
खामोश हो गई एक मुखर आवाज। हमेशा के लिए खामोश हो गए प्रभाष जोशी। हिंदी पत्रकारिता का एक युग खत्म हो गया। पत्रकारिता जगत में प्रभाष जोशी के मुरीद भी हैं और आलोचक भी। पैसे लेकर चुनावी खबरें छापने वाले अखबारों के खिलाफ अगर कोई सबसे पहले बोला तो वह प्रभाष जोशी ही थे। प्रभाष जोशी ने ऐसे अखबारों के खिलाफ बाकायदा अभियान ही छेड़ दिया था। उन्होंने चुनाव में बिकाऊ अखबारों की जमकर खबर लिखी। जनसत्ता में लगातार लेख लिखे। नतीजा यह हुआ कि पैसे लेकर खबरें छापने वाले अखबारों के खिलाफ पूरे देश में माहौल बनना शुरू हो गया। जातीय दंभ के मुद्दे पर प्रभाष जोशी को आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा। अपने एक लेख में बड़बोलापन दिखाते हुए जोशी ने अलग-अलग क्षेत्र की कुछ हस्तियों...