गुरुवार, 24 जनवरी 2008

मेरा बेटा मुजरिम कर दे या अल्ला...


आमतौर पर देखने में आता है कि कोई भी ये नहीं चाहते कि उनके घर का कोई मेंबर क्रिमिनल कहलाये। गलत राह पर कदम बढ़ाये, लेकिन ब्रजेश की कहानी बिल्कुल अलग है। ब्रजेश के घरवाले ब्रजेश को सही बताते हैं और पुलिस को गलत। दुनिया की नजर में भले ही ब्रजेश सिंह माफिया सरगना है, खतरनाक अपराधी है, लेकिन अपने परिवारवालों में ब्रजेश की हैसियत किसी मसीहा से कम नहीं है।
ब्रजेश का परिवार आज जिस मुकाम पर है उसमें डॉन ब्रजेश का बड़ा हाथ है। सियासत हो या बिजनेस हर जगह ब्रजेश सिंह का रसूख और दबदबा उसके परिवार के काम आया। यही वजह है कि ब्रजेश के भाई और उत्तर प्रदेश के विधायक उदयभान उर्फ चुलबुल सिंह कहते हैं ब्रजेश को गलत तरीके से फंसाया गया है। चुलबुल सिंह का कहना है उनका भाई कई सालों से बाहर है और उत्तर प्रदेश पुलिस ने किसी और के अपराधों का ठीकरा उसके सिर फोड़ दिया। ब्रजेश को फंसाने की साजिश में चुलबुल विरोधियों पार्टियों का भी नाम लेते हैं।
कोई कुछ भी कहे इतना तो जगजाहिर है कि गुनाहों की लंबी फेहरिस्त रखने वाले बृजेश सिंह ने बंदूक के बूते वह मुकाम हासिल किया जिससे उत्तर प्रदेश में लोग उसके नाम से थर्राने लगे। लेकिन ब्रजेश का खूनी खेल शायद उसके परिवार को कभी नजर नहीं आया। ब्रजेश की मां के पास तो बेटे के हर गुनाह को सही ठहराने के लिए दलीलें मौजूद हैं। एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देने के बावजूद ब्रजेश कभी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया। पुलिस को उसका कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस के पास अगर कुछ था तो महज उसकी एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर।
पांच लाख के इस इनामी अपराधी के गिरफ्त में आने साथ ही उत्तर प्रदेश की सियासत में भी हलचल तेज हो गई है। जाहिर है जब ब्रजेश मुंह खोलेगा तो ऐसे कई राज बाहर आएंगे जो कई सफेदपोशों को बेनकाब कर सकते हैं। माफिया सरगना बृजेश सिंह की गिरफ्तारी के बाद बारी है उसके साथियों के बेनकाब होने की। इसकी शुरूआत भी हो चुकी है। यह काम किया है, उत्तर प्रदेश सरकार के एक आला अफसर ने। उस अफसर ने उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी ने बृजेश सिंह के गिरोह में शामिल लोगों की बाकायदा एक फेहरिस्त जारी की है। लेकिन जब से बृजेश के साथियों के नाम उजागर हुए हैं तभी से उत्तर प्रदेश की सियासत में हड़कंप मचा गया है। बृजेश सिंह सिर्फ एक माफिया सरगना ही नहीं है, बल्कि वह जिंदा मिसाल है, अपराध और राजनीति के गठबंधन की। पुलिस और माफिया की दोस्ती की। क्योंकि अगर गुनाह और गुनहगारों को सफेदपोशों की सरपरस्ती हासिल ना हो तो उनका पनपना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है।

जेल की सलाखों को तुम्हारा ही इंतजार था ब्रजेश !


कुछ लोग मजबूरन गुनाह करते हैं और कुछ लोग जानबूझकर। जानबूझकर गुनाह करने वाला हर इंसान यह अच्छी तरह जानता है कि उसकी आखिरी मंजिल जेल की सलाखें ही हैं। इसके बावजूद रातोंरात दौलत और रसूख की चाह लोगों को गुनाह की दुनिया अपनी तरफ खींच ही लेती है। कुछ ऐसी ही है उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े माफिया की दास्तां। नाम है ब्रजेश सिंह। पहले शराब माफिया फिर कोल माफिया और अब ड्रग माफिया...ब्रजेश सिंह ने जहां भी हाथ आजमाया वहीं कामयाबी उसके कदम चूमने लगी। ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि ब्रजेश सिंह ये अच्छी तरह समझ चुका था कि सियासी गलियों में कदम जमाकर वो सब कुछ आसानी से हासिल किया जा सकता है, जो वह हासिल करना चाहता है।

