वह मेरा अनुज है। बहुत प्यारा इंसान है। जब भी मिलता है बेतकल्लुफ होकर। मेरी तरह वह भी पत्रकार बिरादरी से ताल्लुक रखता है। मैं भी एक खबरि
या चैनल के क्राइम बुलेटिन में काम करता हूं और वह भी। मैं भी इलाहाबादी हूं और वह भी। मैं भी कभी-कभार कविता लिखता हूं और वह भी। मुझे उसकी रचनायें अच्छी लगती हैं। मेरी रचनायें उसे कैसी लगती हैं, मैं नहीं जानता। मैं उसे पढ़ता हूं। कई बार तो उसकी लेखनी मेरे अंदर एक स्फूर्ति का संचार कर देती है। कई बार कुछ कर गुजरने का उत्साह भर देती है। कई बार सोचता हूं, ये लड़का एक दिन जरूर क्रांति कर देगा। मुझे क्रांति का झंडा बुलंद करने वाले बेहद पसंद हैं।
यह कल तक की बात थी। उसके बारे में मेरी राय थी। आज उसने मुझे निराश किया है। मेरा मन अशांत है। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आ रहा है। मेरा छोटा भाई है। उस पर गुस्सा करना मेरा हक है। बहुत दूर है वर्ना शायद मैं उसे पीटने भी लग जाता। उसने काम ही ऐसा किया है। वो 'एक कदम बढ़ाकर दो कदम पीछे हटने' वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी। उसने ऐसा ही किया। मैं कहूं कि उसने 'दस कदम' पीछे हटा लिये तो गलत नहीं होगा। मुझे चापलूसी करने वाले लोग पसंद नहीं हैं। वह भी चापलूस नहीं है। लेकिन कल मुझे उसकी लिखी कुछ पंक्तियों में चापलूसी नजर आई। मैंने उसे बर्दाश्त कर लिया। सोचा कम से कम शुरुआती पंक्तियां तो सच बयां कर रही हैं। सच लिखने के लिये मैंने उसे मन ही मन धन्यवाद भी दिया। अपने एक दोस्त को भी बताया, देखो- राजू ने कितना अच्छा लिखा है। मेरे उस दोस्त ने भी राजू की हिम्मत की दाद दी-वाकई वो सच लिखता है।
अब आज की बात। आज सुबह मैं उसके ब्लाग पर फिर आया। सोचा बड़ा अच्छा-बड़ा सच्चा लिखा है। कुछ टिप्पणी कर देता हूं। उत्साहवर्धन होगा। आगे से और अच्छा लिखेगा- औऱ सच्चा लिखेगा। लेकिन आज उसने मेरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कल तक जो था आज वो नहीं है। जी हां, उसने आज अपनी कल लिखी गई रचना को अपने ब्लाग से हटा दिया था। अब आखिर मैं किस पर टिप्पणी करता? मैं सोचकर हैरान था। उस मजबूत से इंसान के भीतर एक भीरू इंसान भी छिपा हुआ है। मैंने जानने की कोशिश की। पता चला कि उसके किसी 'शुभचिंतक' ने उसे सलाह दी थी अपनी रचना हटा लो। ऐसा क्यों करते हो। नुकसान उठाओगे। फंस जाओगे। वह वाकई उसकी बातों में फंस गया। उसने अपनी रचना हटा दी। शायद वह खुश होगा कि उस रचना को हटाकर अब वह भी अच्छा बच्चा बन गया है। सब की नजरों में। दफ्तर की खबरों में। लेकिन मुझे दुख है। राजू वैसा नहीं रहा। जैसा वो इलाहाबाद की गलियों में था। फिल्म सिटी की चौड़ी सड़कों में था। अब राजू सचमुच सयाना हो गया है। अब वह मायानगरी मुंबई में रहता है। अपना अच्छा-बुरा ज्यादा अच्छी तरह समझता है। किस चीज से फायदा है जानता है। किस चीज से नुकसान है पहचानता है। हर शुभचिंतक की बात मानता है। सचमुच....राजू अब 'जैंटिलमैन' बन गया है।
