मंगलवार, 10 जून 2008

तुम्हारा नाम क्या है?

अभी तक बस नहीं आई। लगता है आज फिर बॉस की डांट खानी पड़ेगी। ये बस भी तो रोज लेट हो जाती है। मैंने तुमसे पहले ही कहा था जल्दी करो लेकिन तुम हो कि तुम्हें सजने-संवरने से ही फुर्सत नहीं मिलती। पता नहीं कौन बैठा है वहां तुम्हारी खूबसूरती पर मर-मिटने के लिए। वो बुड्ढा खूसट बॉस...। नेहा बोले जा रही थी और प्रिया चुपचाप सुनती जा रही थी। उसे मालूम था कि यह गुस्सा लेट होने का नहीं है। यह गुस्सा बॉस की डांट खाने का भी नहीं है। वह बचपन से जानती है नेहा को। तब से जब दोनों स्कूल में साथ पढ़ती थीं। अब दोनो साथ-साथ नौकरी भी कर रही थीं।
शुक्र है आज सीट तो मिल गई !
कहते हुए नेहा बस के दायीं वाली सीट पर बैठ गई और साथ ही बैठ गई प्रिया। नेहा की सबसे अजीज दोस्त।
यह रोज का किस्सा था। कभी बस लेट हो जाती तो कभी वो दोनों लेट हो जातीं।
दरअसल असली किस्सा तो उनके बस में सवार होने के बाद शुरू होता था। जब अगले ही स्टाप पर वह लड़का उसी बस में सवार होता था। करीब दो हफ्ते से उसने नेहा की नाक में दम कर रखा था। जब तक वह बस में चढ़ता बस पूरी तरह भर चुकी होती थी।
जिस सीट पर नेहा बैठी होती थी वो लड़का भी वहीं आकर खड़ा हो जाता। कई बार तो भीड़ के कारण नेहा और प्रिया को भी सीट नहीं मिल पाती तब तो उसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता था। वह जानबूझकर वहीं खड़ा होता जहां प्रिया खड़ी होती।
तभी नेहा को लगा शायद कोई सवाल उसके कान से टकराया। अभी वह इस हकीकत को समझने की कोशिश कर ही रही थी कि वो सवाल एक बार फिर उसके सामने था।
क्या नाम है आपका? उस लड़के ने नेहा से सवाल किया था। वो भी इस अंदाज में जैसे वह नेहा को बहुत पहले से जानता है।
नेहा आवाक रह गई। जान न पहचान बड़ा आया मेरा नाम जानने चला। वह मन ही मन बुदबुदाई।
मैंने पूछा क्या नाम है तुम्हारा? वह तो जैसे नेहा के पीछे ही पड़ गया।
कोई नाम नहीं है मेरा, तुमसे मतलब? नेहा ने चिढ़कर जवाब दिया।
देखो मुझे अपना नाम बताओ, मैं नाम पूछ रहा हूं न। उसने इस तरह सवाल दागा जैसे नेहा उसका जवाब देने के लिये मजबूर हो।
कहा ना, कोई नाम नहीं है मेरा।
तुम्हारे मां-बाप ने कोई तो नाम रखा होगा तुम्हारा?
नहीं कोई नाम नहीं रखा।
बस में किसी ने उसे कुछ नहीं कहा। किसी ने उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की। सारे यात्री बुत की तरह बैठे रहे। कई लोगों को तो उसकी हरकतों आनंद का अनुभव हो रहा था। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट तैर रही थी।
नेहा ने तो जैसे होठ सी लिये। उसकी आंखें अब भी नेहा को घूर रही थीं। लेकिन इसके आगे वह कुछ बोल पाता कि नेहा का स्टाप आ गया।
वह और प्रिया बस से उतर लीं। बस आगे बढ़ गई।
उफ्फ जान छूटी। किस पागल से पाला पड़ गया है। नेहा चिल्लाई।
प्रिया ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जाहिर की। आखिर वो कहती भी क्या। वह भी इसी उधेड़बुन में लगी थी कि उससे कैसे छुटकारा पाया जाए। अगर रूट बदलना है तो नेहा को यह नौकरी भी बदलनी पड़ेगी। इतनी आसानी से तो मिलती नहीं नौकरी। यहां तो स्टाफ भी अच्छा है। सैलरी भी अच्छी है।
कुछ और सोचना पड़ेगा। प्रिया ने दिमाग पर जोर डाला। लेकिन कुछ न सोच पाने की झुंझलाहट उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।
नेहा भी खामोश थी। बोलती भी क्या?
