रविवार, 24 मई 2009

ताकतवर होते बेजान पत्ते


शुक्रवार, 15 मई 2009

मार्केटिंग का हिंदी फंडा

एक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। लड़के को अपने आप पर पूरा भरोसा था। उसने मैनेजर से कहा कि आपको अंग्रेजी से क्या मतलब ? अगर मैं अंग्रेजी वालों से ज्यादा बिक्री न करके दिखा दूं तो मुझे तनख्वाह मत दीजिएगा। मैनेजर को उस लड़के बात जम गई। उसे नौकरी पर रख लिया गया।

फिर क्या था, अगले दिन से ही दुकान की बिक्री पहले से ज्यादा बढ़ गई। एक ही सप्ताह के अंदर लड़के ने तीन गुना ज्यादा माल बेचकर दिखाया। स्टोर के मालिक को जब पता चला कि एक नए सेल्समेन की वजह से बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है तो वह खुद को रोक न सका। फौरन उस लड़के से मिलने के लिए स्टोर पर पहुंचा। लड़का उस वक्त एक ग्राहक को मछली पकड़ने का कांटा बेच रहा था। मालिक थोड़ी दूर पर खड़ा होकर देखने लगा।
लड़के ने कांटा बेच दिया। ग्राहक ने कीमत पूछी। लड़के ने कहा-800 रु.। यह कहकर लड़के ने ग्राहक के जूतों की ओर देखा और बोला-सर, इतने मंहगे जूते पहनकर मछली पकड़ने जाएंगे क्या? खराब हो जाएंगे। एक काम कीजिए, एक जोड़ी सस्ते जूते और ले लीजिए। ग्राहक ने जूते भी खरीद लिए। अब लड़का बोला-तालाब किनारे धूप में बैठना पड़ेगा। एक टोपी भी ले लीजिए। ग्राहक ने टोपी भी खरीद ली। अब लड़का बोला-मछली पकड़ने में पता नहीं कितना समय लगेगा। कुछ खाने पीने का सामान भी साथ ले जाएंगे तो बेहतर होगा। ग्राहक ने बिस्किट, नमकीन, पानी की बोतलें भी खरीद लीं।

अब लड़का बोला-मछली पकड़ लेंगे तो घर कैसे लाएंगे। एक बॉस्केट भी खरीद लीजिए। ग्राहक ने वह भी खरीद ली। कुल 2500रुपये का सामान लेकर ग्राहक चलता बना। मालिक यह नजारा देखकर बहुत खुश हुआ। उसने लड़के को बुलाया और कहा-तुम तो कमाल के आदमी हो यार! जो आदमी केवल मछली पकड़ने का कांटा खरीदने आया था उसे इतना सारा सामान बेच दिया? लड़का बोला-कांटा खरीदने? अरे स‌र, वह आदमी तो सेनिटरी पैक खरीदने आया था। मैंने उससे कहा अब चार दिन तू घर में बैठा-बैठा क्या करेगा। जा के मछली पकड़। (एक दोस्त ने ईमेल स‌े भेजा )

मंगलवार, 12 मई 2009

इंटनरेट से ऐसे करें कमाई

इंटरनेट पर आमतौर पर आजकल लोग कुछ घंटे तो बिताते ही हैं। ब्लागिंग से जुड़े लोग नियमित तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं। ब्लागिंग भले ही मुफ्त हो, लेकिन इंटरनेट सर्विस मुफ्त में नहीं मिलती। इसके लिए हर महीने पैसा अदा करना पड़ता है। ब्लागिंग करने वाले लोग इस पर अपना जो समय देते हैं उसकी तो कोई कीमत ही नहीं। हालांकि हिंदी में ज्यादातर लोग स्वांत: सुखाय लेखन कर रहे हैं। लेकिन जरा सोचिए कितना अच्छा हो कि अगर इंटरनेट के जरिये कुछ आमदनी भी होने लगे। ज्यादा नहीं तो नेट कनेक्शन पर होने वाला खर्च तो वसूल हो ही जाए। गूगल एडसेंस तो फिलहाल हिंदी में लिखने वालों पर मेहरबान नहीं है। लिहाजा मैं इसी उधेड़बुन हूं कि इंटरनेट पर और क्या जरिया हो सकता जिससे कुछ आमदनी भी हो। अगर आप नेट के जरिये कुछ कमाने की सोचते भी हैं तो ज्यादातर वेबसाइट पहले सदस्यता के रूप में अच्छी-खासी रकम वसूल लेती हैं। इस तरह उनकी कमाई तो हो जाती है। आपकी हो या न हो। बहरहाल कुछ दिन पहले मेरे एक दोस्त ने मुझे कुछ लिंक भेजे जिनमें एक-दो वेबसाइट का पता था। यह कुछ-कुछ नेटवर्किंग जैसा मामला था। खास बात यह थी कि इसमें मुझे एक पैसा भी खर्च नहीं करना था। ज्वाइन करने का तरीका वैसा ही था जैसे आप एक साधारण ईमेल एड्रेस बनाते हैं। या फिर कोई छोटा सा फार्म भरते हैं। मैंने यह सोचकर ज्वाइन कर लिया कि ट्राई करने में बुराई क्या है। आप भी ट्राई करना चाहते हैं तो एक लिंक दे रहा हूं। इस पर क्लिक करें और ज्वाइन कर लें। नेटवर्क में शामिल होने के बाद आप मुफ्त में जितने चाहें उतने एसएमएस भी भेज सकते हैं। समय-समय पर कई आफर्स भी मिलते रहते हैं जो आपकी कमाई बढ़ाने में मददगार होते हैं। नेटवर्क में शामिल होने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें....

