LlEl2wIHsIYFRfgv5QRkP-dFrzbeDfA98sfs1RY2W9-DeKICSTKVyJOmr7Oa95HNuEeIoC4q-qMJRCe-J-H2KcpTdB-2zKt0V27X55EvjShw6ShYF9XuvEUxTi/s400/3.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-51094719143365120212009-05-15T14:46:00.000-07:002009-05-15T14:50:21.423-07:00मार्केटिंग का हिंदी फंडाएक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। लड़के को अपने आप पर पूरा भरोसा था। उसने मैनेजर से कहा कि आपको अंग्रेजी से क्या मतलब ? अगर मैं अंग्रेजी वालों से ज्यादा बिक्री न करके दिखा दूं तो मुझे तनख्वाह मत दीजिएगा। मैनेजर को उस लड़के बात जम गई। उसे नौकरी पर रख लिया गया। <br /><br />फिर क्या था, अगले दिन से ही दुकान की बिक्री पहले से ज्यादा बढ़ गई। एक ही सप्ताह के अंदर लड़के ने तीन गुना ज्यादा माल बेचकर दिखाया। स्टोर के मालिक को जब पता चला कि एक नए सेल्समेन की वजह से बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है तो वह खुद को रोक न सका। फौरन उस लड़के से मिलने के लिए स्टोर पर पहुंचा। लड़का उस वक्त एक ग्राहक को मछली पकड़ने का कांटा बेच रहा था। मालिक थोड़ी दूर पर खड़ा होकर देखने लगा। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3omvmneu8rIIWR5fWevnrCQTBt0z9aoK9HM60zn9gkiefCrWa4Q3nbSM49zbokq3v_rm9bWGKLzgOiWfD-EBgDdl1mjVmvTqUA7rQea-NmieC3CP1qVRRpJ8ELA26BNgHJOsK85A7nDYa/s1600-h/cartoon.gif"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 223px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3omvmneu8rIIWR5fWevnrCQTBt0z9aoK9HM60zn9gkiefCrWa4Q3nbSM49zbokq3v_rm9bWGKLzgOiWfD-EBgDdl1mjVmvTqUA7rQea-NmieC3CP1qVRRpJ8ELA26BNgHJOsK85A7nDYa/s320/cartoon.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5336170882514648066" /></a><br />लड़के ने कांटा बेच दिया। ग्राहक ने कीमत पूछी। लड़के ने कहा-800 रु.। यह कहकर लड़के ने ग्राहक के जूतों की ओर देखा और बोला-सर, इतने मंहगे जूते पहनकर मछली पकड़ने जाएंगे क्या? खराब हो जाएंगे। एक काम कीजिए, एक जोड़ी सस्ते जूते और ले लीजिए। ग्राहक ने जूते भी खरीद लिए। अब लड़का बोला-तालाब किनारे धूप में बैठना पड़ेगा। एक टोपी भी ले लीजिए। ग्राहक ने टोपी भी खरीद ली। अब लड़का बोला-मछली पकड़ने में पता नहीं कितना समय लगेगा। कुछ खाने पीने का सामान भी साथ ले जाएंगे तो बेहतर होगा। ग्राहक ने बिस्किट, नमकीन, पानी की बोतलें भी खरीद लीं। <br /><br />अब लड़का बोला-मछली पकड़ लेंगे तो घर कैसे लाएंगे। एक बॉस्केट भी खरीद लीजिए। ग्राहक ने वह भी खरीद ली। कुल 2500रुपये का सामान लेकर ग्राहक चलता बना। मालिक यह नजारा देखकर बहुत खुश हुआ। उसने लड़के को बुलाया और कहा-तुम तो कमाल के आदमी हो यार! जो आदमी केवल मछली पकड़ने का कांटा खरीदने आया था उसे इतना सारा सामान बेच दिया? लड़का बोला-कांटा खरीदने? अरे सर, वह आदमी तो सेनिटरी पैक खरीदने आया था। मैंने उससे कहा अब चार दिन तू घर में बैठा-बैठा क्या करेगा। जा के मछली पकड़। (एक दोस्त ने ईमेल से भेजा )Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-53711500867031288782009-05-12T18:27:00.001-07:002009-05-12T19:55:29.132-07:00इंटनरेट से ऐसे करें कमाईइंटरनेट पर आमतौर पर आजकल लोग कुछ घंटे तो बिताते ही हैं। ब्लागिंग से जुड़े लोग नियमित तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं। ब्लागिंग भले ही मुफ्त हो, लेकिन इंटरनेट सर्विस मुफ्त में नहीं मिलती। इसके लिए हर महीने पैसा अदा करना पड़ता है। ब्लागिंग करने वाले लोग इस पर अपना जो समय देते हैं उसकी तो कोई कीमत ही नहीं। हालांकि हिंदी में ज्यादातर लोग स्वांत: सुखाय लेखन कर रहे हैं। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZwn4Z3dXY6AAup1zEFm2vJl83IJLGxKZk02dfT6xqrtcAA49t6cz3c834PhijGPWLGlgDuUQwfIcXK0ehPwLcln1-JgovjVcI-2-FpuUV6Y-GYog4gfiYi7MD0_j8FCp8DBMF1v8qEEeK/s1600-h/pic2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 250px; height: 249px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZwn4Z3dXY6AAup1zEFm2vJl83IJLGxKZk02dfT6xqrtcAA49t6cz3c834PhijGPWLGlgDuUQwfIcXK0ehPwLcln1-JgovjVcI-2-FpuUV6Y-GYog4gfiYi7MD0_j8FCp8DBMF1v8qEEeK/s320/pic2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5335114742531948146" /></a>लेकिन जरा सोचिए कितना अच्छा हो कि अगर इंटरनेट के जरिये कुछ आमदनी भी होने लगे। ज्यादा नहीं तो नेट कनेक्शन पर होने वाला खर्च तो वसूल हो ही जाए। गूगल एडसेंस तो फिलहाल हिंदी में लिखने वालों पर मेहरबान नहीं है। लिहाजा मैं इसी उधेड़बुन हूं कि इंटरनेट पर और क्या जरिया हो सकता जिससे कुछ आमदनी भी हो। अगर आप नेट के जरिये कुछ कमाने की सोचते भी हैं तो ज्यादातर वेबसाइट पहले सदस्यता के रूप में अच्छी-खासी रकम वसूल लेती हैं। इस तरह उनकी कमाई तो हो जाती है। आपकी हो या न हो। बहरहाल कुछ दिन पहले मेरे एक दोस्त ने मुझे कुछ लिंक भेजे जिनमें एक-दो वेबसाइट का पता था। यह कुछ-कुछ नेटवर्किंग जैसा मामला था। खास बात यह थी कि इसमें मुझे एक पैसा भी खर्च नहीं करना था। ज्वाइन करने का तरीका वैसा ही था जैसे आप एक साधारण ईमेल एड्रेस बनाते हैं। या फिर कोई छोटा सा फार्म भरते हैं। मैंने यह सोचकर ज्वाइन कर लिया कि ट्राई करने में बुराई क्या है। आप भी ट्राई करना चाहते हैं तो एक लिंक दे रहा हूं। इस पर क्लिक करें और ज्वाइन कर लें। नेटवर्क में शामिल होने के बाद आप मुफ्त में जितने चाहें उतने एसएमएस भी भेज सकते हैं। समय-समय पर कई आफर्स भी मिलते रहते हैं जो आपकी कमाई बढ़ाने में मददगार होते हैं। नेटवर्क में शामिल होने के लिए <a href="http://mGinger.com/index.jsp?inviteId=1004419">इस</a> लिंक पर क्लिक करें.... <br /><br />बधाई हो। आप एक बड़े नेटवर्क से जुड़ चुके हैं। अब इसमें अपने दोस्तों को जोड़कर इसे और बढ़ाइय़े, आपकी कमाई खुद ब खुद बढ़ती जाएगी। कमाई बढ़ाने के लिए बेहतर होगा कि आप इस तरह के विभिन्न नेटवर्क ज्वाइन कर लें। यह एक और नेटवर्क का लिंक है। इस पर क्लिक करें। ज्वाइन करने का तरीका बेहद आसान है। कुछ रकम तो ज्वाइन करते ही आपके खाते में आ जाएगी। दूसरा नेटवर्क ज्वाइन करने के लिए <a href="http://www.youmint.com/network-xaption">यहां</a> क्लिक करें..... <br /><br />हां, ऐसे नेटवर्क में शामिल होने के लिए आपके पास एक अदद मोबाइल फोन नंबर जरूर होना चाहिए। नेटवर्क ज्वाइन करने के बाद आपके मोबाइल पर एसएमएस आने शुरू हो जाएंगे। हर एसएमएस के लिए कंपनी आपको कुछ एमाउंट देती है। वैसे तो वह एमाउंट शुरुआत में बहुत मामूली लगता है। लेकिन बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता। इसमें आप यह आप्शन भी सलेक्ट कर सकते हैं कि एसएमएस किस वक्त पर आएंगे। यानि कितने बजे से कितने बजे के बीच। ऐसा नहीं है