या चैनल के क्राइम बुलेटिन में काम करता हूं और वह भी। मैं भी इलाहाबादी हूं और वह भी। मैं भी कभी-कभार कविता लिखता हूं और वह भी। मुझे उसकी रचनायें अच्छी लगती हैं। मेरी रचनायें उसे कैसी लगती हैं, मैं नहीं जानता। मैं उसे पढ़ता हूं। कई बार तो उसकी लेखनी मेरे अंदर एक स्फूर्ति का संचार कर देती है। कई बार कुछ कर गुजरने का उत्साह भर देती है। कई बार सोचता हूं, ये लड़का एक दिन जरूर क्रांति कर देगा। मुझे क्रांति का झंडा बुलंद करने वाले बेहद पसंद हैं।यह कल तक की बात थी। उसके बारे में मेरी राय थी। आज उसने मुझे निराश किया है। मेरा मन अशांत है। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आ रहा है। मेरा छोटा भाई है। उस पर गुस्सा करना मेरा हक है। बहुत दूर है वर्ना शायद मैं उसे पीटने भी लग जाता। उसने काम ही ऐसा किया है। वो 'एक कदम बढ़ाकर दो कदम पीछे हटने' वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी। उसने ऐसा ही किया। मैं कहूं कि उसने 'दस कदम' पीछे हटा लिये तो गलत नहीं होगा। मुझे चापलूसी करने वाले लोग पसंद नहीं हैं। वह भी चापलूस नहीं है। लेकिन कल मुझे उसकी लिखी कुछ पंक्तियों में चापलूसी नजर आई। मैंने उसे बर्दाश्त कर लिया। सोचा कम से कम शुरुआती पंक्तियां तो सच बयां कर रही हैं। सच लिखने के लिये मैंने उसे मन ही मन धन्यवाद भी दिया। अपने एक दोस्त को भी बताया, देखो- राजू ने कितना अच्छा लिखा है। मेरे उस दोस्त ने भी राजू की हिम्मत की दाद दी-वाकई वो सच लिखता है।
अब आज की बात। आज सुबह मैं उसके ब्लाग पर फिर आया। सोचा बड़ा अच्छा-बड़ा सच्चा लिखा है। कुछ टिप्पणी कर देता हूं। उत्साहवर्धन होगा। आगे से और अच्छा लिखेगा- औऱ सच्चा लिखेगा। लेकिन आज उसने मेरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कल तक जो था आज वो नहीं है। जी हां, उसने आज अपनी कल लिखी गई रचना को अपने ब्लाग से हटा दिया था। अब आखिर मैं किस पर टिप्पणी करता? मैं सोचकर हैरान था। उस मजबूत से इंसान के भीतर एक भीरू इंसान भी छिपा हुआ है। मैंने जानने की कोशिश की। पता चला कि उसके किसी 'शुभचिंतक' ने उसे सलाह दी थी अपनी रचना हटा लो। ऐसा क्यों करते हो। नुकसान उठाओगे। फंस जाओगे। वह वाकई उसकी बातों में फंस गया। उसने अपनी रचना हटा दी। शायद वह खुश होगा कि उस रचना को हटाकर अब वह भी अच्छा बच्चा बन गया है। सब की नजरों में। दफ्तर की खबरों में। लेकिन मुझे दुख है। राजू वैसा नहीं रहा। जैसा वो इलाहाबाद की गलियों में था। फिल्म सिटी की चौड़ी सड़कों में था। अब राजू सचमुच सयाना हो गया है। अब वह मायानगरी मुंबई में रहता है। अपना अच्छा-बुरा ज्यादा अच्छी तरह समझता है। किस चीज से फायदा है जानता है। किस चीज से नुकसान है पहचानता है। हर शुभचिंतक की बात मानता है। सचमुच....राजू अब 'जैंटिलमैन' बन गया है।


शनिवार, अगस्त 11, 2007
Unknown
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6 comments:
आज की दुनियाँ ताल-मेल की है अगर जरा सा बई चूक हो जाए तो जीवन भर अधर में लटक सकता है इंसान…
आप सत्य के पुजारी हैं यह आपका अपना निर्णय है… किंतु कभी-2 वक्त ही वो हालात पैदा कर देता है कि हमारा अंत:करण सत्य की बजाए कुछ और भी खोजना चाहता है…।
आप कब तक राजू को केवल मैन रख सकते थे ? उसे कभी न कभी तो जेन्टलमैन बनना ही था ।
घुघूती बासूती
सही है-राजू बन गया जेन्टलमैन.
आपके विचारों से सहमत हूँ लेकिन राजू को भी अपने निर्णय लेने का हक है।
राजू है कौन? शायद हम सब।
राजू जैसा भी है लेकिन आप ने तो उसे जैंटिलमैन तो बना ही दिया। हो सकता है वो अब सुधर जाए।
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