बधाई हो। आप एक बड़े नेटवर्क से जुड़ चुके हैं। अब इसमें अपने दोस्तों को जोड़कर इसे और बढ़ाइय़े, आपकी कमाई खुद ब खुद बढ़ती जाएगी। कमाई बढ़ाने के लिए बेहतर होगा कि आप इस तरह के विभिन्न नेटवर्क ज्वाइन कर लें। यह एक और नेटवर्क का लिंक है। इस पर क्लिक करें। ज्वाइन करने का तरीका बेहद आसान है। कुछ रकम तो ज्वाइन करते ही आपके खाते में आ जाएगी। दूसरा नेटवर्क ज्वाइन करने के लिए यहां क्लिक करें.....

हां, ऐसे नेटवर्क में शामिल होने के लिए आपके पास एक अदद मोबाइल फोन नंबर जरूर होना चाहिए। नेटवर्क ज्वाइन करने के बाद आपके मोबाइल पर एसएमएस आने शुरू हो जाएंगे। हर एसएमएस के लिए कंपनी आपको कुछ एमाउंट देती है। वैसे तो वह एमाउंट शुरुआत में बहुत मामूली लगता है। लेकिन बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता। इसमें आप यह आप्शन भी सलेक्ट कर सकते हैं कि एसएमएस किस वक्त पर आएंगे। यानि कितने बजे से कितने बजे के बीच। ऐसा नहीं है कि एसएमएस फालतू होते हैं। बल्कि एसएमएस के जरिये विभिन्न कंपनियां अपना प्रचार करती हैं। आप टीवी पर इश्तेहार देखते हैं। अखबार में विज्ञापन पढ़ते हैं तो मोबाइल पर भी क्यों नहीं। कुछ लोग इसके आलोचक और विरोधी भी हो सकते हैं। इसलिए मैं यही कहूंगा कि यह अपनी च्वाइस का मामला है। जिसे ठीक लगे वह अपनाए। जिसे ठीक न लगे वह इससे दूर रहे। मोबाइल फोन के साथ-साथ इसमें ईमेल का भी आप्शन होता है। अगर आपने वह सलेक्ट कर लिया तो आपको ईमेल भी भेजे जाएंगे। इन ईमेल्स को पढ़ने पर भी आपको एक निश्चित राशि अदा की जाएगी। जैसे ही आप इस वेबसाइट पर रजिस्टर करेंगे आपका एक एकाउंट बन जाएगा, जिसमें पैसे इकट्ठे होते रहेंगे। इनकम बढ़ाने के भी कई तरीके हैं। आप अपने नेटवर्क को जितना बढ़ाएंगे आपकी कमाई भी उतनी ही बढ़ती जाएगी। अपने नेटवर्क में नए-नए लोगों को जोड़कर आप ऐसा कर सकते हैं। इसमें भी कोई पैसा खर्च नहीं करना है। सबसे अहम बात यह है कि इसमें किसी तरह का कोई फ्रॉड नहीं है। वेबसाइट की तरफ से आपसे कोई पैसा नहीं लिया जा रहा है। इसलिए अगर बैठे-बिठाए कुछ पैसा हाथ आ जाता है तो मेरा खयाल है इसमें कुछ गलत नहीं है। अब आप सोच रहे होंगे कि इससे वेबसाइट को क्या फायदा होता है। तो हम बता दें कि पहला तो यह कि उसके पास एक डेटाबेस तैयार हो जाता है। दूसरा यह कि जिन कंपनियों के प्रचार के रूप में वह एसएमएस भेजती है उनसे सर्विस चार्ज वसूल करती है। लेकिन आपसे कुछ नहीं वसूलती, बल्कि आपको एसएमएस और ईमेल रिसीव करने के बदले पैसे दिए जाते हैं। रकम चेक के जरिये आपके दिए गए पते पर भेज दी जाती है। तो फिर देर किस बात की। अगर ठीक लगता है तो फिर शामिल हो जाइये इस नेटवर्क में।

