
शुक्रवार, सितंबर 18, 2009

Unknown
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एंकर श्रीवर्धन त्रिवेदी के बगैर सनसनी के बारे में सोचना भी मुश्किल है। आज की तारीख में सनसनी और श्रीवर्धन एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं। कल्पना कीजिए किसी दिन स्टार न्यूज पर सनसनी हो, लेकिन एंकर के तौर पर सेट पर श्रीवर्धन न हों तो क्या होगा? जाहिर है सब कुछ अधूरा-अधूरा सा लगेगा। दर्शक मिस करेंगे उस चेहरे को। उस रौबदार आवाज को, जो बरसों से टीवी के परदे पर सनसनी बनकर गूंज रही है। कामयाबी का इतिहास गढ़ रही है। वैसे तो एक कार्यक्रम की सफलता के पीछे एक पूरी टीम का हाथ होता है। लेकिन टीम तो दूसरी भी बनाई जा सकती है, श्रीवर्धन नहीं। अगर मैं यह लिख रहा हूं तो कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। लिम्का बुक में श्रीवर्धन का नाम आना कोई अश्चर्य की बात नहीं है। वह वाकई में बधाई के हकदार हैं। हर इंसान की तबीयत कभी न कभी तो खराब ही होती है। कोई न कोई तो ऐसा लम्हा आता है जब उसका सारा रूटीन गड़बड़ा जाता है। वह काम नहीं कर पाता। या कर नहीं सकता। तो क्या श्रीवर्धन की जिंदगी में ऐसे लम्हे कभी नहीं आए? कभी कोई अड़चन नहीं आई? वह लगातार कैसे उपलब्ध रहे? यकीनन ऐसे कई मौके आए। कई लम्हे आए। लेकिन हर बार श्रीवर्धन ने सनसनी को प्राथमिकता दी। मुझे याद है एक दिन वह शो की एंकरिंग कर रहे थे और उन्हें तेज बुखार था। इसके बावजूद उनके चेहरे पर न तो कोई शिकन थी औऱ ना ही उनकी आवाज लरज रही थी। हां अगर कोई उनकी आंखों को पढ़ता तो शायद उनकी मुश्किल को समझ सकता था।
उस मौके को भला कैसे भुलाया जा सकता है जब श्रीवर्धन के पुश्तैनी घर में आग लग गई थी। इतना ही नहीं जब उनकी मां की तबीयत बुरी तरह खराब थी तब भी उन्होंने अपने घर यानी जबलपुर से सनसनी की शूटिंग जारी रखी थी। ऐसे छोटे-मोटे मौके तो कई बार आए जब श्रीवर्धन को दो-तीन दिन दिल्ली से बाहर रहना पड़ा। ऐसे में एडवांस एपिसोड रिकार्ड किए गए। ये अलग बात है कि दर्शकों को इस बात का एहसास तक नहीं हो पाता था कि वो रिकॉर्डेड एपिसोड देख रहे हैं। दर्शक हमेशा से यही समझते आए हैं कि सनसनी का लाइव प्रसारण होता है।
22 नवंबर 2004 को जब सनसनी की शुरूआत हुई तब यह हफ्ते में पांच दिन दिखाया जाता था। ऐसे में एंकर के साथ-साथ टीम से जुड़े बाकी सदस्यों को भी दो दिन का रिलैक्स मिल जाता था। लेकिन लोकप्रियता के रथ पर सवार सनसनी ऊंचाईयां पर ऊंचाइयां छूता गया। मुझे याद है कि शायद ही कोई ऐसा हफ्ता गुजरता था जब स्टार न्यूज के टॉप टैन प्रोग्राम की फेहरिस्त में सनसनी न शामिल रहता हो। चैनल के प्रोग्रामों की रेटिंग में अक्सर सनसनी पहले या दूसरे नंबर पर रहता था। वह स्थिति अब भी बरकरार है, क्योंकि अब भी श्रीवर्धन त्रिवेदी इसके एंकर हैं। श्रीवर्धन के रूप में सनसनी लगातार सन्नाटे को चीर रही है। बिना रूके। बिना थके। निश्चत तौर पर यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। सनसनी की बंपर कामयाबी को देखते हुए ही इसे 2005 में हफ्ते में सातों दिन प्रसारित करने का फैसला किया गया।
