पहुंचते-पहुंचते लेट हो गया। ऑफिस के ही सहायक वर्मा की डेथ हो गई थी। मातमपुर्सी में जाना था। पहुंच गया। अंदर पहुंचते ही मरघट सा सन्नाटा महसूस हुआ। बहरहाल, वर्मा के परिजनों से मिलकर दुख प्रकट किया। जहां तक हो सका रोनी सूरत बनाई, मुंह लटकाया।
सभी सिर झुकाए बैठे थे। मैं भी बैठ गया। थोड़ी-थोड़ी देर में देख लेता था...कौन क्या कर रहा है...(वाकई शोक सभा में बैठना बड़ा बोरिंग काम है) इस सक्सेना को देखो ऎसे मुंह लटकाए बैठा है जैसे इसी के घर से जनाजा निकलने वाला हो। बड़ा अपना बनता है, वर्मा से इसकी बिल्कुल भी नहीं पटती थी। लेकिन मुझे इससे क्या लेना-देना।
बॉस को देखो...शोक प्रकट करने आया है। यहां भी अपनी सेक्रेटरी को साथ लाना नहीं भूला। इसके तो ऎश हैं। वर्मा की पे रोक रखी थी। मरते ही चेक काट दिया। बड़ा अपना पन दिखा रहा है। आज तक अपनी सेक्रेटरी की पे नहीं रोकी...वह तो जब चाहे आए, जब चाहे जाए। वैसे वह आती अक्सर देर से ही है। लेकिन मुझे इससे क्या लेना-देना।
मिसेज वर्मा पर भी क्या मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। बच्चे तो हैं नहीं। चलो अच्छा है। कुछ दिनों बाद उस अस्थाना से...बहुत घर आता-जाता था। अब भी देखो कैसे सट कर बैठा है मिसेज वर्मा से। माहौल का भी खयाल नहीं रखता स्साला। मन ही मन तो खुश ही हो रहा होगा। वर्मा अच्छा चला गया। जरूर इसी की बददुआ लगी होगी बेचारे को। अव्वल दर्जे का कमीना है। अब तो कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं है। जहां चाहे वहां ले जाए। लेकिन मैं यह सब क्यों सोचने लगा। आखिर मुझे इससे क्या लेना-देना।
वैसे कुछ भी हो वर्मा ने मकान बड़ा आलीशान बनवाया है। क्या खूब है। इतना बडा़ घर? इस अकेली के लिए? शायद बेचने की सोच रही हो...एक दो दिन में बात करता हूं। बात बन जाए तो अच्छा ही है। अस्थाना का तो अपना मकान है ही...फिर इसकी क्या जरूरत? 'बेचेंगे' तो अच्छा ही है। नहीं तो मकानों की कमी थोड़े ही है। कहीं और देख लूंगा। ये अस्थाना ही टांग अड़ा सकता है। बहुत चालू चीज है। लेकिन मुझे इससे क्या लेना-देना।
रमेश भी आया है। अब इसका क्या होगा? इसकी फाइलें तो वर्मा ही निबटाता था। शायद इसीलिए सबसे 'रियल' दुखी नजर आ रहा है। पता नहीं कैसे पटा रखा था वर्मा को। खुद तो मोना से दरबार करता रहता था और वर्मा बेचारा काम में लगा रहता था। अच्छा ही हुआ। अब बेचारे वर्मा की आत्मा को शांति मिलेगी। लेकिन अब इस रमेश को पता चलेगा। बहुत होशियार बनता है खुद को। कैसे बार-बार आंखों में रुमाल फेर रहा है। शर्म भी नहीं आती घड़ियाली आंसू बहाने में। पाखंडी कहीं का। इसका भी बहुत आना-जाना था वर्मा के यहां। मिसेज वर्मा को पति की जगह लगवाने की बात कह रहा था। बड़ा इंटरेस्ट ले रहा था। जरूर इसका कोई मतलब होगा...मतलबी तो नंबर एक का है। कहीं अब अपनी फाइलें मिसेज वर्मा से तो नहीं निबटवाने की तैयारी...? लेकिन मुझे इससे क्या लेना-देना।
मोना को देखो, क्लर्क है, लेकिन बनती ऎसे है जैसे खुद ही बॉस हो। सादे कपड़ों में आना तो मजबूरी है। फिर भी मेकअप करना नहीं भूली। इसे भला वर्मा के रहने न रहने का कैसा दुख? उल्टे ये तो और खुश हो रही होगी कि अब वर्मा की पोस्ट इसे ही मिलेगी। तभी तो चेहरे पर दुख की एक भी लकीर नजर नहीं आ रही है। जाने दो, मुझे इस सबसे क्या लेना-देना।