शनिवार, 9 मई 2009

...तो फिर कौन है असली पप्पू?

-प्रशांत

अगर आप भारत के नागरिक हैं और लोकसभा चुनावों में वोट डालने नहीं जाते हैं, तो आप पप्पू हैं, ये हम नहीं कह रहे चुनाव आयोग की ओर से जारी सारे विज्ञापनों में यही बताने की कोशिश की गई है... लेकिन आप अगर पोलिंग बूथ पर जाएं, आपके पास मतदाता पहचान पत्र भी हो और पिछले कई चुनावों से आप वोट डालते रहे हों, और तब भी आपको वोट देने का मौका नहीं मिले, तो आप क्या कहेंगे। पप्पू कौन?

इससे भी बड़ी बात तो ये कि आप उस जगह के स्थायी निवासी हों, आपके नाम पर एक अदद घर भी हो, आपके नाम से बिजली विभाग ने मीटर लगा रखा हो,आप करीब 9 साल से एक ही जगह पर रह रहे हों, आप कई बार वोट डाल चुके हैं और तब भी आपका नाम वोटर लिस्ट से गायब हो, तब भी क्या आप पप्पू कहलाएंगे।

एक और दृश्य-आप बिना वोट डाले लौटकर घर आ रहे हों और आपकी बिल्डिंग की कभी रखवाली करने वाला एक नेपाली चौकीदार रास्ते में मिल जाए और ये कहे, कि सर, वोटर लिस्ट में हमारा भी नाम है, तब आपको कैसा लगेगा?

जी हां, मैं किसी और की नहीं अपनी आपबीती बयान कर रहा हूँ। गुरुवार 7 मई को चौथे चरण में गाजियाबाद में वोट डाला गया। एक पढ़ा-लिखा शहरी होने के नाते मैं भी सुबह उठकर वोट डालने के इरादे से पोलिंग बूथ पर गया। मेरे हाथ में भारत के चुनाव आयोग की ओर से जारी मतदाता पहचान पत्र था। हां भाग संख्या पता नहीं था, लेकिन अपने याददाश्त के मुताबिक और अपनी बिल्डिंग के दूसरे लोगो से मिली जानकारी के आधार पर अपने क्षेत्र के पोलिंग बूथ पर पहुंच गया। वहां बूथ के बाहर बैठे पोलिंग एजेंट से पूछा कि भाई मेरा नाम किस लिस्ट में है और किस बूथ नंबर पर मुझे वोट डालना है, अपनी सूची में देखकर ये बता दो। वहां बेतहाशा भीड़ मौजूद थी, लोग अपने अपने बूथ के बारे में जानकारी हासिल करने की होड़ लगाए थे। धक्का मुक्की हो रही थी, पहले तो मैं, इस अफरा-तफरी में थोडा पीछे हो लिया और अपनी बारी का इंतजार करने लगा।

काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब मेरी बारी नहीं आई, तो मैं आगे बढ़ा और एक बार फिर पोलिंग एजेंट से आग्रह किया। फिर वही हाल... करीब घंटाभर गुजर जाने के बाद मेरा धैर्य जवाब देने लगा, तो मैं भी बाकी लोगों की तरह जबरदस्ती घुस गया। तब जाकर पोलिंग एजेंट को इस बात का ख्याल आया कि मैं काफी देर से खडा हूं। उसने मेरा कार्ड देखा और ये कह चलता किया कि आपका नाम इस बूथ पर नहीं, दूसरे बूथ पर है।