कि एसएमएस फालतू होते हैं। बल्कि एसएमएस के जरिये विभिन्न कंपनियां अपना प्रचार करती हैं। आप टीवी पर इश्तेहार देखते हैं। अखबार में विज्ञापन पढ़ते हैं तो मोबाइल पर भी क्यों नहीं। कुछ लोग इसके आलोचक और विरोधी भी हो सकते हैं। इसलिए मैं यही कहूंगा कि यह अपनी च्वाइस का मामला है। जिसे ठीक लगे वह अपनाए। जिसे ठीक न लगे वह इससे दूर रहे। मोबाइल फोन के साथ-साथ इसमें ईमेल का भी आप्शन होता है। अगर आपने वह सलेक्ट कर लिया तो आपको ईमेल भी भेजे जाएंगे। इन ईमेल्स को पढ़ने पर भी आपको एक निश्चित राशि अदा की जाएगी। जैसे ही आप इस वेबसाइट पर रजिस्टर करेंगे आपका एक एकाउंट बन जाएगा, जिसमें पैसे इकट्ठे होते रहेंगे। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTkfyLqkqyCKuRmfjU8isBg63QOXf5HPtqnsIsAdSnEt1NTH50wPiV9OA_4sqt6N1gNoTnneaVj_Q7Sir1M5NGOQMgj8VaeRY5ZFy9OM4NgXZ1weJBVMBD7lIMI7xVjAU_6G0TwmgxJN46/s1600-h/lady_flatpanel_g.gif"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 293px; height: 276px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTkfyLqkqyCKuRmfjU8isBg63QOXf5HPtqnsIsAdSnEt1NTH50wPiV9OA_4sqt6N1gNoTnneaVj_Q7Sir1M5NGOQMgj8VaeRY5ZFy9OM4NgXZ1weJBVMBD7lIMI7xVjAU_6G0TwmgxJN46/s320/lady_flatpanel_g.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5335115234698383010" /></a>इनकम बढ़ाने के भी कई तरीके हैं। आप अपने नेटवर्क को जितना बढ़ाएंगे आपकी कमाई भी उतनी ही बढ़ती जाएगी। अपने नेटवर्क में नए-नए लोगों को जोड़कर आप ऐसा कर सकते हैं। इसमें भी कोई पैसा खर्च नहीं करना है। सबसे अहम बात यह है कि इसमें किसी तरह का कोई फ्रॉड नहीं है। वेबसाइट की तरफ से आपसे कोई पैसा नहीं लिया जा रहा है। इसलिए अगर बैठे-बिठाए कुछ पैसा हाथ आ जाता है तो मेरा खयाल है इसमें कुछ गलत नहीं है। अब आप सोच रहे होंगे कि इससे वेबसाइट को क्या फायदा होता है। तो हम बता दें कि पहला तो यह कि उसके पास एक डेटाबेस तैयार हो जाता है। दूसरा यह कि जिन कंपनियों के प्रचार के रूप में वह एसएमएस भेजती है उनसे सर्विस चार्ज वसूल करती है। लेकिन आपसे कुछ नहीं वसूलती, बल्कि आपको एसएमएस और ईमेल रिसीव करने के बदले पैसे दिए जाते हैं। रकम चेक के जरिये आपके दिए गए पते पर भेज दी जाती है। तो फिर देर किस बात की। अगर ठीक लगता है तो फिर शामिल हो जाइये इस नेटवर्क में।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-56320122950749287102009-05-09T08:34:00.000-07:002009-05-10T07:14:31.659-07:00...तो फिर कौन है असली पप्पू?<span style="font-weight:bold;">-प्रशांत <br /></span><br />अगर आप भारत के नागरिक हैं और लोकसभा चुनावों में वोट डालने नहीं जाते हैं, तो आप पप्पू हैं, ये हम नहीं कह रहे चुनाव आयोग की ओर से जारी सारे विज्ञापनों में यही बताने की कोशिश की गई है... लेकिन आप अगर पोलिंग बूथ पर जाएं, आपके पास मतदाता पहचान पत्र भी हो और पिछले कई चुनावों से आप वोट डालते रहे हों, और तब भी आपको वोट देने का मौका नहीं मिले, तो आप क्या कहेंगे। पप्पू कौन? <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn8E2eCFb3NLmzHgrinr1kYio_j75iMdbUeCkomqEBdKhXgUivDSsF_FU8s0okHSEYTlasPMtWlophg16QS9efFe6bC8ne_CWYnRpayuIz9X4HpZp_vX-6_kDF57-KdDoJ-UsU_D2nJBJN/s1600-h/EVM.