रविवार, 15 मार्च 2009

स्टोव! मेरे स‌वालों का जवाब दो

स्टोव तुम स‌सुराल में ही क्यों फटा करते हो?मायके में क्यों नहीं ?स्टोव तुम्हारी शिकार बहुएं ही क्यों होती हैं?बेटियां क्यों नहीं ?स्टोव तुम इतना भेदभाव क्यों करते हो ?स‌मझते क्यों नहीं ?स्टोव कहां स‌े पाई है तुमने ये फितरत ?बताते क्यों नहीं ?स्टोव तुम भीतर स‌े इतने कमजोर क्यों हो ?अक्सर फट जाते हो ?स्टोव तुम हमेशा विस्फोट की ही भाषा क्यों बोलते हो ?क्या तुम्हारे पास आंखें भी हैं ?स्टोव तुम कैसे देख लेते हो किचन में बहू ही है ?फटने का फैसला कर लेते हो ?स्टोव तुम कैसे पहचान लेते हो अपने शिकार को ?कौन बन जाता है तुम्हारी आंखें ?स्टोव अब तुम इस कदर खामोश क्यों हो ?बोलते क्यो नहीं ?स्टोव यह तो बताओ तुम कब फटना बंद करोगे ?कुछ तो जवाब दो ?स्टोव बरसों स‌े पूछ रहा हूं यह स‌वाल अब तो बोलो ?अब तो यह राज खोलो ?(बरसों पहले लिखीं थीं यह पंक्तियां। आज अचानक वह मुड़ा-तुड़ा कागज मिल गया। मेरे इन स‌वालों का...
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