शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

भगदड़ के रणबांकुरों के नाम

नारद में और भगदड़ डॉट ब्लाग पर मेरी रचना आपरेशन सुंदरी-लाइव फ्रॉम झंडूपुरा के संबंध में टिप्पणी पढ़कर सचमुच मुझे बेहद अफसोस हुआ। खैर इससे टीम की मानसिकता का पता तो चल ही गया। टीम में शामिल लोग यह मानकर चलते हैं कि पूरी दुनिया में दो लोग एक जैसा नहीं सोच सकते। भाषा भी ऐसी है कि जैसे मैं कोई जबरदस्ती का लेखक हूं और मुझे नेट पर झूठा नाम कमाने का बहुत शौक है। लिहाजा मैंने किसी दूसरे का आयडिया कॉपी करने कहानी लिख डाली और मैं इतना बेवकूफ हूं कि उसे अपने नाम से अपने ब्लाग पर डाल भी दिया। और उनकी नजर इतनी पैनी है कि उन्होंने मुझ रचना चोर को रंगे हाथ धर-दबोचा। अपनी पीठ भी ठोंक डाली। लो भइया देखो हमने कितना बड़ा तीर मार लिया। एक कहानी चोर को पकड़ लिया। वैसे जिसे ये लोग कहानी समझ रहे हैं वह कहानी नहीं यथार्थ है। और यथार्थ से कोई भी परिचित हो सकता है। पहले मैं सोच रहा था कि भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा। फिर मैंने सोचा कि कुछ तो कहना ही पड़ेगा नहीं तो लोग सोचेंगे कि भगदड़ वाले सही कह रहे हैं। मैं साहित्यजगत का कोई प्रोफेशनल चोर हूं।
खैर, ईमानदारी से मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि मैंने आज से पहले बुनो कहानी वाली वह रचना नहीं पढ़ी थी। अच्छा हुआ कि आपने उसका लिंक दे दिया। मैंने उसे पढ़ा। आपका शुक्रिया। मेरी रचना को पढ़कर हर उस व्यक्ति को ऐसा लग सकता है कि मेरा आयडिया मौलिक नहीं है। लेकिन मैं फिर कहना चाहूंगा कि यह महज एक संयोग है। इसलिये भी कि यह मेरी लिये कोई कहानी नहीं है। मैं खुद एक खबरिया चैनल में हूं इसलिये इस तरह की बातें, इस तरह की चर्चा किसी भी चैनल में आम है। हम जिस माहौल में रहते हैं जिस वातावरण में काम करते हैं हमारा लेखन भी उसी से प्रभावित होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि चैनल की नौकरी ऐसी होती है कि आपको पढने का ज्यादा वक्त ही नहीं मिलता। और पढ़ने के बाद कोई मूर्ख ही उसी बात को दोबारा लिखना पसंद करेगा। मैं फिर आपकी गलतफहमी दूर करने के लिये कहना चाहूंगा कि यह मेरी लिये कहानी नहीं है। यह चैनल के लिये बहुत सामान्य सी बात है। इसलिये मैं इसे व्यंग्यात्मक शैली में बड़ी आसानी से लिखता गया। न ही मुझे कोई कहानी बुननी पड़ी और न ही कोई कल्पना करनी पड़ी। मै कोई सफाई पेश नहीं करना चाहता लेकिन मुझे इस बात का बेहद अफसोस है कि भगदड़ टीम ने बिना मेरा पक्ष सुने मुझ पर बेहद घटिया आरोप लगा दिया। अंत में मैं सिर्फ एक बात कहना चाहूंगा कि मैं जबरदस्ती नहीं लिखता। कोई चीज जब लिखने को मजबूर कर देती है तभी मैं लिखता हूं। इसलिये कहानी बुनना या फिर किसी के आयडिये को कापी करना मैं बेहद शर्मनाक मानता हूं। और क्या कहूं मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन भगदड़ टीम के इस आरोप ने मुझे सचमुच काफी दुख पहुंचाया है। बस नेट पर मौजूद लोगों से एक ही अनुरोध है कि बिना जाने-समझे किसी पर कोई आरोप न लगायें। इंटरनेट एक अथाह सागर की तरह है। यह जरूरी नहीं कि हर किसी ने हरेक सामग्री का अध्ययन किया हो। अब औऱ क्या कहूं...शब्द नहीं मिल रहे हैं। बस यही सोच रहा हूं कि आपके इस आरोप की वजह से मेरे बाकी मित्र मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे।

