
मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने बीबीसी की भाषा को लेकर एक सवाल उठाया था। सवाल यह था कि दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकी और इंसानियत का दुश्मन ओसामा बिन लादेन सम्मान का हकदार कैसे? अभी तक तो हमने यही सुना है कि व्यक्ति के कर्म ही उसे महान बनाते हैं। कर्म ही सम्मान का हकदार बनाते हैं। लेकिन बीबीसी के लिए एक आतंकवादी भी सम्मानित है। कल्पना कीजिए कि अगर मुंबई हमले का गुनहगार आमिर अजमल कसाब बीमार हो जाए तो उसके बारे में लिखी गई बीबीसी की खबर का शीर्षक क्या होगा। शायद वह लिखेगा, 'बीमार हैं कसाब' या फिर 'बीमार हुए कसाब'। अब आप सोचिए कि कसाब के बारे में ऐसा संबोधन पढ़कर एक हिंदुस्तानी को कैसा लगेगा? हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें बीबीसी के इन भाषाई तौर-तरीकों...