आगे की चंद और पंक्तियों पर भी गौर करें-'ये तस्वीर लादेन की वास्तविक तस्वीर नहीं, बल्कि डिजिटल तकनीक से बनाई गई तस्वीर है और इस तस्वीर में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि इस समय लादेन कैसे दिखते होंगे।' खबर पढ़कर आपको कहीं भी ये नहीं महसूस होगा कि ओसामा बिन लादेन दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी है। खास बात यह भी है कि पूरी रिपोर्ट में लादेन के लिए कहीं भी आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। शायद बीबीसी के संपादक की नजर में लादेन भी उतनी सम्मानित 'हस्ती' हैं जितने कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री। इस खबर को पढ़ने के बाद शायद पत्रकारों को खबर लिखने का सही तरीका बीबीसी से सीखना होगा। कम से कम मुझे तो ऎसा ही लगता है।
खबर की अगली पंक्ति पर भी एक नजर डालें- 'एफ़बीआई के फ़ॉरेंसिक विशेषज्ञों ने उनके चेहरे की रूप-रेखा में थोड़ा सुधार किया है और यह दिखाने की कोशिश की है कि लादेन इस समय कैसे दिख सकते हैं।' अमेरिका ने अपने स्वार्थ के लिए ओसामा को अब भी दुनिया की नजरों में जिंदा रखा है, ऎसी खबरें तो आप कई बार पढ़ चुके होंगे। लेकिन ब्रिटेन में ओसामा इतनी सम्मानित शख्सियत हैं ये आप नहीं जानते होंगे। ये मैं दावे के साथ कह रहा हूं। बीबीसी की ये खबर आतंकवाद से लगातार लड़ रहे हिंदुस्तान के लिए एक चेतावनी है कि वो अतंरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने, उससे लड़ने और उसे खत्म करने के अमेरिका और ब्रिटेन के दावों की असलियत को समझे। यह खबर इन देशों की उसी 'सोच' को उजागर करती है।
ये कितनी हैरत की बात है कि एक तरफ ब्रिटेन के सैनिक अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ 'अभियान' छेड़ते हैं। अभियान भी ऎसा वैसा नहीं, किसी आतंकवादी की तलाश में छेड़ा गया अब तक का सबसे अभियान। दावों के मुताबिक दोनों देश ओसामा की खोज में करोड़ों-अरबो डॉलर पानी की तरह बहा चुके हैं। इसके बावजूद ओसामा है कि हाथ ही नहीं आता। अब जरा बीबीसी पर गौर करें। बीबीसी ब्रिटेन का सरकारी मीडिया है। सरकार के पैसों पर चलता है। कहा भी जाता है कि किसी देश का सरकारी मीडिया उसकी सोच उसकी संस्कृति का 'आईना' होता है। उसी आईने का एहसास करा रही है बीबीसी हिंदी की यह खबर।
खबर की अगली कुछ और पंक्तियों पर गौर करने से पहले हम बता दें कि लादेन को ढूँढ़ निकालने की कोशिश में जुटी अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी फ़ेडेरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन यानी एफ़बीआई ने लादेन की नई तस्वीर जारी की है। इस तस्वीर को जारी करने का मकसद दुनिया को यह बताना है कि लादेन अब भी जिंदा है और उसने अपना रूप बदल लिया है। आइये अब बात करते हैं खबर की अगली कुछ पंक्तियों की। आगे लादेन की यह खबर लिखते वक्त भी उसके सम्मान का पूरा-पूरा खयाल रखा गया है। हो सकता है कि बीबीसी को डर हो कि कहीं लादेन उन्हें 'मानहानि का नोटिस' न भेज दे।
फिर गौर कीजिए। लादेन साहेब की दो तस्वीरों के बारे में जानकारी देते हुए खबर में लिखा गया है- इन दो तस्वीरों में से एक में लादेन को पारंपरिक पोशाक में दिखाया गया है तो दूसरी तस्वीर में वे पश्चिमी वेश-भूषा में दिखते हैं और उनकी दाढ़ी भी कतरी हुई है। हमें यकीन है कि लादेन जहां कहीं भी 'होंगे' बीबीसी की इस खबर को पढ़कर के बारे में जानकर उतने ही अभिभूत हो जाएंगे जितने कि हम हैं। पूरी खबर में लादेन के लिए 'उन्हें' और 'वे' जैसे सम्मानित शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। आगे लिखा है-ओसामा बिन लादेन का कथित वीडियो आख़िरी बार वर्ष 2007 में आया था. वो वीडियो 30 मिनट का था और उस वीडियो में लादेन को ये कहते दिखाया गया था कि जॉर्ज बुश को अमरीकी जनता ने दूसरी बार समर्थन दिया है कि वे इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में लोगों की हत्या जारी रखें।