गुरुवार, 27 सितंबर 2007

आपरेशन सुंदरी--लाइव फ्राम झंडूपुरा

मैं हूं अर्चना। ब्रेक के बाद हमारे चैनल में एक बार फिर आपका स्वागत है। अब हम फिर चलते हैं अपने विशेष संवाददाता आकाश के पास। आकाश सुबह से ही मुजफ्फरनगर के झंडूपुरा गांव में मौजूद हैं। जैसा कि आपको मालूम होगा वहां विदेशी नस्ल की एक भैंस तड़के एक गड्ढे में गिर गई थी। इस खबर को सबसे पहले ब्रेक किया था हमारे संवाददाता आकाश ने। आकाश सुबह से ही हमें वहां के हालात से रूबरू करा रहे हैं। तो आइये अब आकाश से ही पूछते हैं कि क्या माहौल है झंडूपुरा का। जी, आकाश बताइये...आठ घंटे पहले जो भैंस गड्ढे में गिरी थी अब उसकी हालत कैसी है?
रिपोर्टर-अर्चना, सबसे पहले तो मैं बता दूं कि सुंदरी नाम की ये भैंस सुबह घास चरते वक्त वहां बने एक गहरे गड्ढे में जा गिरी। इस बात का पता लोगों को तब लगा जब उस गहरे गड्ढे के आसपास से गुजरने वालो ने भैंस के जोर-जोर से रंभाने की आवाज सुनी। भैंस की जान खतरे में है यह खबर पूरे गांव में जंगल में आग की तरह फैल गई। देखते ही देखते यहां कई अखबारों के संवाददाताओं का जमवाड़ा लग गया। खबरिया चैनलों में यहां तक पहुंचने वालों में सबसे पहले हम थे (रिपोर्टर यह बताते हुये गर्व से भर उठा) उसके बाद ही दूसरे चैनलों में यह खबर चली। फिर तो यह खबर झंडूपुरा गांव से निकलकर पूरे देश तक जा पहुंची। अर्चना, मैं अपने दर्शकों को बताना चाहूंगा कि यहां दूर-दूर से लोग सुंदरी को देखने आ रहे हैं। हर किसी को बस एक ही बात की चिंता है कि सुंदरी को सही सलामत बचाया जा सकेगा या नहीं? लोगों में इस बात को लेकर रोष भी है कि अब तक यहां सेना नहीं पहुंची है। न ही मुख्यमंत्री ने अब तक सुंदरी की कोई खैर-खबर लेने की कोशिश की है। हां, इलाके के विधायक और सांसद जरूर मौके पर मौजूद हैं। हम उन्हीं से पूछते हैं कि वो सुंदरी को बचाने के लिये क्या कर रहे हैं। जी, विधायक जी पहले आप बताइये?विधायक- हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। खुद हमारे मुख्यमंत्री हमसे इस घटना की जानकारी मांग चुके हैं। हमें भरोसा है कि हम सुंदरी को जल्द ही मुसीबत से बाहर निकाल लेंगे। अच्छा सांसद जी आप बताइये? क्या बतायें? यह सरकार का निकम्मापन है कि सुंदरी अभी तक गड्ढे में ही है। राज्य में हमारी सरकार होती तो अव्वल तो गड्ढा ही नहीं होता। अगर गड्ढा होता भी तो उसमें भैंस नहीं गिरती। अगर गिरती भी तो उसे फौरन सही-सलामत बाहर निकाल लिया गया होता.....।अच्छा आकाश जरा हमें वहां के माहौल के बारे में बतायें। क्या माहौल है वहां का?
अर्चना, जैसा कि आप देख सकती हैं यहां हजारों की भीड़ है। लोगों ने पूजा अर्चना भी शुरू कर दी है। यहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर हवन भी शुरू हो चुका है। मौके पर लोगों का आना लगातार जारी है। हालांकि बचाव कार्य को लेकर लोगों में अब रोष भी दिखने लगा है। सुंदरी को गड्ढे में गिरे आठ घंटे से भी ज्यादा हो चुके हैं। इसके बावजूद अब तक यह भरोसा नहीं है कि उसे बचा लिया जायेगा। अभी तक न तो खुदायी की मशीनें यहां पहुंची हैं औऱ न ही सेना का हेलीकाफ्टर दिखाई दिया है। जी, अर्चना? आकाश, आप वहीं मौजूद रहिये और पल-पल की अपडेट हमें देते रहिये। एक ब्रेक के बाद हम लगातार इस खबर पर बने रहेंगे। आप देखते रहिये....खबिरया, आपका चैनल-आपके लिये।

शनिवार, 15 सितंबर 2007

हां, मैं भूत को जानता हूं !

मैंने कभी भूत को नहीं देखा
मैं भूत को देखना चाहता हूं
मैंने भूतों के बारे में बहुत कुछ सुना है
मेरी नानी कहती थीं
भूत देखने में डरावना होता है
उसकी कोई आकृति नहीं होती
कोई निश्चित आकार भी नहीं होता
फिर भी लोग उससे डरते हैं
वह लोगों को डराता है
लेकिन क्यों?
यह मेरी नानी भी नहीं जानतीं
वह कहती थीं...
जब कोई इंसान बेमौत मर जाता है
तो भूत बन जाता है
वह भूत बनकर भटकता रहता है
मुक्ति की तलाश में
अब मेरी नानी इस जहां में नहीं हैं
मुझे उनकी सारी कहानियां याद हैं
वह कहानियां जिन्हें सुनकर
मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे
मैं डरकर उनकी गोद में दुबक जाता था
उन कहानियों में
एक से बढ़कर एक
भूत, राक्षस और दानव होते थे
उनके पास सारी शक्तियां होती थीं
अब मैं बड़ा और समझदार हो गया हूं
लेकिन अब भी सुनना चाहता हूं
भूतों की कहानियां
अब मेरी नानी नहीं हैं
फिर भी...
मैं भूतों से आये दिन रूबरू होता हूं
जब भी दिल करता है
भूतों के बारे में जानने का
फौरन सारी कड़ियां जोड़ लेता हूं
अरे यारों, अब भी नहीं समझे
बस टीवी पर कोई खबरिया चैनल खोल लेता हूं।

 
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