रात का वक्त था। दफ्तर से लौट रहा था। जाहिर है घर के लिए। तभी बीच सड़क पर सफेद रंग की एक आकृति देखकर चौंक गया। असल में वह एक सांप था। जीता-जागता, हिलता-डुलता। गाड़ी में ब्रेक लगाया। शुक्र मनाया कि सड़क के बीचोंबीच होने के बावजूद वह पहिये के नीचे आने से बच गया। दिमाग में आया क्यों न अपने पड़ोसी टीवी चैनल वाले को कॉल कर दूं। हमेशा न्यूज ब्रेक करने वाले न्यूज चैनल को एक और ब्रेकिंग न्यूज मिल जायेगी। फिर सोचा, यह नाग या नागिन तो है नहीं। यह तो शायद पानी वाला सांप है। सीधा-साधा। भोला-भाला। इसे तो फुंफकारना भी नहीं आता। ना ही यह किसी से बदला ले सकता है। न ही इसे नागिन फिल्म की धुन पर नचाया जा सकता है। फिर सोचा, इससे क्या फर्क पड़ता है। किसी भी सांप को नाग या नागिन बनाना तो चैनल वालों के बायें हाथ का खेल है। वैसे भी सांप-नेवले की स्टोरी में असली दृश्य होते ही कहां हैं। फिल्मों के विजुअल और गाने ही तो चलाने होते हैं। मतलब साफ था। मुझे एक ब्रेकिंग न्यूज की संभावना साफ नजर आ रही थी। फिर सोचा कि छोड़ो भी, जब यह खबर अपने चैनल पर नहीं चल रही तो क्यों दूसरे चैनल को खबर देकर उसकी टीआरपी बढ़ाई जाये। मैंने एक्सीलेटर दबाया और आगे बढ़ गया।
घर तो पहुंच गया। लेकिन नींद नहीं आ रही थी। बार-बार उस सांप का ख्याल जेहन में आ रहा था। सोचा कि हो सकता है कि टीवी चैनल का रिपोर्टर सूंघते-सूंघते वहां तक पहुंच गया हो। चैनल ने खबर ब्रेक कर दी हो। मैं झटके से उठा। रिमोट उठाया। टीवी आन किया और तेजी से न्यूज चैनल सर्च करना शुरू कर दिया। उस सांप (माफ कीजियेगा-नाग) की खबर किसी चैनल पर नहीं थी। मैं मन ही मन में कुछ बुदबुदाया और टीवी बंद करके फिर बिस्तर पर पसर गया।
आंखें बंद थीं। दिमाग अब भी चल रहा था। बार-बार दिखाई दे रहा था वह सांप। मैं सोच रहा था कि अगर वह सांप किसी गाड़ी के नीचे आकर मर गया होगा तो क्या खबर बनेगी। खबर यह बन सकती है कि नाग की मौत हो गई। अब नागिन बदला लेगी। लाइब्रेरी से निकालकर नागिन के फुंफकारते हुये विजुअल लगा दिये जायेंगे। नागिन फिल्म का गाना भी लगा जा सकता है। बाकी तो एंकर रहेगा ही। लगातार कुछ भी अनाप-शनाप बोलने के लिये।
दूसरी संभावना यह हो सकती है कि अगर सांप ( कहानी की जरूरत के मुताबिक उसे नाग या नागिन बनाने का पूरा स्कोप रहेगा) गाड़ी के टायर की चपेट में आकर जख्मी हो जाये तो....। तब खबर कुछ इस तरह हो सकती है कि नाग की मौत हो गई। अब नागिन जरूर बदला लेगी।
तीसरी संभावना हो सकती है...कि यह मौत एक नागिन की थी। वह नागिन जो नाग की मौत का बदला लेने के लिये शहर में आई थी। वह नाग के हत्यारे की तलाश में थी। अफसोस उसकी तलाश पूरी नहीं हो सकी। लेकिन मरने के बाद भी वह अपना बदला जरूर लेगी। बदला लेने के लिये वह फिर जन्म लेगी। जाहिर है, जैसा कि हमेशा होता है, उसकी आंखों में कातिल की तस्वीर हमेशा के लिये बस गई होगी। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों की बाइट भी ली जा सकती है। मौके पर मौजूद लोग नाग की मौत से कितने गुस्से में हैं यह भी दिखाया जा सकता है। उस रास्ते से गुजरने वालों पर इसका क्या असर पड़ सकता है, किसी ज्योतिषी या शनि महाराज टाइप के शख्स की बाईट भी चलाई जा सकती है। ऐसे में आखिर पुलिस क्या कर रही है यह सवाल भी उठाया जा सकता है। कानून-व्यवस्था पर भी सवाल उठाये जा सकते हैं। ज्यादा विस्तार में जाया जाये तो सरकार को भी लपेटा जा सकता है। आखिर हर वारदात के लिये जिम्मेदारी तो सरकार को ही लेनी होगी। उसे उसकी इस जिम्मेदारी का एहसास चैनल वाले नहीं करायेंगे तो कौन कारयेगा। क्या-क्या बतायें? ऐसी शानदार बिकाऊ खबर हाथ लग जाये तो यह पूछिये चैनल में क्या नहीं किया जा सकता। लेकिन उस पर चर्चा करेंगे एक बड़े से ब्रेक के बाद। आज के लिये बस इतना ही।
6 comments:
बात पते की है जनाब....
बातों हीं बातों में आपने सबकुछ कह डाला..
शुक्रिया
देख रात सडक पर एक सफेद
सांप को
हमारे रेक्स आशियाना के
मित्र रवींद्र ने.
लगा रहे हैं अनुमान कि
नागिन थी, प्रेत थी,
या क्या थी.
होती यदि नागिन
तो रंग होता काला.
होता प्रेत तो क्यो वह
आता खामोखा इस
रूप में,
सीधे ही डरा सकता
था अपको.
पाया जाता है इस
तरह का मोटा सांप
एम पी और यूपी में,
खाकर जीता है,
चूहे मेंढक को.
अब आप सो जायें
निश्चिंत,
ऐसा न हो की
नींद उड जाये
आपकी चिंता में
हमारी भी.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
ब्रेकिंग न्यूज़ तो ये बन गयी।:)
समाचार चैनेल बकवास के पर्याय बनते जा रहे हैं। इतने सशक्त माध्यम का इतना बड़ा दुरुपयोग खटकने की चीज है।
बहुत ख़ूब! पढ़ कर मज़ा आगया, ख़ूब खाल उधेड़ी है बातों बातों में।
वही पुराना बिंदास अंदाज़... मैं तो मुरीद हूँ आपकी इस अदा की!
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