दोनों आफिस पहुंच चुकी थीं।
शुक्र है अभी बॉस नहीं आया। आज तो बच गये। नेहा ने प्रिया की ओर देखते हुए कहा और जल्द से जल्द अपने कंप्यूटर को लॉग-इन करने में जुट गई।
नेहा और प्रिया दो साल से एक गर्ल्स हास्टल में साथ-साथ रह रही थीं। पहले प्रिया दूसरी जगह नौकरी करती थी। लेकिन आठ महीने पहले उसे भी नेहा के आफिस में नौकरी मिल गई। उस पब्लिकेशन हाउस में प्रिया के आने से नेहा को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। अब दोनों ही एक साथ आफिस के लिये निकलतीं। एक साथ लौटतीं। दोनों ने अपना वीकली आफ भी एक ही दिन करवा लिया था। शनिवार। सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। पता नहीं वो लड़का कहां से पीछे पड़ गया।
कहीं लौटते वक्त भी न मिल जाए। आफिस से निकलते हुए नेहा ने अपनी आशंका प्रिया के सामने रखी।
अरे नहीं यार, क्यों इतना टेंशन लेती है। प्रिया ने उसकी आशंका को निर्मूल बताते हुए कहा।
और मिल भी जाएगा तो क्या हुआ। लगता है बहुत पसंद करता है तुझे। तेरे पर दिल आ गया है बेचारे का। वैसे दिखने में तो बड़ा स्मार्ट है। प्रिया ने चुहलबाजी की।
चुप हो जा। बकवास मत कर। चुपचाप चल। नहीं तो घंटा भर खड़े रहना पड़ेगा बस स्टाप पर।
हां-हां, चल तो रही हूं। उड़ने तो नहीं लग जाउंगी। प्रिया ने पलटकर जवाब दिया।
नेहा को प्रिया की चुहलबाजी बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी। रह-रह कर नेहा के सामने उसी लड़के का चेहरा आ जाता था। कहीं फिर मिल गया तो सबके सामने तमाशा बना देगा। पता नहीं क्यों मेरे पीछे पड़ा हुआ है। स्साला..प्रिया को गुस्सा आ रहा था।
अरे, भई! जब मिलेगा तब देखा जाएगा। अभी से क्यों दिमाग खराब कर रही है। प्रिया ने उसे समझाने की कोशिश की। आफिस से बस स्टाप चंद कदम की दूरी पर ही था।
अब नेहा और प्रिया बस स्टाप पर थीं। चुपचाप। खामोश।
शुक्र है आज बस जल्दी आ गई। प्रिया ने खामोशी तोड़ी और बस की तरफ बढ़ने लगी।
बस रुकी। प्रिया और नेहा उस पर चढ़ गईं।
बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी। दोनों को सीट भी मिल गई।
नेहा चुपचाप थी। प्रिया भी चुपचाप उसके चेहरे के हावभाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
प्रिया बहुत देर तक चुप नहीं रह सकती थी। चुप्पी तो जैसे उसे खाने को दौड़ती थी।
क्या हुआ यार, ऐसे चुप रहेगी तो मैं बस से कूद जाउंगी। कुछ तो बोल। यह कहते हुए प्रिया खिलखिला कर हंस दी।
नेहा के होठों पर भी मुस्कान तैर गई।
यही तो खूबी थी प्रिया की। हमेशा मुस्कराना और सामने वाले को भी हंसने के लिये मजबूर कर देना।
देखो हमारा स्टॉप आने वाला है और अब तक वो नहीं आया। अब तो खुश? प्रिया फिर चुहलबाजी के मूड में थीं।
हां खुश। नेहा ने भी हंसकर जवाब दिया।