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 150px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn8E2eCFb3NLmzHgrinr1kYio_j75iMdbUeCkomqEBdKhXgUivDSsF_FU8s0okHSEYTlasPMtWlophg16QS9efFe6bC8ne_CWYnRpayuIz9X4HpZp_vX-6_kDF57-KdDoJ-UsU_D2nJBJN/s200/EVM.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5333859112248525170" /></a>इससे भी बड़ी बात तो ये कि आप उस जगह के स्थायी निवासी हों, आपके नाम पर एक अदद घर भी हो, आपके नाम से बिजली विभाग ने मीटर लगा रखा हो,आप करीब 9 साल से एक ही जगह पर रह रहे हों, आप कई बार वोट डाल चुके हैं और तब भी आपका नाम वोटर लिस्ट से गायब हो, तब भी क्या आप पप्पू कहलाएंगे। <br /><br />एक और दृश्य-आप बिना वोट डाले लौटकर घर आ रहे हों और आपकी बिल्डिंग की कभी रखवाली करने वाला एक नेपाली चौकीदार रास्ते में मिल जाए और ये कहे, कि सर, वोटर लिस्ट में हमारा भी नाम है, तब आपको कैसा लगेगा? <br /><br />जी हां, मैं किसी और की नहीं अपनी आपबीती बयान कर रहा हूँ। गुरुवार 7 मई को चौथे चरण में गाजियाबाद में वोट डाला गया। एक पढ़ा-लिखा शहरी होने के नाते मैं भी सुबह उठकर वोट डालने के इरादे से पोलिंग बूथ पर गया। मेरे हाथ में भारत के चुनाव आयोग की ओर से जारी मतदाता पहचान पत्र था। हां भाग संख्या पता नहीं था, लेकिन अपने याददाश्त के मुताबिक और अपनी बिल्डिंग के दूसरे लोगो से मिली जानकारी के आधार पर अपने क्षेत्र के पोलिंग बूथ पर पहुंच गया। वहां बूथ के बाहर बैठे पोलिंग एजेंट से पूछा कि भाई मेरा नाम किस लिस्ट में है और किस बूथ नंबर पर मुझे वोट डालना है, अपनी सूची में देखकर ये बता दो। वहां बेतहाशा भीड़ मौजूद थी, लोग अपने अपने बूथ के बारे में जानकारी हासिल करने की होड़ लगाए थे। धक्का मुक्की हो रही थी, पहले तो मैं, इस अफरा-तफरी में थोडा पीछे हो लिया और अपनी बारी का इंतजार करने लगा। <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbQU40ymBuhxyLr0WZuw53pQgNg7ErkHvD8Aa-QZnJj1rADKU1LsZ2Xo2CRid2P1zVQaaLzEBkb0EOqoZHiFGBHE-SRWLYdKocxdbntpBNlNAbqblcTM21AZAKYdiGhCn7v_cJ_BMI5Qcm/s1600-h/vote.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbQU40ymBuhxyLr0WZuw53pQgNg7ErkHvD8Aa-QZnJj1rADKU1LsZ2Xo2CRid2P1zVQaaLzEBkb0EOqoZHiFGBHE-SRWLYdKocxdbntpBNlNAbqblcTM21AZAKYdiGhCn7v_cJ_BMI5Qcm/s320/vote.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5333859253254039058" /></a><br />काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब मेरी बारी नहीं आई, तो मैं आगे बढ़ा और एक बार फिर पोलिंग एजेंट से आग्रह किया। फिर वही हाल... करीब घंटाभर गुजर जाने के बाद मेरा धैर्य जवाब देने लगा, तो मैं भी बाकी लोगों की तरह जबरदस्ती घुस गया। तब जाकर पोलिंग एजेंट को इस बात का ख्याल आया कि मैं काफी देर से खडा हूं। उसने मेरा कार्ड देखा और ये कह चलता किया कि आपका नाम इस बूथ पर नहीं, दूसरे बूथ पर है। <br /><br />वोट देने की लालसा लिए मैं दूसरे बूथ पर जा पहुंचा। वहां भी वैसा ही हाल नजर आया। फिर मैं पोलिंग एजेंट से आग्रह कर खड़ा हो गया। काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब बात नहीं बनी, तो उससे कड़क आवाज में कहा कि भाई आखिर तुमने ये लाइन क्यों लगा रखी है, जब अपने पहचान वालों का ही नाम तुम्हें बताना है, तो यहां एक बोर्ड टांग दो कि यहां सिर्फ पहचानवालों की ही पर्ची दी जाती है। कृपया दूसरे लोग यहां लाइन में ना लगें। मेरे इन