ऐतिहासिक शहर इलाहाबाद में संपन्न हुई दो दिनी 'ब्लॉगर मीट' (कुछ लोगों को इस शब्द पर आपत्ति है) के दौरान वैसे तो बहुत कुछ उल्लेखनीय हुआ। लेकिन मेरे खयाल से इस संगोष्ठी को सबसे ज्यादा याद किया जाएगा अराजकता के लिए। अराजकता का आलम यह था कि संगोष्ठी के लिए बाकायदा निमंत्रण और टिकट भेजकर बुलाए गए कई तथाकथित ब्लॉगर संगोष्ठी में शरीक होने की बजाए 'इलाहाबाद दर्शन' में व्यस्त थे। आयोजकों को यह तक नहीं मालूम था कि आखिर वो करना क्या चाहते हैं। हास्यास्पद बात तो यह थी कि कई ब्लॉगर मंच पर पहुंचने के बाद पूछ रहे थे कि उन्हें बोलना किस विषय पर है।
इस ब्लॉगर मीट में कई मशहूर ब्लॉगरों की गैरमौजूदगी खलने वाली थी। पता नहीं 'उड़नतश्तरी' वाले समीर लाल 'समीर' को आमंत्रित किया गया था या नहीं। अगर नहीं तो क्यों? अगर बात ब्लॉगिंग की हो रही है तो आप समीर की लेखनी को किसी भी हालत में दरकिनार नहीं कर सकते। वह जितनी खूबी से हल्के-फुल्के विषयों पर लिखते हैं उतनी ही खूबी से गंभीर विषयों पर भी। उनकी कई पोस्ट तो इतनी यादगार हैं कि बार-बार पढ़ने को दिल करता है। समीर के अलावा चोखेरबालियों की गैरमौजूदगी भी सवाल खड़े कर रही थी। महिला ब्लॉगरों के नाम पर अगर कोई दिखा तो सिर्फ मनीषा पांडे, मीनू और आभा। कई अच्छी महिला ब्लॉगर संगोष्ठी से नदारद थीं। या तो वो आईं नहीं या शायद उन्हें बुलाने काबिल नहीं समझा गया।
अविनाश, डॉ. अरविंद, अनूप शुक्ल, हर्षवर्धन, संजय तिवारी और रवि रतलामी की मौजूदगी अहम और सुखद थी। इस विशेष मौके पर रवि रतलामी की मौजूदगी का फायदा उठाया जा सकता था। ब्लॉगरों को तकनीकी ज्ञान दिलाया जा सकता था। रवि रतलामी इसके लिए तैयार भी नजर आ रहे थे, लेकिन मेहमान ब्लॉगर शायद तैयार नहीं थे। यही वजह है कि मंच पर आकर रवि भी बेबस से नजर आए। एक अच्छा मौका जाता रहा, क्योंकि तकनीक ही ऐसी चीज है जिससे हिंदी वाले दूर भागते हैं। रवि इस 'डर' को दूर करने में सक्षम थे।
पहले सत्र से शुरू हुई अराजकता दूसरे सत्र तक अपने चरम पर पहुंच गई। कुछ ब्लॉगरों ने तो हद ही कर दी। उन्हें यह तक नहीं पता था कि बोलना क्या है? कुछ महज इसलिए खुश हो गए कि जमकर खाने-पीने को मिल गया। कुछ इसलिए परेशान थे कि 'बेड टी' नहीं मिली। संगोष्ठी में जिस गंभीर चर्चा की उम्मीद की जा रही थी वह सिरे से गायब रही। ऐसा लग रहा था कि कुछ लोग एक जगह पर पिकनिक मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। खाए-पिए, अघाए और चल दिए। वैसे आखिर तक यह समझ में नहीं आया कि संगोष्ठी में निमंत्रण के लिए 'जरूरी योग्यता' क्या थी?
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय और हिंदुस्तानी एकेडमी इलाहाबाद की तरफ से आयोजित राष्ट्रीय ब्लॉगर संगोष्ठी के दूसरे सत्र में बेनाम टिप्पणीकारों का मुद्दा छाया रहा। बेनाम टिप्पणीकारों से सभी ब्लॉगर परेशान नजर आए। यह ठीक है कि कुछ अनाम टिप्पणीकारों ने ब्लॉग जगत में अराजकता मचा रखी है, लेकिन 'अनाम' के तौर पर अपनी बात कहने की परंपरा हमेशा से रही है। यह एक व्यवस्था है, जिसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। कई बार 'बेनाम' टिप्पणीकार सच भी कह जाते हैं, जो कड़वा होता है। लेकिन होता सच है। बेनाम टिप्णीकार कमोबेश कुछ उसी तरह हैं जैसे एक मतदाता अपना वोट डाल जाता है। उसके वोट का असर भी दिखाई देता है, लेकिन किसी को पता नहीं चलता कि वो कौन है?