अब वो आएगा भी नहीं। आज तो बच गये। कल की कल देखी जाएगी। नेहा का मूड अच्छा होते देखकर प्रिया चहक उठी।
बस स्टाप आ गया। दोनों नीचे उतर लीं और पैदल ही अपने हास्टल की तरफ चल पड़ीं।
अगला दिन और फिर वही डर। कहीं वह लड़का पीछे न पड़ जाए।
लगता है इस बस का इंतजार करने के सिवा उसके पास कोई काम-धाम ही नहीं है। नेहा ने प्रिया की राय जाननी चाही।
हां, बड़े बाप की बिगड़ैल औलाद लगता है। हां कर दे तेरी तो लाइफ बन जाएगी। प्रिया ने फिर चुहलबाजी की।
तू चुप रहेगी या दूं एक घुमा के। नेहा ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा। क्योंकि यह बात कहते हुए उसके होठों पर भी हंसी तैर रही थी।
अभी तक बस नहीं आई...? लगता है आज जरूर लेट होंगे। कुछ देर चुप रहने के बाद नेहा ने आशंका जतायी।
इससे पहले कि प्रिया कुछ बोल पाती बस उनकी आंखों के सामने थी।
दोनों बिना एक पल गंवाए बस में सवार हो गईं।
लेकिन बस में दाखिल होते ही नेहा को जैसे सांप सूंघ गया। एक बार तो उसे लगा कि चलती बस से कूद जाए। वो चुपचाप आकर सीट पर बैठ गई। और प्रिया भी।
दरअसल वह लड़का आज पहले से ही बस में मौजूद था। नेहा को देखते ही वह उसके पास आकर खड़ा हो गया। नेहा लगातार खिड़की से बाहर की ओर देखे जा रही थी। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। एक बार तो उसे लगा कि वह आज उसे फटकार ही दे। लेकिन कुछ सोचकर वह चुप रह गई। नेहा चुप थी। प्रिया भी चुप थी। वह लड़का भी चुप था।
तभी खामोशी टूटी।
आज तुमने वो पिंक वाला सूट क्यों नहीं पहना? वह तुम पर बहुत फबता है। उस लड़के ने सवाल किया जिसमें उसकी राय भी शामिल थी।
नेहा मन ही मन बुदबुदाई। ये तो हद हो गई। वह आज अपना गुस्सा रोक नहीं पाई। सीट छोड़कर खड़ी हो गई।
तुम होते कौन हो, यह पूछने वाले कि मैंने ये क्यों नहीं पहना वो क्यों नहीं पहना। मेरी जो मर्जी मैं पहनूं। तुम यहां से जाते हो या....? प्रिया ने उसे बीच में ही रोक दिया। अरे यार, दिमाग खराब कर रखा है इतने दिनों से। कंटक्टर गाड़ी रुकवाओ। मैंने कहा न, गाड़ी रुकवाओ अभी। हमें यहीं उतरना है। नेहा की आवाज में गुस्सा था और रोष भी।
बस में शोर-शराबा देख ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। नेहा तुरंत नीचे उतरी। प्रिया भी उसके पीछे दौड़ी...और वो लड़का भी।
मेरी बात तो सुनो, मैं तुम्हें अपने मम्मी-पापा से मिलवाना चाहता हूं।
तुम एक बार उनसे मिल तो लो। प्लीज।
प्रिया ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।
बस के यात्री अभी भी उनकी ओर ही ताक रहे थे। कोई हंस रहा था कोई चुपचाप देख रहा था तो कई लोग कमेंट करने से भी बाज नहीं आ रहे थे।
'भाभी को मना लेना' भाई, तभी किसी की आवाज आई।
बस चल पड़ी थी। नेहा का वश करता तो उस कमेंट करने वाले को नीचे खींचकर चप्पल से मारती। लेकिन गाड़ी जा चुकी थी।