सवालों ने उसे थोड़ा सचेत किया और वो मेरे जैसे कई लोगों से वोटर कार्ड लेकर सूची में नाम तलाश करने लगा। <br /><br />काफी देर बाद मेरी बारी आई। तो उसने एक-एक कर सभी सूचियों में खोज डाला, लेकिन मेरा नाम कहीं नहीं था। मैं हैरान रह गया कि पिछले कई चुनावों में वोट डाल चुका हूं और मेरे पास मतदाता पहचान पत्र भी है, लेकिन इस बार क्या हो गया कि मेरा नाम नहीं है। <br /><br />लेकिन मैं भी हार मानने को तैयार नहीं था, हर कीमत पर अपना नाम खोज वोट डालना चाहता था। मैं पहुंच गया पोलिंग बूथ के अंदर कि शायद वहां पता चल जाए। बूथ के अंदर कुछ कर्मचारी बैठे थे, जिनके पास पूरी सूची मौजूद थी। लोग अपने-अपने नाम खोजने का आग्रह कर रहे थे, तो कुछ नाम नहीं मिल पाने को लेकर बहस भी कर रहे थे। सबकी जुबां पर एक ही सवाल था, कि पिछले कई चुनावों में नाम मौजूद था, वोट भी डाला है और वोटर आईकार्ड भी है, तब मेरा नाम क्यों नहीं है। बाकी लोगों की तरह मैंने भी उस कर्मचारी से नाम खोजने का आग्रह किया, तो उनका सवाल था कि भाग संख्या और वोटर संख्या बताईए। उन्हें शायद इस बात का ध्यान नहीं रहा कि अगर भाग संख्या और वोटर संख्या पता होता तो, मुझे उनके पास जाने की जरुरत ही नहीं पड़ती। मैं सीधे बूथ पर जाता और वोट डाल अपने घर लौट जाता। <br /><br />जब वहां भी कुछ पता नहीं चल पाया, तब बूथ के अंदर गया, वहां एक बूथ खाली था, जहां कोई वोटर मौजूद नहीं था। मैंने वहां मौजूद पुलिस बल से गुजारिश की, तो उन्होंने अंदर जाने की इजाजत दे दी। मैं अंदर जाकर पोलिंग कर्मचारियों से बात की कि मेरे पास वोटर आईकार्ड है, लेकिन सूची में मेरा नाम नहीं मिल पा रहा, क्या कोई तरीका है कि आईकार्ड को देखकर इससे अंदाजा लगाया जा सके कि आखिर किस सूची में मेरा नाम होगा। तो उस सज्जन ने कहा कि नहीं वोटर कार्ड से कुछ पता नहीं चल पाएगा। आपको भाग संख्या पता करना होगा। <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKWmH0l0TksXxQ9j18DEDg7slK5obIwsjHwdxrq4aBUmDIZi-3Rp8pZcLBx0i0kh8268_DrojIbCyVIz41MDd2OqFPWIujLuAEeTApxndOTFpOVhC_WiyTxx9s7IIexMFUhDs-9fmNLH1S/s1600-h/voting.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 133px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKWmH0l0TksXxQ9j18DEDg7slK5obIwsjHwdxrq4aBUmDIZi-3Rp8pZcLBx0i0kh8268_DrojIbCyVIz41MDd2OqFPWIujLuAEeTApxndOTFpOVhC_WiyTxx9s7IIexMFUhDs-9fmNLH1S/s200/voting.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5333859407768253698" /></a>थक हार कर करीब चार घंटे की मशक्कत के बाद मैं बिना वोट डाले घर लौटने लगा। लेकिन एक पत्रकार के मन को ये नहीं भाया। सोचा कुछ दूसरे बूथों का चक्कर लगा लिया जाए। क्या पता यहां की तरह दूसरे बूथों पर भी कुछ ऐसा ही हाल हो। आसपास के करीब पांच पोलिंग बूथों पर गया। हर जगह ऐसे दर्जनों लोग मिले, जिनके पास वोटर आई कार्ड तो मौजूद था और पिछले चुनावों में वोट भी डाल चुके थे, लेकिन इस बार नाम लिस्ट से गायब था। <br /><br />ऐसे में ये सवाल उठता है कि चुनाव आयोग ने वोटर आईकार्ड अनिवार्य करना चाहता है लेकिन वोटर आईकार्ड मौजूद होने के बाद भी लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब क्यों हैं जबकि उन लोगों का नाम मौजूद हैं, जो ना तो भारत के नागरिक हैं और ना ही उनका कोई स्थायी पता है। खैर, सबसे जरुरी सवाल कि असली पप्पू कौन? वोट देने के इरादे से घर से निकला और करीब चार घंटे तक धक्के खाकर लौटने वाला वोटर या फिर ऐसी व्यवस्था देनेवाला सिस्टम? (साभार-देशकाल डॉट कॉम)Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-71913557602622315372009-04-26T13:46:00.000-07:002009-05-10T07:14:06.682-07:00राज ठाकरे के समर्थन में...