वोट देने की लालसा लिए मैं दूसरे बूथ पर जा पहुंचा। वहां भी वैसा ही हाल नजर आया। फिर मैं पोलिंग एजेंट से आग्रह कर खड़ा हो गया। काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब बात नहीं बनी, तो उससे कड़क आवाज में कहा कि भाई आखिर तुमने ये लाइन क्यों लगा रखी है, जब अपने पहचान वालों का ही नाम तुम्हें बताना है, तो यहां एक बोर्ड टांग दो कि यहां सिर्फ पहचानवालों की ही पर्ची दी जाती है। कृपया दूसरे लोग यहां लाइन में ना लगें। मेरे इन सवालों ने उसे थोड़ा सचेत किया और वो मेरे जैसे कई लोगों से वोटर कार्ड लेकर सूची में नाम तलाश करने लगा।

काफी देर बाद मेरी बारी आई। तो उसने एक-एक कर सभी सूचियों में खोज डाला, लेकिन मेरा नाम कहीं नहीं था। मैं हैरान रह गया कि पिछले कई चुनावों में वोट डाल चुका हूं और मेरे पास मतदाता पहचान पत्र भी है, लेकिन इस बार क्या हो गया कि मेरा नाम नहीं है।

लेकिन मैं भी हार मानने को तैयार नहीं था, हर कीमत पर अपना नाम खोज वोट डालना चाहता था। मैं पहुंच गया पोलिंग बूथ के अंदर कि शायद वहां पता चल जाए। बूथ के अंदर कुछ कर्मचारी बैठे थे, जिनके पास पूरी सूची मौजूद थी। लोग अपने-अपने नाम खोजने का आग्रह कर रहे थे, तो कुछ नाम नहीं मिल पाने को लेकर बहस भी कर रहे थे। सबकी जुबां पर एक ही सवाल था, कि पिछले कई चुनावों में नाम मौजूद था, वोट भी डाला है और वोटर आईकार्ड भी है, तब मेरा नाम क्यों नहीं है। बाकी लोगों की तरह मैंने भी उस कर्मचारी से नाम खोजने का आग्रह किया, तो उनका सवाल था कि भाग संख्या और वोटर संख्या बताईए। उन्हें शायद इस बात का ध्यान नहीं रहा कि अगर भाग संख्या और वोटर संख्या पता होता तो, मुझे उनके पास जाने की जरुरत ही नहीं पड़ती। मैं सीधे बूथ पर जाता और वोट डाल अपने घर लौट जाता।

जब वहां भी कुछ पता नहीं चल पाया, तब बूथ के अंदर गया, वहां एक बूथ खाली था, जहां कोई वोटर मौजूद नहीं था। मैंने वहां मौजूद पुलिस बल से गुजारिश की, तो उन्होंने अंदर जाने की इजाजत दे दी। मैं अंदर जाकर पोलिंग कर्मचारियों से बात की कि मेरे पास वोटर आईकार्ड है, लेकिन सूची में मेरा नाम नहीं मिल पा रहा, क्या कोई तरीका है कि आईकार्ड को देखकर इससे अंदाजा लगाया जा सके कि आखिर किस सूची में मेरा नाम होगा। तो उस सज्जन ने कहा कि नहीं वोटर कार्ड से कुछ पता नहीं चल पाएगा। आपको भाग संख्या पता करना होगा।

थक हार कर करीब चार घंटे की मशक्कत के बाद मैं बिना वोट डाले घर लौटने लगा। लेकिन एक पत्रकार के मन को ये नहीं भाया। सोचा कुछ दूसरे बूथों का चक्कर लगा लिया जाए। क्या पता यहां की तरह दूसरे बूथों पर भी कुछ ऐसा ही हाल हो। आसपास के करीब पांच पोलिंग बूथों पर गया। हर जगह ऐसे दर्जनों लोग मिले, जिनके पास वोटर आई कार्ड तो मौजूद था और पिछले चुनावों में वोट भी डाल चुके थे, लेकिन इस बार नाम लिस्ट से गायब था।

ऐसे में ये सवाल उठता है कि चुनाव आयोग ने वोटर आईकार्ड अनिवार्य करना चाहता है लेकिन वोटर आईकार्ड मौजूद होने के बाद भी लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब क्यों हैं जबकि उन लोगों का नाम मौजूद हैं, जो ना तो भारत के नागरिक हैं और ना ही उनका कोई स्थायी पता है। खैर, सबसे जरुरी सवाल कि असली पप्पू कौन? वोट देने के इरादे से घर से निकला और करीब चार घंटे तक धक्के खाकर लौटने वाला वोटर या फिर ऐसी व्यवस्था देनेवाला सिस्टम? (साभार-देशकाल डॉट कॉम)

 
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