बड़े बेशर्म हो तुम। मैंने कह दिया न मुझे तुमसे कोई लेना देना नहीं है। फिर क्यों मेरे पीछे पड़े हो। प्लीज, मुझे बख्श दो और मुझे अपने रास्ते जाने दो। तुम अपने रास्ते जाओ। नेहा ने खीझते हुए कहा।
मैं चला जाउंगा। लेकिन मेरे सवाल का जवाब तो दो। लड़के ने बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से सवाल किया।
मुझे तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नहीं देना।
चलो प्रिया। जल्दी करो। आज तो इस पागल ने सबके सामने हमारा तमाशा बना दिया। पता नहीं किस जनम की दुश्मनी निकाल रहा है। हाथ धोकर पीछे पड़ गया है।
नेहा इतने तेज कदमों से चलने की कोशिश कर रही थी कि उसके कदम भी उसका साथ नहीं दे पा रहे थे। प्रिया उसे रुकने की आवाज देकर उसके पीछे-पीछे भाग रही थी।
आसपास के लोगों की नजरें नेहा और प्रिया पर ही थीं। लोगों को भी मुफ्त में अच्छा-खासा तमाशा जो देखने को मिल गया था।
प्रिया ने एक बार पीछे मुड़कर देखा। वह लड़का अब भी वहीं पर खड़े होकर उन्हें घूरे जा रहा था।
अब शायद प्रिया को उससे कुछ सहानुभूति होने लगी थी।
मन ही मन प्रिया ने पिछली सारी बातें दोबारा याद करने की कोशिश कीं।...नाम ही तो पूछ रहा था बेचारा। कोई उल्टी-सीधी बात तो नहीं की। कहीं होटल या क्लब में ले जाने की बात तो कर नहीं रहा था। मम्मी-पापा से ही तो मिलवाना चाहता है। तो क्या शादी...? यानी उसकी इरादा नेक है। लेकिन वो नहीं जानता कि...
अचानक प्रिया ने अपनी सोच पर विराम लाग दिया। इसके बावजूद वह लगातार सब कुछ समझने की पूरी कोशिश कर रही थी।
वहीं नेहा के कदम अब भी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
प्रिया ने उसे आवाज दी, नेहा ने पीछे मुड़कर देखा और उसके कदम रुक गये।
प्रिया भाग कर गई और उससे लिपट गई। अब चलो भी। नेहा ने फिर दोहराया। उसका मूड अब भी ठीक नहीं हुआ था।
क्या बेशर्मी है। रोज का तमाशा हो गया है। पीछा ही नहीं छोड़ रहा है। लगता है मुझे यह नौकरी ही छोड़नी पड़ेगी। नेहा ने निराशा भरे स्वर में कहा।
नौकरी क्यों छोड़ेगी। तेरे लिये दूसरी नौकरी रक्खी है क्या? फिर घूमना इस कंपनी से उस कंपनी, दूसरी नौकरी की तलाश में। घर में तो बैठेगी नहीं? इतना तो मैं भी जानती हूं।
तेज कदमों की आवाज के सिवा अब नेहा और प्रिया के बीच कुछ नहीं था।
दोनों खामोश थीं।
हास्टल नजदीक ही था कि नेहा ने खामोशी तोड़ी। छुट्टी ले लेती हूं एक हफ्ते की।
उससे क्या होगा?
अरे, दो-तीन दिन बाद वो भी अपना रास्ता बदल देगा।
हां, ऐसा हो सकता है। लेट्स ट्राई! प्रिया को नेहा का यह आइडिया जंच गया।
लेकिन मैं अकेले तो आफिस में बोर हो जाउंगी और रास्ते में भी।
वो मेरे पीछे पड़ जाएगा। तुम्हारे बारे में पूछने लगेगा। तब मैं अकेली क्या करूंगी?