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEwWB9fxf2zE9ht6DAEmYBhRTUPSH31DYJg8p3Vkmc21yvxG49-nE6NxPOzKPT8xciI9lOJ8LYex5er3oJoOGEFDIlVL5NvrcBOC9cu-Wwvtg4-wVcgMOc-ntgjSMPJCswe0smc8XCsqUq/s1600-h/raj.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 251px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEwWB9fxf2zE9ht6DAEmYBhRTUPSH31DYJg8p3Vkmc21yvxG49-nE6NxPOzKPT8xciI9lOJ8LYex5er3oJoOGEFDIlVL5NvrcBOC9cu-Wwvtg4-wVcgMOc-ntgjSMPJCswe0smc8XCsqUq/s320/raj.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5329103050204697682" /></a>कुछ दिन पहले मुझे एक ईमेल प्राप्त हुआ। यह ईमेल मेरे <span style="font-weight:bold;">एक अजीज</span> दोस्त ने भेजा था। फारवर्डेड मेल था लिहाजा यह नहीं पता चल पाया कि इसका जनक कौन है। लेकिन यह जरूर बताना चाहूंगा कि जिस दोस्त ने मुझे यह मेल भेजा वह मराठी है। मेल अंग्रेजी में था। मेरा ब्लॉग हिंदी में है। इसलिए मैंने पूरे मेल को हिंदी में हूबहू ट्रांसलेट करने की कोशिश की है। ईमेल इस प्रकार है....<span style="font-weight:bold;">अगर आप राज ठाकरे के समर्थक हैं तो कृपया निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें...</span><br /><br /><span style="font-weight:bold;">1.</span> अगर आपका बच्चा मेहनत के बावजूद क्लास में फर्स्ट नहीं आ पाता तो उसे सिखाइये कि ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं। बल्कि जो बच्चा पढ़ने में तुमसे तेज है उसे पीटो और क्लास से बाहर कर दो। तुम अपने आप फर्स्ट हो जाओगे। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">2.</span> संसद सिर्फ दिल्लीवालों के लिए है क्योंकि वह दिल्ली में स्थित है।<br /><span style="font-weight:bold;">3.</span> राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के दूसरे सभी नेता दिल्ली के होने चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">4.</span> मुंबई में हिंदी फिल्में नहीं सिर्फ मराठी फिल्में बनाई जानी चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">5.</span> राज्य की बसों, ट्रेनों और फ्लाइट्स पर सिर्फ लोकल लोगों की भर्ती होनी चाहिए और दूसरे राज्यों की बसों, ट्रेनें और फ्लाइट्स महाराष्ट्र आने पर रोक लगा दी जानी चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">6.</span> विदेशों में और भारत के दूसरे राज्यों में काम करने वाले मराठियों को वापस बुला लेना चाहिए, ताकि वो लोकल रोजगार पर कब्जा जमा सकें और बाहरी लोगों को खदेड़ सकें। <br /><span style="font-weight:bold;">7.</span> महाराष्ट्र में शंकर, गणेश और पार्वती की पूजा नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये देवता उत्तर (हिमालय) के हैं। <br /><span style="font-weight:bold;">8.</span> ताजमहल देखने पर रोक होनी चाहिए क्योंकि वह सिर्फ उत्तर-प्रदेश वालों के लिए है। <br /><span style="font-weight:bold;">9.