बस इसी सूत्र वाक्य पर चलकर वह बन गया उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा माफिया। तकरीबन बीस साल से पुलिस को चकमा दे रहा ब्रजेश सिंह अब कानून की गिरफ्त में आ चुका है। उत्तर प्रदेश के इस मोस्टवांटेड क्रिमिनल को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और उड़ीसा पुलिस की स्पेशल सेल ने बृहस्पतिवार को भुवनेश्वर के बड़ा बाजार इलाके से गिरफ्तार किया है। पुलिस को इस खतरनाक अपराधी की कई संगीन मामलों में तलाश थी। ब्रजेश के खिलाफ अदालतों से जारी कई वारंट जारी हो चुके हैं। लेकिन खास बात ये है कि अगर ब्रजेश पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता तो किसी को ये तक नहीं पता चलता कि वह जिंदा भी है या नहीं।

तकरीबन बीस साल से उत्तर-प्रदेश पुलिस को चकमा दे रहे ब्रजेश सिंह ने वह हर गुनाह किया जिसे कानून की नजर में संगीन कहा जाता है। हत्या, अपहरण और तस्करी के बल पर अपराध की दुनिया में अपना दबदबा कायम करने वाले ब्रजेश सिंह को पूर्वी उत्तर-प्रदेश में आतंक का दूसरा नाम कहा जाता है। यहां तक ब्रजेश के गुर्गे पुलिस को भी निशाना बनाने से नहीं चूकते थे। अपने दबदबे और काली कमाई के बल पर इन दो दशकों में ब्रजेश सिंह ने राजनितिक गलियारों में भी अपनी जबर्दस्त पैठ बना ली थी। कहा जाता है कि भाजपा के रास्ते अपने भाई चुलबुल सिंह को विधान परिषद सदस्य बनवाने में भी ब्रजेश का ही हाथ था। अपराध और सियासत की दुनिया में ब्रजेश के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने मऊ के माफिया और समाजवादी पार्टी के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को भी चुनौती दे डाली। नतीजा ये हुआ कि 2001 में दबदबे की इस लड़ाई ने तब बेहद खतरनाक शक्ल अख्तियार कर ली, जब दोनों गुटों के बीच हुये गैंगवार में कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

हैरानी की बात तो ये है कि ब्रजेश की तलाश में तीन राज्यों की खाक छान रही पुलिस को इस बात की भनक तक नहीं थी कि वह उड़ीसा में छिपा हुआ है। अब पुलिस के लिये उसकी गिरफ्तारी को एक बड़ी कामयाबी मानना लाजिमी है। नब्बे के दशक में ब्रजेश ने लोहे के कबाड़ का कारोबार शुरू किया था। कहा जाता है कि इस कारोबार में जिसने भी ब्रजेश सिंह का साथ दिया उसने आगे बढ़ने के लिये उन्हें ही रास्ते से हटा दिया। उन्हीं में एक नाम था वीरेंद्र सिंह टाटा। वीरेंद्र की हत्या का इल्जाम ब्रजेश सिंह पर ही है। शराब औऱ कोयले की तस्करी में हाथ आजमाने वाले ब्रजेश को इलाके में अफीम की तस्करी का सबसे बड़ा माफिया कहा जाता है। कहा जाता है कि ब्रजेश सिंह कुख्यात डॉन दाउद इब्राहिम के लिये भी काम करता था। इतना ही नहीं 1992 में जब दाउद के सबसे बड़े दुश्मन छोटा राजन पर हमला हुआ तो उसमें भी ब्रजेश सिंह का ही नाम सामने आया था।

सिर्फ उत्तर-प्रदेश ही नहीं, ब्रजेश सिंह ने अपना कारोबार बिहार और झारखंड में भी फैला रखा था। ब्रजेश की दहशत इस कदर थी कि उसकी इजाजत के बगैर इलाके में कोई अपना धंधा शुरू नहीं कर सकता था। यही वजह थी कि इन इलाके में दो नंबर का धंधा करने वाले तय वक्त पर ब्रजेश सिंह का हिस्सा उस तक पहुंचा देते थे। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक ब्रजेश सिंह के खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश और अपहरण समेत दो दर्जन से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं। कई मामलों में उसके खिलाफ अदालतों से वारंट जारी हो चुके हैं। लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि आज से पहले तक किसी को ये भी नहीं मालूम था कि ब्रजेश जिंदा भी है या नहीं। (जारी...)

शनिवार, 19 जनवरी 2008

क्या होगा नैनो आने के बाद...

कल्पना की भी कोई सीमा नहीं होती। अगर कोई कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार या फिर चित्रकार अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाना शुरू कर दे तो जाहिर है परिणाम बेहद रुचिकर और असरकारक होगा। ईमेल के जरिये एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर का सफर कर रही किसी की ये परिकल्पना भी बेहद रूचिकर है। साभार मैं इसे अपने ब्लाग पर पेश कर रहा हूं। आप भी देखिये-पढ़िये और इसे प्रस्तुत करने वाले का उत्साहवर्धन कीजिये।






शनिवार, 12 जनवरी 2008

आरती श्री गूगल महाराज की



दोस्तों, मुझे नहीं मालूम की इस आरती का लेखक कौन है। यह आरती मुझे ईमेल से मिली। जिसने भी इसे लिखा है वह बधाई का पात्र है। यह रचना दूसरों तक भी पहुंचे, इसीलिये इसे मैं साभार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। पढ़िये और टिप्पणी कर उस अनाम लेखक का उत्साहवर्धन कीजिये।

बुधवार, 9 जनवरी 2008

Stay with us...