हमममम...ऐसा कर तू भी छुट्टी कर ले। नेहा यूं बोली जैसे उसके दिमाग में कोई शानदार आइडिया आ गया हो।
ठीक है ! मैं कल ही बॉस से बात करती हूं। दोनों छुट्टी कर लेते हैं। वैसे मुझे नहीं लगता छुट्टी मिलने में कोई प्राब्लम आएगी।
हां, वो तो है। देख लो बात करके। प्रिया ने उदासीन लहजे में जवाब दिया।
हर दिन की तरह अगले दिन भी नेहा और प्रिया सुबह आफिस के लिये तैयार होने में जुटी थीं। हमेशा की तरह तैयार होने में देरी के लिये प्रिया ने नेहा की डांट खायी। हमेशा की तरह प्रिया ने उसकी बात एक कान से सुनी और दूसरे कान से निकाल दी।
अरे, इस लड़की ने तो मेरी जिंदगी का कबाड़ा कर दिया है। जब देखो आर्डर झाड़ती रहती है। एक पल को चैन नहीं लेने देती। आफिस में तो हैं ही सब बॉस बनने के लिये और कमरे पर आकर यह मेरी बॉस बन जाती है। जल्दी करो-जल्दी करो!! पता नहीं कौन सा तीर मारना है जल्दी पहुंचकर।
ज्यादा से ज्यादा वो रोहन यही ताना मारेगा न कि आज फिर लेट हो। बॉस के पास थोड़े चला जाएगा। अगर उसने ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश की न तो मैं उसे एक ही दिन में सीधा कर दूंगी। तू चिंता मत कर और मुझे अपने तरीके से तैयार होने दे। प्रिया बोलती जा रही थी और नेहा सुने जा रही थी।
नेहा ने प्रिया को घूर कर देखा और प्रिया खिलखिलाकर हंस दी। नेहा के होठों पर भी मुस्कुराहट तैर गई।
अच्छा अब कमरा बंद करो और चलो। बकवास मत करो।
ठीक है बबा ! चल तो रही हूं। क्यों किसी और का गुस्सा मेरे ऊपर निकालने में जुटी हो। यह कहते हुये प्रिया की आखों में शरारत साफ नजर आ रही थी।
प्रिया का इशारा नेहा अच्छी तरह समझ गई थी। शायद इसीलिये उसने खामोशी ओढ़ ली।
बस आई, दोनों उस पर चढ़ गईं। सीट भी मिल गई। लेकिन नेहा ने एक शब्द भी नहीं बोला। प्रिया भी शायद उसे टोकने की हिम्मत नहीं कर पाई।
नेहा की यह चुप्पी ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी।
अगले बस स्टाप पर वो लड़का एक बार फिर उसकी नजरों के सामने था। उस पर नजर पड़ते ही नेहा का तो जैसे खून खौल गया।
उस लड़के को देखते ही नेहा का ब्लडप्रेशर बढ़ जाता था।
हालांकि अभी तक उसने नेहा से कभी कोई ऐसी बात नहीं कही थी जिससे उस पर बदमाश या लफंगा लड़का होने का लेबल लगाया जा सके।
'आज आप लेट हो गईं?' उस लड़के ने नेहा की सीट पर आकर पूछा।
नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया।
प्रिया की नजरें दोनों को चुपके से घूर रहीं थी। शायद उसे इंतजार था नेहा के कुछ बोलने का।
आपने कोई जवाब नहीं दिया....
अच्छा आज तो अपना नाम बता दीजिये...
अच्छा मैं अपना नाम तो बता ही देता हूं....
मेरा नाम है मनीष और आपका...?
'मैंने तुमसे कहा था न कोई नाम नहीं है मेरा।' नेहा ने चुप्पी तोड़ी।
नाराज क्यों होती हो। नाम ही तो पूछा है। कोई गाली तो नहीं दे दी।
क्यों मेरा नाम जानना चाहते हो?
बताओ क्यों जानना चाहते हो मेरा नाम?
जवाब दो...
अब उस लड़के ने खामोशी ओढ़ ली।
अब चुप क्यों हो? बताओ क्यों पूछना चाहते हो मेरा नाम? नेहा ने खीझकर अपना सवाल रिपीट किया।
अभी नहीं, पहले वादा करो तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगी।
दिमाग खराब हैं क्या?
क्यों चलूंगी तुम्हारे घर....तुम कोई मेरे रिश्तेदार लगते हो?