</span> महाराष्ट्र के किसानों को केंद्र से मिलने वाली मदद नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह पैसा पूरे देश से टैक्स के रूप में इकट्ठा किया जाता है। इसलिए कोई मराठी इस पैसे को हाथ कैसे लगा सकता है? <br /><span style="font-weight:bold;">10.</span> हमें कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन करना चाहिए क्योंकि वह अपने 'राज्य की आजादी' के नाम पर बेकसूरों को मार रहे हैं। यह सब वो अपने राज्य की आजादी के लिए कर रहे हैं। <br /><span style="font-weight:bold;">11.</span> महाराष्ट्र से सभी मल्टीनेशनल कंपनियों को निकाल फेंकना चाहिए। भला वो हमारे राज्य में मुनाफा क्यों कमायें? हमें अपनी लोकल माइक्रोसाफ्ट शुरू करनी चाहिए। महाराष्ट्र पेप्सी और महाराष्ट्र मारुति जैसे प्रोडक्ट लांच करने चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">12.</span> विदेश में या दूसरे राज्यों में बनाए गए सेलफोन, दूसरे राज्य या देश की कंपनी की ईमेल सर्विस, टीवी आदि नहीं इस्तेमाल करने चाहिए। विदेशी फिल्में और विदेशी नाटक भी नहीं देखने चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">13.</span> हमें भूखों मरना कबूल है। दस गुना महंगा सामान खरीदना मंजूर है। लेकिन विदेशी चीजें खरीदना, दूसरे राज्यों की कंपनियों का सामान खरीदना और आयात करना कबूल नहीं। <br /><span style="font-weight:bold;">14.</span> महाराष्ट्र में किसी भी दूसरे राज्य के व्यक्ति को उद्योग स्थापित करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">15.</span> मराठियों को सिर्फ लोकल ट्रेनों का उपयोग करना चाहिए। गाड़ियों को मराठी नहीं बनाते और रेलमंत्री भी बिहारी है। इसलिए इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। <br /><span style="font-weight:bold;">16.</span> सभी मराठी यह सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे महाराष्ट्र में ही जन्म लें, वहीं पढ़ें-लिखें और वहीं बूढ़े होकर मृत्यु को प्राप्त हों। तभी वह एक सच्चे मराठी कहलाएंगे।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-27774925932028512592009-04-18T14:04:00.000-07:002009-04-18T14:10:30.879-07:00इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूं...चुनाव के मौसम पर गर्मी का मौसम भारी पड़ने लगा है। मतदान की तारीख तेजी से नजदीक आती जा रही है, लेकिन चुनाव प्रचार उतनी गति नहीं पकड़ रहा है। वजह, मौसम की मार। हिम्मत जुटाकर, कार्यकर्ताओं को जोश दिलाकर उम्मीदवार मैदान में निकलते भी हैं तो जनता इतनी 'आलसी' है कि ऎसी चिलचिलाती गर्मी में घर से बाहर ही नहीं निकलना चाहती। लिहाजा जनसभाओं में भीड़ जुटे भी तो कैसे? बड़ी मुसीबत है। जनसभा में भीड़ न जुटी तो क्या 'मैसेज' जाएगा? विरोधी तो मजाक उड़ाएंगे ही, लोगों को भी लगेगा कि इन जनाब के पक्ष में जनसमर्थन नहीं है।<br /><br />भीषण गर्मी की वजह से सब कुछ ठंडा है। तो क्या करें? किसी कार्यकर्ता ने सुझाया कि पब्लिक नहीं आ रही तो क्या हुआ, क्यों न हम ही पब्लिक के पास चलें? मतलब डोर टू डोर जनसंपर्क? हां वहीं! यह ठीक रहेगा। इसी बहाने नाराज मतदाताओं से भी वोट मांग लेंगे और कह देंगे कि यहां से गुजर रहा था, सोचा आपसे भी मिलता चलूं। इस नाचीज का भी खयाल रखिएगा।<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2JL5_OziG6pGcf0oU6BT97gADRyUbqV4OvuSL1QDyn-DKuK9ndK3BzVuKd7M7A0gSqQS28nN2nBuMnk29X6NcR7liS046Ut1_xi_85X8F8zSuZ2xQu8BvXdMHRaBQonWRHJz8_uBglIfJ/s1600-h/indian_election.