
यह पोस्ट मुझे भेजी है मेरे दोस्त राजेश निरंजन ने। राजेश को मैं कई बरस से जानता हूं। वह सामाजिक मसलों को लेकर काफी संवेदनशील हैं। पेशे से पत्रकार हैं। लिहाजा व्यवस्थागत खामियों और तेजी से हो रहे समाजिक पतन को लेकर अक्सर उनकी कोफ्त सामने आ ही जाती है। एक पत्रकार होने के नाते ऐसा होना लाजिमी भी है। यहां ज्यादा महत्वपूर्ण वह दृश्य है जिसे राजेश निरंजन सबके सामने रखना चाहते हैं। आप भी पढ़ें और अपनी राय दें। दोपहर के करीब 12 बजे का वक्त था। मैं दिल्ली मयूर विहार फेज-1 की लालबत्ती से गुजर रहा था। तभी मेरी नजर फुटपाथ पर खड़ी एक अर्धनग्न सांवली सलोनी युवती पर पड़ी। वह कुर्ते से अपने तन को ढकने की कोशिश कर रही थी। चेहरे पर बेबसी का आलम था। आसपास से गुजर...