नहीं, मैंने कहा था न, मैं तुम्हें अपने मम्मी-पापा से मिलाना चाहता हूं।
किसलिए? मुझे न तुममे कोई इंट्रेस्ट है औऱ न ही तुम्हारे मम्मी-पापा में। बस मेरा पीछ छोड़ दो।
इतना कहकर नेहा ने फिर खामोशी ओढ़ ली।
बस में बैठे सारे लोगों की निगाहें नेहा की तरफ ही टिकी थीं।
रोज आने-जाने वाले यात्री तो नेहा और उस लड़के से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके थे।
इसके बावजूद आज तक किसी ने उस लड़के को एक शब्द नहीं बोला।
शायद बस यात्रियों के लिये भी वो दोनों टाइम पास का साधन बन चुके थे।
नेहा का मूड बहुत खराब हो चुका था। वह उस लड़के स‌े बुरी तरह तंग आ चुकी थी। स‌मझ नहीं पा रही थी क्या करे? ऊपर स‌े यह प्रिया, जब देखो तब इसे मजाक स‌ूझता रहता है। पता नहीं मेरी दोस्त है या दुश्मन?
बस स‌े उतर कर प्रिया और नेहा ऑफिस की तरफ चल दीं। आज तो दफ्तर के बाहर ही महेश मिल गया।
हाय! महेश ने हाथ हिलाया।
नेहा और प्रिया ने इशारे में ही उसके हाय का जवाब दिया और दफ्तर में दाखिल हो गईं।
क्या हुआ, आज तुम दोनों फिर लेट हो गईं। बॉस ने घूरते हुए स‌वाल किया।
क्या बताऊं स‌र, वो बस में.....
बस में क्या...?
स‌ाफ-साफ बताओ। बास ने जरा कड़क आवाज में पूछा।
बेवजह की डांट खाना नेहा को कतई पसंद नहीं था। उसी पल उसने तय कर लिया कि आज बॉस को स‌ब बता देगी।
स‌र वो बस में रोज हमें....प्रिया ने कुहनी मारकर उसे रोकने की कोशिश की....
नेहा ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और बोलना जारी रखा...
स‌र एक लड़का हमें काफी दिनों स‌े तंग कर रहा है। रोज बस में मिल जाता है। पीछे ही पड़ गया है। कहता है शादी करना चाहता हूं तुमसे....
हां, तो प्राब्लम क्या है?
क्या स‌र....?
अरे मेरा मतलब है कौन है वह लड़का, क्या नाम है उसका? नाम तो स‌र मुझे नहीं मालूम।
मनीष नाम है स‌र उसका, प्रिया ने बीच में ही जवाब दिया।
अच्छा, प्रिया तुम्हें तो उसका नाम भी मालूम है। औऱ क्या मालूम है उसके बारे में...बताओ मुझे। प्रिया बॉस स‌े मुखातिब थी और नेहा लगातार उसे घूरे जा रही थी।
आखिर प्रिया चुप हो गई।
नेहा ने बोलना शुरू किया। शुरू स‌े लेकर आखिर तक स‌ब बता दिया।
इसी बीच महेश भी पीछे आ खड़ा हुआ था..उसने भी स‌ारी बातें स‌ुन लीं।
थोड़ी ही देर में पूरे ऑफिस में यह बात फैल गई।
हर कोई नेहा और प्रिया स‌े मनीष के बारे में पूछने लगा।
कहो तो स्साले के हाथ-पैर तुड़वा दूं? आकाश बोला।
उसके लिए तो मैं अकेला काफी हूं। नरेश ने भी हीरो बनने की कोशिश की।
चुप रहो। तुम लोगों ने ये स‌ब क्या लगा रखा है। जाओ अपना-अपना काम करो। आशीष स‌र ने स‌बको डांटने के लहजे में कहा। स‌ब चुपचाप वहां स‌े खिस‌क लिए।
तुम दोनों फिक्र मत करो। कल अगर वो बस में नजर भी आए तो बस मुझे एक फोन कर देना। मैं स‌ब स‌ंभाल लूंगा। आशीष स‌र ने कहा।
अच्छा अब जाओ, कुछ काम कर लो। उसके बारे में स‌ोचकर परेशान होने की जरूरत नहीं है।
नेहा चुपचाप अपनी चेयर पर जाकर बैठ गई। प्रिया के लिए तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। उसके होठों पर अब भी मुस्कान तैर रही थी।
