सच कहूं तो त्योहारों को लेकर मैं कोई खास उत्साहित नहीं रहता। त्योहार वाला दिन मेरे लिए आम दिनों जैसा ही होता है। घर पर टीवी देखना या इंटरनेट पर वक्त बिताना ज्यादा अच्छा लगता है। पूजा-पाठ, पटाखों का शोर और बाजार से ढेर सारा सामान जुटाने का झंझट, पता नहीं लोगों को यह सब करके क्या मिलता है।
इस दिवाली पर एक अच्छी खबर सुनने को मिली। इस बार दिल्ली सरकार ने पटाखों के लिए लाइसेंस बहुत कम संख्या में जारी किए हैं। इसिलिए इस बार दिल्ली के बाजार में पटाखे कम ही नजर आए। वर्ना याद आते हैं दिवाली के वो दिन जब लोग इस मौके पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करते नजर आते थे। एक पड़ोसी ने 100 रुपये वाला बम फोड़ा तो अगले को 150 वाला बम फोड़ना है। महज इसलिए क्योंकि उसे खुद को ज्यादा ताकतवर, संपन्न जताना है। उनकी ताकत दिखाने वाले ये बम इतना शोर करते हैं कि मैं बता नहीं सकता। इन पटाखे रूपी बमों के फटने का सिलसिला शुरू होता था तो खत्म होने का नाम नहीं लेता था।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार यह सिलसिला थम जाएगा। थमेगा नहीं तो कम तो जरूर हो जाएगा। अगर ऎसा होता है तो इसका असर दिल्ली के पर्यावरण पर भी पड़ेगा। वैसे पहले की तुलना में महानगरों के लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो गए हैं। बच्चे भी पीछे नहीं हैं। होश संभालते ही वो समझदारी की बातें करने लगें हैं। नई पीढ़ी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास जल्दी होता है। ऎसा मेरा अनुभव है। एक बात और मिठाइयां जरा संभलकर खाइये-खिलाइयेगा। मिलावटखोरों को सिर्फ अपनी आमदनी की फिक्र होती है, किसी की सेहत से उन्हें कोई मतलब नहीं। आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं। आपका रवींद्र
2 comments:
विचारणीय पोस्ट लिखी है।
आपकी चिंता हम सबकी चिंता है....
एक टिप्पणी भेजें