बुधवार, 8 मई 2013
राष्ट्रवादी की डायरी : पहला पन्ना
बुधवार, मई 08, 2013
Unknown
2 comments
मैं एक राष्ट्रवादी हूं। राष्ट्रवाद की भावना मेरे अंदर कूट-कूट कर भरी है। इस भावना को पत्थर की तरह कूटा गया था या मिट्टी की तरह ये तो मुझे नहीं मालूम लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं की जीते जी ये भावना मेरे दिल से निकलने वाली नहीं, बल्कि ये दिनोंदिन बलवती होती जा रही है। आज से मैं अपनी डायरी लिख रहा हूं। इस डायरी के जरिये आप मुझसे, मेरे बैकग्राउंड से और मेरे देशप्रेम से ओतप्रोत विचारों से अवगत हो सकेंगे। आगे कुछ लिखने से पहले मैं अपना परिचय करा दूं। मेरा नाम आरएसएस भाई पटेल है। मेरे पिताश्री का नाम वीएचपी भाई पटेल था। वो गुजरात के रहने वाले थे। मेरा जन्म भी गुजरात में ही हुआ। परवरिश भी वहीं पर हुई।
पिताजी ने हमें बचपन से ही राष्ट्रवादी संस्कार दिए थे। वह खुद भी कट्टर राष्ट्रवादी थे। संघ वालों से उनकी बहुत पटती थी। वही संघ वाले जो अपने सामाजिक कार्यों के लिए विश्व विख्यात हैं। पिताश्री रोजाना संघ की शाखा में जाया करते थे। वह बताते थे कि संघ से बड़ा देशभक्त संगठन दुनिया में नहीं है। उन्होंने अपने आप को पूरी तरह संघ के रंग में रंग लिया था। जब देखो तब एक खाकी हाफ पैंट में घूमते रहते थे। खाकी औऱ भगवा रंग से पिताजी को खासा लगाव था। असल में वो फौजी बनना चाहते थे, ताकि खाकी ड्रेस पहनकर वो भी देश की सेवा कर सकें। लेकिन कद छोटा होने की वजह से फौज में भर्ती नहीं हो पाए। लेकिन दिल में इस बात की कसक हमेशा रही। फिर पुलिस में भर्ती होने के लिए भी हाथ-पांव मारे, लेकिन उस समय पुलिस का बड़ा साहब दूसरे धर्म वाला था, बस उसी ने लंगड़ी मार दी और पिताश्री पुलिस अफसर बनते-बनते रह गए।
खाकी धारण करने की हसरत मन में ही रह गई। इसी की भरपाई करने के लिए के लिए पिता जी संघ में पहले से ज्यादा सक्रिय हो गए। खाकी की फुल ड्रेस नहीं पहन पाए तो क्या हुआ। कम से कम यहां खाकी हाफ पैंट तो पहनने को मिलता था। उसी से संतोष कर लिया। उसे ही गर्वित होने का जरिया बना लिया। पिता जी ने कभी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। आखिर तक उनका मानना था कि उनका धर्म श्रेष्ठ है। वह ये भी मानते थे भारत एक हिंदू राष्ट्र है। यहां सिर्फ हिंदुओं को ही रहना चाहिए। बाकी धर्मों के लोगों को देश से निकाल देना चाहिए। उनकी वजह से देश का माहौल खराब होता है। देश की पहचान बिगड़ती है।
वह इस देश को इंडिया या भारत कहने के भी खिलाफ थे। उनका मानना था कि इस देश का नाम हिंदुस्तान ही होना चाहिए। हिंदुस्तान बोलने पर उन्हें हिंदू होने का अहसास होता था। इससे वो गर्व से भर उठते थे। सीना दो-चा इंच और चौड़ा हो जाता था। धर्मनिरपेक्षता से वो खासे दुखी रहते थे। उन्हें ये देखकर अफसोस होता था कि कुछ लोग हिंदू होते हुए भी दूसरे धर्मों की तरफदारी करते हैं। देश को सेक्युलर बनाने की वकालत करते हैं। एक ऎसा देश जहां सभी धर्मों के लोग प्रेम से मिलजुल कर रहें। पिताजी को यह सुनकर कोफ्त होती थी। उनके मुताबिक ऎसा कतई मुमकिन नहीं है। मिलजुल कर रहना हिंदुओं की आदत नहीं। जब वो खुद आपस में ही मिलजुलकर नहीं रह सकते तो भला दूसरे धर्म वालों के साथ कैसे मिलजुल कर रहेंगे? पिताजी की यह बात कुछ सेक्युलर टाइप के लोग समझते ही नहीं थे। इसीलिए वो सेक्युलरिज्म से दुखी रहते थे। इसी दुख को दिल में दबाए एक दिन वो स्वर्ग सिधार गए।
पिताजी स्वदेशी के भी जबरदस्त समर्थक थे। हर विदेशी चीज से उन्हें चिढ़ थी। उनका बस चलता तो देश से विदेशी चीजों को चुन-चुनकर बाहर फिंकवा देते। चाहे वो सामान हो या इंसान। तकनीक हो या मशीनरी। वो जब भी बीमार होते थे तो वैद्य के पास जाते थे। जड़ी बूटियां खाकर अपना इलाज करते थे। अस्पताल जाना और विदेशी दवाइयां खाना उन्हें सख्त नापसंद था। कभी मजबूरन अस्पताल जाना भी पड़े तो उनकी सख्त ताकीद थी कि कोई अन्य धर्म का डॉक्टर उन्हें हाथ भी न लगाए। इससे धर्म भ्रष्ट हो जाता है। उसकी शुद्धता दूषित हो जाती है। उन्हें पराए धर्म वालों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। वह अपने धर्म के लिए जीते थे। जहां धर्म की बात आती थी, मरने-मारने पर उतारू हो जाते थे। गाली-गलौज पर उतर आते थे। मार डालने, काट डालने की बातें करने लगते थे।
पिताजी की अंतिम इच्छा थी कि उन्हें खाकी हाफ पैंट में ही दफनाया जाए। मैंने इस बात का पूरा खयाल रखा। उनकी अंतिम यात्रा पर सैकड़ों संघी आए थे। बहुत लंबी यात्रा थी। गुजरात वैसे भी यात्राओं के लिए प्रसिद्ध है। गांधी जी का दांडी मार्च भी तो यहीं हुआ था। मेरे पिताजी को गांधी पसंद नहीं थे। वह गोडसे के भक्त थे। वही गोडसे जिसकी गोलियों ने गांधी का काम तमाम कर दिया था। मैंने गोडसे के बारे में बहुत पढ़ा है। मैंने तो राष्ट्रवाद माननीय गोडसे और अपने पिताजी से ही सीखा है। भावुकता में पिताश्री के बारे में काफी कुछ लिख गया। अब अगले पन्ने से अपने बारे में लिखना शुरू करूंगा। जय हिंद। जय हिंदुस्तान।
2 comments:
bahoot khoob
बहुत खूब...
एक टिप्पणी भेजें