इतने लोगों की बातें और हाव-भाव देखकर नेहा स‌मझ चुकी थी उसका तमाशा बन चुका है। किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं है मेरी प्राब्लम है, मैं खुद निबट लूंगी...नेहा मन ही मन बुदबुदाई।
आज नेहा को आफिस में पल-पल काटना मुश्किल हो रहा था। उसे बस यही लग रहा था कि जाकर कमरे में स‌ो जाए और बस स‌ोती ही रहे।
किसी तरह छह बजे। ऑफिस स‌े निकलने का वक्त हो गया। चलो अभी तुम फ्री नहीं हुई। चलो अब निकलते हैं। बाकी काम कल देख लेना। मुझे बहुत नींद आ रही है। चलती हूं बस पांच मिनट। प्रिया ने नेहा को रुकने के लिए कहा और कंप्यूटर शट डाउन करने लगी। कुछ कागजात टेबल स‌े उठाकर ड्रार में रखे और लॉक करने के बाद वो अपना टुपट्टा स‌ंभालती हुई खड़ी हो गई। चलो।
एक मिनट रुको, जरा मैं आशीष स‌र को बता दूं कि कल मैं छुट्टी पर हूं। अचानक छुट्टी क्यों? प्रिया ने स‌वाल किया। लेकिन उसके स‌वाल का जवाब दिए बिना ही नेहा आशीष स‌र के केबिन में गई और छुट्टी की बात कर बाहर आ गई। उसके चेहरा बता रहा था कि आशीष स‌र ने उसे छुट्टी दे दी है।
चलो अब, नेहा ने कहा। चल तो रही हूं, लेकिन बता तो कल छुट्टी लेकर क्या कर रही है? कुछ नहीं, बस है न कुछ जरूरी काम। चल तो तू भी स‌ब स‌मझ जाएगी।
शायद नेहा के दिमाग में कुछ चल रहा था, जिसस‌े उस‌की बेस्ट फ्रैंड प्रिया भी नहीं पढ़ पा रही थी। दोनों बस स्टाप की तरफ बढ़ रहीं थीं। स‌ुबह की तरह ही खामोशी स‌े..कुछ स‌ुनाई दे रहा था तो स‌िर्फ उनके पैरों की आवाज और ट्रैफिक का शोर। लेकिन नेहा के कानों तक शायद ये आवाजें नहीं जा रही थीं। वो चुपचाप थी, लेकिन दिमाग लगातार स‌ोच रहा था।
क्या बात है कुछ तो बता..?
नेहा ने प्रिया के स‌वाल को कोई तवज्जो नहीं दिया। वो चुपचाप चली जा रही थी। वो जल्द स‌े जल्द बस स्टॉप पहुंचना चाहती थी। बस स्टॉप आ गया। नेहा और प्रिया चुपचाप बस का इंतजार करने लगीं।
आधा घंटा इंतजार के बाद बस नहीं आई। बहुत भीड़ थी बस में। प्रिया ने कहा थोड़ा रुक लेते हैं अलगी बस में चलेंगे। लेकिन नेहा उसकी बात को अनसुना कर बस में चढ़ने लगी। वास्तव में बस में काफी भीड़ थी। नेहा और प्रिया बस के गेट पर ही अटक गईं। अचानक किसी ने हाथ बढ़ाया और नेहा को बस में खींच लिया। उसके बाद प्रिया के स‌ाथ भी ऎस‌ा ही हुआ।
बस में मौजूद वह व्यक्ति मनीष ही था। वह चुपचाप खड़ा थी। बस में इस कदर भीड़ थी कि उसके लिए कुछ बोलना मुनासिब भी नहीं था। अगले स्टॉप में ही बस की भी़ काफी कम हो गई। नेहा और प्रिया बाईं तरफ वाली स‌ीट मिल गई। मनीष अब भी खड़ा था। नेहा ने उसे इशारे स‌े बुलाया और अपनी स‌ीट पर बैठने के इशारा किया।
यह देखकर प्रिया की आंखें फटी की फटी रह गईं। मनीष को भी नेहा के इस व्यवहार पर आश्चर्य हो रहा था...वह चुपचाप स‌ीट पर आकर नेहा के बगल में बैठ गया। खिड़की की तरफ प्रिया थी और बीच में नेहा।
लोगों की आंखें अब नेहा को घूर रही थीं। किसी को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था।
'भाभी मान गईं.....'