अब बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की एक और खबर पर गौर करें। खबर का शीर्षक है-'घायल हो गए हैं हकीमुल्ला।' दुनिया जानती है कि हकीमुल्ला तालिबान का एक खतरनाक आतंकवादी है। लेकिन बीबीसी हकीमुल्ला के बारे में खबर लिखते हुए उनके सम्मान का खास खयाल रखता है। खबर का पहला पैरा है-पाकिस्तान में तालेबान प्रवक्ता ने स्वीकार किया है कि गुरुवार को हुए अमरीकी ड्रोन हमले में उनके नेता हकीमुल्लाह महसूद घायल हो गए हैं। इस हमले में हकीमुल्लाह महसूद के मारे जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन तालेबान ने दावा किया था कि वे बच निकलने में क़ामयाब हुए हैं। खबर के एक और पैराग्राफ पर नजर डालिए औऱ खुद फैसला कीजिए कि बीबीसी की नजर में आतंकवादी कितने सम्मानित हैं।....उधर अधिकारियों ने यह भी दावा किया है कि नौ जनवरी को हुए मिसाइल हमले में एक प्रमुख तालेबान नेता जमाल सईद अब्दुल रहीम की मौत हो गई है। जमाल सईद उन चरमपंथियों में से थे जिसकी अमरीकी केंद्रीय जाँच एजेंसी एफ़बीआई को सबसे अधिक तलाश है. उन पर 50 लाख डॉलर का ईनाम था. आरोप है कि 1986 में पैन अमरीकन वर्ल्ड एयरवेज़ के एक विमान के अपहरण में उनका हाथ था।
बीबीसी की संपादक सलमा जैदी को एक बार फिर लाख-लाख बधाई। वैसे उन्हें जितनी बधाइयां दी जाएं कम हैं। हमारा सुझाव है कि सलमा जी बीबीसी के पाठकों को लादेन जैसी महान हस्ती से रूबरू कराने के लिए एक श्रृंखला शुरू करें। ताकि लोग उनकी 'खूबियों' से वाकिफ हो सकें। चाहे तो उनके समाजसेवी संगठन 'अलकायदा' के लिए ब्रिटेन समेत कई देशों के लोगों से आर्थिक सहायता की अपील भी कर सकती हैं। हमे यकीन है कि दुनिया में उनकी जैसी 'सोच' के लोगों की कमी नहीं होगी। उनकी एक अपील पर ही बीबीसी के दफ्तर पर चेकों का ढेर लग जाएगा। एक संपादक किस कदर 'निष्पक्ष' हो सकता है यह सलमा जैदी ने साबित कर दिया है। साथ ही उन पत्रकारों के लिए एक रास्ता भी बता दिया है जो भविष्य में बीबीसी की वेबसाइट का संपादक बनने की हसरत रखते हैं। बहुत-बहुत शुक्रिया सलमा जैदी जी। हम चाहेंगे कि आप का नाम भी एक दिन ओसामा की तरह ही दुनिया की सम्मानित शख्सियतों में शुमार हो। (दोनों संबंधित तस्वीरें बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से साभार)
7 comments:
बीबीसी की इस खबर से हमें भी झटका सा लगा था, फिर सोचा उच्च पत्रकारिता के मानदण्ड होते होंगे, हम ठहरे अज्ञानी.
अच्छी पोस्ट थी, B.B.C की पत्रकारिता को एक मापदंड़ के तोर पर देखा जाता है ।पर वहीं ऐसे लेख देखने को मिले तो हैरानी भी ज़रूर होती है ।
"बीबीसी के संपादक की नजर में लादेन भी उतनी सम्मानित 'हस्ती' हैं जितने कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री"
ठीक कह रहे हैं.
तो ये है मेनस्ट्रीम का मीडिया बैलेंस।..
हम्म.. बढ़िया ख़बर ली आपने बीबीसी की.. बढ़िया है आशियाना...
भाई, इसमे दोष ब.ब.सी का नहीं है और न हीं दोष है उसकी भाषा का.
अगर दोष है तो वो है हमारी सोच और चीजों को देखने का. आप बी.बी.सी. के लेखन शैली का मज़ाक उड़ा कर खूश होना चाहते हैं तो बेशक होइए.
मैं बीबीसी को रोज पढ़ता हूं और सुनता हूं. यहां हर किसी को एक तरह के शब्दों से ही कहा और लिखा जाता है.
प्रिय विकास, आप रोज बीबीसी पढ़ते हैं इसमें मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती है। मेरी सोच आप जितनी बड़ी नहीं है। मैंने तो अभी तक यही सुना है कि व्यक्ति के कर्म ही उसे सम्मान का हकदार बनाते हैं। मुझे तो नहीं लगता कि लादेन या हकीमुल्ला के कर्म इतने अच्छे हैं कि वो सम्मानजनक संबोधन के हकदार हैं। हो सकता है आपकी नजर में हों। वैसे मुझे लगता है कि आप उस सोच के शिकार हैं, जिन्हें विदेश से आई हर चीज सोना लगती है। बीबीसी है तो कुछ गलत नहीं करेगा। आखिर हिंदी में दो तरह के संबोधन की सुविधा क्यों है? क्या किसी चोर-उचक्के या कातिल को आप, आप कहना पसंद करेंगे? फिर लादेन या कोई भी आतंकी तो पूरी इंसानियत का दुश्मन होता है। अगर आपको ठीक लगता है तो लगे मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
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