सनसनी को अगर दर्शकों का प्यार मिला तो इसके आलोचक भी कम नहीं हैं। खासकर श्रीवर्धन की हेयर स्टाइल और प्रस्तुतिकरण पर सवाल उठाए गए। क्राइम को सनसनीखेज तरीके से पेश करने के भी आरोप लगे। लेकिन सनसनी लगातार शिखर पर चढ़ता रहा। बढ़ता रहा। श्रीवर्धन त्रिवेदी को भले ही लोग सनसनी के एंकर के तौर पर जानते हैं, लेकिन यह शायद कम लोगों को ही मालूम है कि वो एक बेहतरीन एक्टर भी हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पास आउट हैं। कई शानदार और कामयाब नाटकों में अभिनय कर चुकें हैं। स्क्रिप्टिंग और निर्देशन कर चुके हैं। अब भी वह सक्रिय रूप से थियेटर से जुड़े हैं। एक एनजीओ के माध्यम से उन्होंने कई गरीब बच्चों की अभिनय प्रतिभा को निखारा है। उनसे अभिनय सीखकर कई बच्चे तो फिल्मों में काम भी पा चुके हैं। खैर, मैं श्रीवर्धन पर कोई जीवनी लिखने नहीं बैठा। इस आलेख का मकसद सिर्फ श्रीवर्धन को उनकी कामयाबी (लिम्का बुक में नाम दर्ज) की बधाई देना और उनसे जुड़ी यादों को ताजा करना है।
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3 comments:
श्रीवर्धन को बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं। बहुत कम ही लोग हैं जो मौजूदा मीडिया में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। आलोचना तो कुछ भी कर लें होती ही रहेंगी लेकिन अपने काम के प्रति इमानदारी ही किसी को आगे ले जाने में सबसे बड़ी प्रेरणा और ताकत का काम करती है।
वाकई सनसनी में श्रीवर्धन की जगह कोई नहीं ले सकता। श्रीवर्धन ने क्राइम शो को एक नई पहचान दी। उनकी एंकरिंग ने अलग तरह का ट्रेंड बनाया। पड़ोस में होने वाला गुनाह छोटा हो या बड़ा...वो दहशत ज़रूर होता है...इसी बात को बार बार कहते हैं श्रीवर्धन। उनकी आवाज़ से ही सनसनी का अहसास होता है। उन्हें बहुत-बहुत बधाई। ईश्वर न करें कि हम बतौर सनसनी के एंकर श्रीवर्धन के अलावा किसी और को देखें।
श्रीवर्धन की तारीफ़ से ऐतराज़ नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि सनसनी एक अवधारणा के रूप में ज़्यादा सफल है। क्राइम की ख़बरों को पेश करने का अब तक का सबसे सफल आइडिया। अगर श्रीवर्धन की जगह रवींद्र रंजन होते और वो शुरूआत में पसंद कर लिए जाते तो भी शायद बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता.... मुझे लगता है कि बधाई का असल पात्र तो वो व्यक्ति है जिसने ये कन्सेप्ट सोचा, जिसने श्रीवर्धन का चुनाव किया (पत्रकार नहीं एक्टर), जिसने इसे सनसनीखेज बनाया। अगर वो व्यक्ति अजीत अंजुम हैं तो ये पोस्ट उनके बारे में होनी चाहिए थी.... यूं भी BAG में कई सफल प्रोग्राम उनके खाते में हैं....
हो सकता है कि `डेस्क वाला' होने के नाते मेरी ये सोच हावी हो कि प्रोड्यूसर/डायरेक्टर को एक्टर से कम भाव नहीं मिलना चाहिए.... लेकिन फिर मैं कहता हूं कि सनसनी का प्रेजेंटेशन उसके एंकर से महत्वपूर्ण है....
बहरहाल तुम भी इस टीम के लंबे वक्त से सदस्य हो- बधाइयां तुम्हें भी
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