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 272px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2JL5_OziG6pGcf0oU6BT97gADRyUbqV4OvuSL1QDyn-DKuK9ndK3BzVuKd7M7A0gSqQS28nN2nBuMnk29X6NcR7liS046Ut1_xi_85X8F8zSuZ2xQu8BvXdMHRaBQonWRHJz8_uBglIfJ/s400/indian_election.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5326140926051514194" /></a>बात जमने लायक थी। नेता जी खुश हो गए। यही ठीक रहेगा। ठीक है, आज से ही शुरू करते हैं। नेता जी उत्साहित थे। इसी बीच एक समझदार से दिखने वाले कार्यकर्ता ने सुझाया...लेकिन सर, ध्यान रखिएगा, किसी के दुखड़े से ज्यादा द्रवित न हो जाइएगा। उसकी 'हेल्प' करने की कोशिश तो बिल्कुल न करिएगा वर्ना कहीं आचार संहिता उल्लंघन के लफड़े में न फंस जाएं। लालू और शिवराज तो बच निकले लेकिन यह दिल्ली है। तभी एक और कार्यकर्ता ने अपना कुछ 'प्रैक्टिकल' सा सुझाव रखा। अरे सर, कह दीजिएगा जिसकी जो भी समस्या है, जीतने के बाद सुलझाई जाएगी। अभी तो हम सिर्फ आप लोगों की समस्याएं सुनने आए हैं। समस्याएं सुलझाने के लिए तो 'पॉलिटिकल पॉवर' चाहिए। वह तो जीतने के बाद ही मिलेगा न? अभी आप हमारा ध्यान रखिए। जीतने के बाद हम आपका ध्यान रखेंगे। हां अगर कोई मतदाता अपना दुखड़ा कुछ ज्यादा ही रोने लगे तो उसे सांत्वना देकर ही वहां से खिसक लीजिएगा। उसके दुख में ज्यादा 'इन्वाल्व' होने की जरूरत नहीं है। नहीं तो हमारा दुख बढ़ सकता है।<br /><br />बहरहाल, चिलचिलाती गर्मी में डोर टू डोर जनसंपर्क के अलावा कोई रास्ता नहीं है। प्यासे को कुएं के पास जाना ही पड़ता है। लिहाजा नेता जी निकल पड़े हैं, अपने सहयोगियों (दरअसल चमचों) के साथ। कृपया दरवाजा खुला रखें, हो सकता है वह आपकी गली से भी गुजरें।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8343209256361202787.post-37328559047944114552009-03-15T07:32:00.000-07:002009-03-17T06:03:27.296-07:00स्टोव! मेरे सवालों का जवाब दोस्टोव तुम ससुराल में ही क्यों फटा करते हो?<br />मायके में क्यों नहीं ?<br /><br />स्टोव तुम्हारी शिकार बहुएं ही क्यों होती हैं?<br />बेटियां क्यों नहीं ?<br /><br />स्टोव तुम इतना भेदभाव क्यों करते हो ?<br />समझते क्यों नहीं ?<br /><br />स्टोव कहां से पाई है तुमने ये फितरत ?<br />बताते क्यों नहीं ?<br /><br />स्टोव तुम भीतर से इतने कमजोर क्यों हो ?<br />अक्सर फट जाते हो ?<br /><br />स्टोव तुम हमेशा विस्फोट की ही भाषा क्यों बोलते हो ?<br />क्या तुम्हारे पास आंखें भी हैं ?<br /><br />स्टोव तुम कैसे देख लेते हो किचन में बहू ही है ?<br />फटने का फैसला कर लेते हो ?<br /><br />स्टोव तुम कैसे पहचान लेते हो अपने शिकार को ?<br />कौन बन जाता है तुम्हारी आंखें ?<br /><br />स्टोव अब तुम इस कदर खामोश क्यों हो ?<br />बोलते क्यो नहीं ?<br /><br />स्टोव यह तो बताओ तुम कब फटना बंद करोगे ?<br />कुछ तो जवाब दो ?<br /><br />स्टोव बरसों से पूछ रहा हूं यह सवाल अब तो बोलो ?<br />अब तो यह राज खोलो ?<br /><br />(बरसों पहले लिखीं थीं यह पंक्तियां। आज अचानक वह मुड़ा-तुड़ा कागज मिल गया। मेरे इन सवालों का जवाब अब भी नहीं मिला है। हां, कुछ फर्क जरूर आया है। अब स्टोव की जगह गैस सिलेंडर फटने लगे हैं)Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.com9