अरे, यह राजेश यहां क्या कर रहा है? शोक सभा में आने की तमीज भी नहीं है। वही कपड़े पहने चला आया। चपरासी है पर अकड़ ऎसी कि क्या कहने...एक चाय मंगाने के लिये दस बार कहना पड़ता है। ऊपर से एक चाय एक्सट्रा, उसका गला तर करने के लिए। खड़ा तो ऎसे है जैसे बड़ा भोला है। मोना की चाय तुरंत आ जाती है। हमारा काम तो पचास नखरे जैसे तनख्वाह ही नहीं लेता। अहमक कहीं का।
अच्छा, ये गणेश भी आया है। ऑफिस में तो शक्ल ही नहीं दिखाई देती। यहां कैसे आ गया? मुफ्त की तनख्वाह लेता है। पता नहीं बॉस के घरवालों को कौन सी घुट्टी पिला रखी है। शायद बॉस की बीवी को....। इसकी हाजिरी तो ऑफिस की जगह घर पर लगती है। आज पूरे एक महीने बाद शक्ल दिखाई है। वह भी यहां। ऑफिस जाएगा लेकिन बस पे लेने। काम से इसका क्या वास्ता? बॉस ने जो लिफ्ट दे रखी है। लगता है बॉस की कोई कमजोर नस इसके हाथ आ गई है। तभी तो बॉस ने इसे आज तक रोका-टोका नहीं है। ये करता क्या है? जरूर कोई साइड बिजनेस शुरू कर रखा होगा। तभी तो कार से चलता है। लगता है काफी कमाई हो रही है। होने दो, मुझे इससे क्या लेना-देना।
सचमुच वर्मा के जाने से मैं बहुत दुखी हूं। मैं तो हमेशा से उसका, उसके परिवार का शुभचिंतक रहा हूं। बाकी लोग कैसे हैं इससे मुझे क्या लेना देना।
शोक सभा में सभी अपनी राय प्रकट कर रहे थे। बडा़ अच्छा आदमी था...कभी किसी से टेढ़े होकर बात नहीं की। सबसे अच्छा व्यवहार और काम पर ध्यान, यही तो खूबियां थीं वर्मा की। वैसे मरने के बाद हर आदमी बहुत अच्छा हो जाता है। उसकी बुराइयां दूर होते देर नहीं लगती। मेरी राय में वर्मा सचमुच बहुत अच्छा आदमी था। मगर अच्छा हो या बुरा, अब तो मर खप गया। अब भला मुझे उससे क्या लेना-देना?
8 comments:
badhiya vyangya..
अनेको बार इस विषय पर पढ़ा है पर फ़िर भी रोचक लगता है....ओर तो ओर गुलज़ार साहब ने भी एक नज्म लिखी है ......आपकी रचना दिलचस्पी बनाये रखती है ,शब्दों की अच्छी पकड़ है......पढ़कर मजा आया ....
वर्मा सच मे मर गया, भला आदमी था, लेकिन मुझे कया लेना देना
लेकिन आप ने लेख बडा अच्छा लिखा हे, लिखा होगा,लेकिन मुझे कया लेना देना, मे तो टिपण्णी देने आ गया था, बाकी मुझे क्या लेना देना ने आप की पोस्ट को चार चांद लगा दिये, धन्यवाद एक अच्छी पोस्ट के लिये
वाकई, यही तो होता है-मानवीय संवेदना पर जिन्दगी की भागदौड़ इस बुरी कदर हाबी हो गई है.
बहुत बढ़िया शब्द दिये हैं इन विचारों को, बधाई.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
व्यंग्य पसंद करने के लिये धन्यवाद कुश।
शुक्रिया अनुराग जी, लेकिन आपने यह नहीं बताया कि गुलजार ने कौन सी नज्म लिखी है। कृपया जरूर बताएं।
राज जी, आपको कुछ भी नहीं लेना-देना था, फिर भी आप टिप्पणी करने आए। आभारी हूं आपका।
समीर जी, समय-समय पर मिलने वाला आपका प्रोत्साहन बहुत महत्वपूर्ण होता है। मैं कोशिश करूंगा की आपके विचार को आगे बढ़ाऊं और खुद भी इस पर अमल करूं। शुक्रिया।
rojmaara ki jindagi ka kadwa sach ...in vishayo.n par aap ki lekhni kamal dikhati hai.
शुक्रिया कंचन जी।
वाह वाह! क्या बात है! - आनंद
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