संगोष्ठी में ब्लाग जगत के ताकतवर होने और पांचवे खंभे के तौर पर स्थापित होने की खुशफहमी पालने वाले भी कम नहीं थे। इसमें कोई शक नहीं कि ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है। इसकी ताकत को लोग स्वाकार भी कर रहे हैं। लेकिन अराजकता किसी भी माध्यम में हो, हानिकारक होती है। आज टीवी चैनल अराजकता के दौर से गुजर रहे हैं तो कल ब्लॉग जगत के सामने भी यही समस्या आने वाली है। इसलिए जरूरत है कि वक्त रहते ही इस समस्या का हल निकाला जाए। ब्लॉगर गंभीर हो जाएं। बचपना छोड़ दें। वर्ना टीवी की तरह लोग उन्हें भी गंभीरता से लेना छोड़ देंगे।
इस ब्लॉगर मीट में कई मशहूर ब्लॉगरों की गैरमौजूदगी खलने वाली थी। पता नहीं 'उड़नतश्तरी' वाले समीर लाल 'समीर' को आमंत्रित किया गया था या नहीं। अगर नहीं तो क्यों? अगर बात ब्लॉगिंग की हो रही है तो आप समीर की लेखनी को किसी भी हालत में दरकिनार नहीं कर सकते। वह जितनी खूबी से हल्के-फुल्के विषयों पर लिखते हैं उतनी ही खूबी से गंभीर विषयों पर भी। उनकी कई पोस्ट तो इतनी यादगार हैं कि बार-बार पढ़ने को दिल करता है। समीर के अलावा चोखेरबालियों की गैरमौजूदगी भी सवाल खड़े कर रही थी। महिला ब्लॉगरों के नाम पर अगर कोई दिखा तो सिर्फ मनीषा पांडे, मीनू और आभा। कई अच्छी महिला ब्लॉगर संगोष्ठी से नदारद थीं। या तो वो आईं नहीं या शायद उन्हें बुलाने काबिल नहीं समझा गया।
अविनाश, डॉ. अरविंद, अनूप शुक्ल, हर्षवर्धन, संजय तिवारी और रवि रतलामी की मौजूदगी अहम और सुखद थी। इस विशेष मौके पर रवि रतलामी की मौजूदगी का फायदा उठाया जा सकता था। ब्लॉगरों को तकनीकी ज्ञान दिलाया जा सकता था। रवि रतलामी इसके लिए तैयार भी नजर आ रहे थे, लेकिन मेहमान ब्लॉगर शायद तैयार नहीं थे। यही वजह है कि मंच पर आकर रवि भी बेबस से नजर आए। एक अच्छा मौका जाता रहा, क्योंकि तकनीक ही ऐसी चीज है जिससे हिंदी वाले दूर भागते हैं। रवि इस 'डर' को दूर करने में सक्षम थे।
पहले सत्र से शुरू हुई अराजकता दूसरे सत्र तक अपने चरम पर पहुंच गई। कुछ ब्लॉगरों ने तो हद ही कर दी। उन्हें यह तक नहीं पता था कि बोलना क्या है? कुछ महज इसलिए खुश हो गए कि जमकर खाने-पीने को मिल गया। कुछ इसलिए परेशान थे कि 'बेड टी' नहीं मिली। संगोष्ठी में जिस गंभीर चर्चा की उम्मीद की जा रही थी वह सिरे से गायब रही। ऐसा लग रहा था कि कुछ लोग एक जगह पर पिकनिक मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। खाए-पिए, अघाए और चल दिए। वैसे आखिर तक यह समझ में नहीं आया कि संगोष्ठी में निमंत्रण के लिए 'जरूरी योग्यता' क्या थी?
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय और हिंदुस्तानी एकेडमी इलाहाबाद की तरफ से आयोजित राष्ट्रीय ब्लॉगर संगोष्ठी के दूसरे सत्र में बेनाम टिप्पणीकारों का मुद्दा छाया रहा। बेनाम टिप्पणीकारों से सभी ब्लॉगर परेशान नजर आए। यह ठीक है कि कुछ अनाम टिप्पणीकारों ने ब्लॉग जगत में अराजकता मचा रखी है, लेकिन 'अनाम' के तौर पर अपनी बात कहने की परंपरा हमेशा से रही है। यह एक व्यवस्था है, जिसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। कई बार 'बेनाम' टिप्पणीकार सच भी कह जाते हैं, जो कड़वा होता है। लेकिन होता सच है। बेनाम टिप्णीकार कमोबेश कुछ उसी तरह हैं जैसे एक मतदाता अपना वोट डाल जाता है। उसके वोट का असर भी दिखाई देता है, लेकिन किसी को पता नहीं चलता कि वो कौन है?
संगोष्ठी में ब्लाग जगत के ताकतवर होने और पांचवे खंभे के तौर पर स्थापित होने की खुशफहमी पालने वाले भी कम नहीं थे। इसमें कोई शक नहीं कि ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है। इसकी ताकत को लोग स्वाकार भी कर रहे हैं। लेकिन अराजकता किसी भी माध्यम में हो, हानिकारक होती है। आज टीवी चैनल अराजकता के दौर से गुजर रहे हैं तो कल ब्लॉग जगत के सामने भी यही समस्या आने वाली है। इसलिए जरूरत है कि वक्त रहते ही इस समस्या का हल निकाला जाए। ब्लॉगर गंभीर हो जाएं। बचपना छोड़ दें। वर्ना टीवी की तरह लोग उन्हें भी गंभीरता से लेना छोड़ देंगे।