(एक समाचार पत्र से साभार)

सोमवार, 31 दिसंबर 2007

जो आने वाले हैं दिन उन्हें शुमार में रख...



देखते ही देखते एक साल और गुजर गया. अगर मुश्किल में गुजरें तो एक-एक पल गुजारना मुश्किल होता है. यहां तो 365 दिन गुजर गये. सोचकर अजीब लगता है. ये दिन, महीने, साल कैसे गुजर जाते हैं. इसी का नाम तो जिंदगी है. जिंदगी का कोई लम्हा बहुत ही खुशगवार बन जाता है. कोई लम्हा यादगार बन जाता है तो कोई कभी न भूलने वाला डरावना सपना भी. जो गुजर गया वो गुजर गया. जो याद रखने लायक नहीं है उसे भूल जाना ही ठीक है. खैर मैं तो उन बातो का जिक्र करना चाहूंगा जिन्हें मैं हमेशा याद रखना चाहूंगा. पाना-खोना तो लगा ही रहता है. इस साल मैंने भी बहुत कुछ पाया. इसी साल मैं आरकुट से भी रूबरू हुआ। इसके जरिये वाकई मुझे अपने कई पुराने दोस्त मिल गये। बिछड़े दोस्तों को मिलाने वाली ये वेबसाइट वाकई में कमाल की है. इसी साल मैंने ब्लागिंग की दुनिया में भी प्रवेश किया. ये दुनिया वाकई में बहुत बड़ी और निराली है. सबसे बड़ी बात है कि इसकी वजह से मेरा लिखना फिर से शुरू हो गया. देश-विदेश में फैले हिंदी लेखकों को देख-पढ़कर बेहद सुखद अनुभूति हुई. हालांकि शुरू में कुछ परेशानी भी हुई. मुझे नाहक ही किसी दूसरे का आयडिया कॉपी करने का आरोप झेलना पड़ा। लेकिन मैं आपने उन ब्लागर साथियों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे समझा और मुझे बल दिया. मेरा साथ दिया. मेरे कुछ दोस्तों को तो ब्लागिंग के बाद ही मालूम हुआ कि मैं भी लिखने का शौक रखता हूं. ऐसी कई पुरानी रचनायें जो न तो छप सकी थीं और न ही मैं उन्हें कहीं प्राकाशनार्थ प्रेषित कर सका था उन्हें भी मैं अपने ब्लाग पर पेश कर सका। शायद इसलिये क्योंकि ऐसा करने के लिये मुझे किसी संपादक की अनुमति लेने की जरूरत नहीं थी. साल भर की बातें हैं लिखने में वक्त भी लगेगा और जगह भी. लिहाजा टुकड़े-टुकड़े में मैं लिखने की कोशिश करता रहूंगा. फिलहाल आप सबको नये साल की हार्दिक शुभकामनायें. (क्रमश:)

शनिवार, 3 नवंबर 2007

चिट्ठाकारों के लिये एक प्रतियोगिता हो तो कैसा हो?

कल टेस्ट पोस्ट करने के कई फायदे हुये। पता चला कि नारद जी आजकल आराम फरमा रहे हैं। हिंदी ब्लाग डॉट कॉम भी काफी समय से अपडेट नहीं हो रहा है। दूसरा फायदा यह हुआ कि हमारे मना करने के बावजूद अनेक लोगों ने हमारी पोस्ट पर क्लिक कर ही दिया। इसका फायदा यह हुआ कि इसी बहाने से वो हमारे ब्लाग पर आ पहुंचे और हमारी कुछ नई पुरानी रचनायें भी पढ़ लीं। उन सभी पाठकों का हम तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। इतना ही नहीं कुछ उदार पाठकों ने टिप्पणी करके भी हमें अनुग्रहीत किया, हमारा हौसला बढ़ाया। लिहाजा अब हम सोच रहे हैं कि कुछ लिख ही डालें। फिलहाल सोच रहे हैं क्या लिखें। हमेशा की तरह विषय की तलाश में हैं। आपको कोई विषय समझ में आये तो जरूर सुझायें। हम आपके आभारी रहेंगे। साथ ही आपसे एक विचार बांटना चाहते थे। हम हिंदी चिट्ठाकारों के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहते हैं। वह कविता, कहानी या लेख प्रतियोगिता हो सकती है। अगर आप लोग सुझा सकें कि उसका क्या स्वरूप होना चाहिये तो मुझे काफी सुविधा होगी। इसके अलावा इनाम की राशि कितनी होनी चाहिये? आशा है आपको मेरा विचार पसंद आयेगा।

 
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