गुरुवार, 13 अगस्त 2009

हिंदी ब्लॉग जगत के चोरों से सावधान

इंटरनेट पर कुछ सर्च कर रहा था तभी अचानक कुछ ऐसा मिला जिसे देखकर अचरज में पड़ गया। निगाह वहीं पर अटक गई। पहली बार तो यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। मुझे याद है कि ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर में एक ब्लॉगर ने मुझ पर किसी दूसरे का आयडिया चुराने का आरोप लगाया था। इस आरोप ने मुझे बेहद खिन्न कर दिया था। मैंने ना सिर्फ आरोपों का जवाब दिया बल्कि उनके इल्जामों को झूठा भी साबित किया। मैं तब भी यही सोचता था कि इंटरनेट पर जहां कही भी किसी से कुछ छिपा नहीं है वहां भला कोई ऐसा कैसे कर सकता है। अगर करने की हिमाकत करता भी है तो आज नहीं तो कल वह सबके सामने आ ही जाएगा।

यह मेरी सोच थी। लेकिन अब मैं जिन साहब की बात करने जा रहा हूं वह शायद ऐसा नहीं सोचते। तो मैं बता रहा था कि कुछ सर्च करते वक्त मेरी नजर जिस पर अटकी वह एक ब्लॉग का लिंक था। लिंक के साथ जो तीन-चार पंक्तियां नजर आ रही थीं वो जानी पहचानी थीं। दरअसल वह मेरी ही लिखी पोस्ट थी जो दूसरे ब्लाग पर मौजूद थी। इस ब्लाग का नाम है tv 9 mumbai और ब्लाग के लेखक हैं गिरीश सिंह गायकवाड़। ब्लाग के नाम से लगता है कि ये साहब टीवी नाइन ग्रुप में काम करते हैं। मेरी पोस्ट का शीर्षक था 'वह न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर है'। यह पोस्ट मैंने अपने ब्लॉग आशियाना पर 2 दिसंबर, 2008 को लिखी थी। गिरीश गायकवाड़ साहब ने 9 फरवरी, 2009 को बिना किसी कर्टसी के इसे कॉपी करके अपने ब्लाग tv 9 mumbai और Paravarchya Goshti पर अपने नाम से पोस्ट कर लिया। हैरत की बात है कि उन्होंने ना तो छोटा सा शब्द साभार लिखने की जहमत उठाई औऱ ना ही मुझे इस बाबत सूचित किया। इसके उलट गिरीश साहब ने इस पोस्ट को इस तरह अपने ब्लाग पर पेश कर रखा जैसे वह उनकी मौलिक पेशकश हो। इसे देखकर मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं है।

बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं है। जब मैंने गिरीश गायकवाड़ का ब्लॉग tv 9 mumbai देखना शुरू किया तो वहां मुझे अपनी एक और रचना मिल गई। इस रचना का शीर्षक है फिल्म सिटी का कुत्ता। यह कविता मैंने अपने ब्लॉग पर 22 अगस्त, 2007 को पोस्ट की थी। इसे भी गिरीश साहब ने 5 मई, 2009 को इस तरह पोस्ट कर रखा है जैसे कि वह खुद उनकी रचना है। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि अगर आप किसी दूसरे की रचना अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत ही करना चहते हैं तो असली लेखक का नाम, उसके ब्लॉग का नाम और तीन अक्षर का शब्द साभार लिखने में आखिर बुराई क्या है? क्या गिरीश गायकवाड़ इतने नासमझ हैं कि वह ये नहीं जानते कि किसी की रचना चुराना कानूनन भी अपराध है। अचंभे की बात है कि वह इस अपराध को खुलेआम कर रहे हैं। मेरा खयाल है कि इनके ब्लॉग को अच्छी तरह खंगाला जाए तो दूसरे कई लेखकों को रचनाएं भी इनके नाम से नजर आ सकती हैं। अब मैं अपने ब्लॉगर बंधुओं से पूछना चाहूंगा कि मुझे क्या करना चाहिए और ऐसे लोगों पर लगाम लगाने के लिए ब्लॉग जगत को क्या करना चाहिए?

14 comments:

बेनामी ने कहा…

गूगल को शिकायत कीजिए

इसे भी देख लीजिए
http://www.gyandarpan.com/2009/08/blog-post.html

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

पाबला जी के सुझाव पर अमल करे.
जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाये...

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

पाबला जी के सुझाव पर अमल करे.
जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाये...

नटखट बच्चा ने कहा…

रंजन जी
ये तो खुले आम चोरी है लेकिन कई लोग दूसरो के आईडिया चुराकर खुलेआम पोस्ट लिख रहे है उनका क्या .वो भी वो लोग जो एक बड़े ग्रुप में ब्लोगिंग करते है जिन्होंने फोन ओर मेल करके अपना एक गुट बना लिया है .उन्हें पता है की वे अच्छा लिख नहीं सकते इसलिए दूसरो के आईडिया की बेशर्मी से कोपी कर रहे है .

Dipti ने कहा…

ये तो सच में बहुत ही शर्मनाक हरक़त है। उम्मीद है आपकी ये पोस्ट उन सज्जन ने ज़रूर पढ़ी होगी।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

विचारणीय् मुद्दा है!!

समयचक्र ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

ham to jane vo makhan chor hai nikale...............?

डा. अमर कुमार ने कहा…


अच्छा लिखेंगे, तो किसका मन नहीं मचलेगा ?
नटखट बच्चे के बात में दम है !

Gyan Darpan ने कहा…

ब्लॉग जगत में टेक्स्ट चोरी आम बात होती जा रही है जो बेहद ही दुःखदायी है |

टेक्स्ट चोरों का पता लगने पर उन्हें सार्वजनिक तरीके से बेनकाब करना चाहिए |

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सावधान तो सभी तरह से चोरों से समाज में रहना चाहिए। पर अगर चोर नहीं होंगे तो बेचोरों को कौन पूछेगा। चोरी अच्‍छी बात नहीं है पर गंदी बात नहीं होगी तो कैसे पता चलेगा कि अच्‍छी बात कौन सी है। पर जिसके जहां चोरी हो जाती है वो बेचारा हो जाता है। उसका सारा चारा चोरी में चला जाता है। इस सबसे निजात पाने के लिए पाबला जी के लिंक पर गौर किया जाये और गूगल बाबा को जोरदार शिकायत कर दी जाए।

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

ईमेल के बारेमें पढ़ा है की ये मान के चलिए कि आप पोस्टकार्ड लिख रहे हैं जिसे कोई भी पढ़ सकता है. सामान जब खुले में पड़ा है तो चोर भी आयंगे और डकैत भी :) अपनी पुलिस को तो सब जानते हैं .

gaiko ने कहा…

hello sir, apki rachna sachmuch tarife kabil hai ,darsal ye blog mai nahi mere kuch dost likha karte the, aur maine unase pucha nahi iss bare me kabhi,ye to unhone hi mujhe bataya ki aap mujhse khafa hai, maine har post pe apka naam likh diya hai, bhoolvash ye sab ho gaya..aagese har post pe sirf aap hi ka naam jayega...thanx...

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

अच्छा लगा स्पष्टीकरण आ गया...जाने क्यूँ अच्छा नहीं लगता ऐसी बातें सुनकर...

 
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