सोमवार, 25 अगस्त 2008

अफसोस बंटी, तुम नहीं रहे












अफसोस बंटी
तुम नहीं रहे
आखिरकार
दिल्ली पुलिस ने
तुम्हारी जान ले ही ली
पता नहीं कैसे
इस बार
कामयाब हो गई पुलिस
वर्ना हर बार तो
तुम ही जीतते थे बाजी

अफसोस बंटी
तुम नहीं रहे
अब टीवी चैनलों का क्या होगा?
वो किसे बताएंगे
बाइकर्स गैंग का सरगना
सड़क पर हुई
हर वारदात के लिए
किसे ठहराएंगे जिम्मेदार
हर राह चलते लुटेरो को
अब कैसे बताएंगे
बंटी गैंग का गुर्गा?
कैसे कहेंगे
जवाब दो दिल्ली पुलिस?

अफसोस बंटी
तुम नहीं रहे
गोली तो तुमने भी चलाई थी?
फिर कोई पुलिसवाले पर क्यों नहीं लगी
तुम्हारा निशाना तो बहुत सटीक है
फिर कैसे चूक गए तुम
कैसे हार गए तुम
अब टीवी चैनल वाले
किसके नाम पर फैलाएंगे दहशत
कैसे बताएंगे कि
रहने लायक नहीं रही दिल्ली
कैसे कहेंगे
दिल्ली में बढ़ रहे हैं अपराध
कैसे कहेंगे
घर से बाहर मत निकलिए
वर्ना लुट जाएंगे

अफसोस बंटी
तुम नहीं रहे
हमेशा याद आओगे तुम
खासतौर पर
चैनल वाले तो
तुम्हें भूल नहीं पाएंगे
जब भी कोई झपटमार पकड़ जाएगा
जब भी कोई लुटेरा धरा जाएगा
तो टीवी चैनल वालों को
खलेगी तुम्हारी कमी
वो बस यही बोलेंगे
काश! बंटी तुम होते
तो हम फौरन ये कह देते
खत्म नहीं हो रहा बंटी का खौफ
हाथ पर हाथ धरे बैठी है
दिल्ली पुलिस
कौन बचाएगा दिल्ली को

लेकिन...
अब ऐसा नहीं होगा
अब चैनलों पर नहीं गूंजेगे
तुम्हारी बादशाहत के किस्से
अब नहीं होगी
तुम्हारे खौफ की बात
अफसोस बंटी
तुम नहीं रहे

सचमुच बहुत याद आओगे बंटी...

 
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