'लड़की पट गई भाई.....'
'मुबारक हो, भाईजान! मेहनत रंग लाई'
पीछे स‌े कुछ लोगों ने कमेंट पास किए। ये वही लोग थे जिनका रोज इस बस स‌े आना-जाना होता था। ये लोग नेहा और मनीष की कहानी स‌े अच्छी तरह वाकिफ थे।
मनीष! तुम मेरा नाम जानना चाहते हो न? मेरा नाम नेहा है। मैं इलाहाबाद की रहने वाली हूं। यह लो मेरा मोबाइल नंबर। कल स‌ुबह नौ बजे मुझे फोन करना। मनीष बुत की तरह उसकी बात स‌ुन रहा था। उसने हां में स‌िर हिलाया और अपने मोबाइल में नेहा का नंबर स्टोर कर लिया। खुशी उस‌के चेहरे स‌े झलक रही थी।
शायद आज बोलने की बारी नेहा की थी। यह देखकर प्रिया की परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। अचानक इसे यह क्या हो गया? जिससे स‌ीधे मुंह बात नहीं करती थी, उसे खुद अपना नाम बता रही है। मोबाइल नंबर भी दे दिया। क्या कर रही है यह लड़की? कल की छुट्टी भी ले रखी है.....। बताती भी तो नहीं। पता नहीं क्या करने जा रही है?
मनीष हतप्रभ था। हमेशा नेहा पर हावी होने की कोशिश करने वाला मनीष अच्छे बच्चों की तरह चुपचाप बैठा था। उसकी तो बोलती ही बंद हो चुकी थी। न उस‌ने कुछ पूछा और न ही उसकी जुबान स‌े कोई लब्ज फूटा। हां, वह खुश बेहद था। जैस‌े स‌ारे जहां की खुशियां उसे मिल गई हों। यह स‌ाफ हो चुका था कि मनीष जैसा खुद को दिखाता था असल में वैसा नहीं था।
बस तेज रफ्तार स‌े दौड़ रही थी। प्रिया का दिल तेजी स‌े धड़क रहा था। मनीष का दिल भी तेजी स‌े धड़क रहा था। लेकिन नेहा बिल्कुल नार्मल दिख रही थी। बेफिक्र। बेखौफ। शांत। आज तो लग ही नहीं रहा था कि यह वही नेहा है जिसका ब्लडप्रेशर मनीष को देखते ही बढ़ जाता था।
अचानक बस रुकी और मनीष चुपचाप अपनी स‌ीट स‌े उठा। एक बार मुड़कर नेहा की तरफ देखकर बॉय किया और नीचे उतर गया। नेहा ने आंखों ने उसस‌े क्या कहा, ये स‌िर्फ वही जान पाया। प्रिया बस दोनों को देखे ही जा रही थी। उसके दिमाग में स‌ैकड़ों स‌वाल उठ रहे थे। प्रिया ने फिर उससे कुछ पूछने की कोशिश की, लेकिन नेहा ने उसे चुप रहने का इशारा किया।
थोड़ी देर में उनका भी स्टॉप आ गया। दस पंद्रह मिनट बाद नेहा और प्रिया अपने कमरे में थीं।
अब तो बता क्या खिचड़ी पका रही है तू अपने दिमाग में?
कुछ नहीं। तू चेंज कर ले। फिर आराम स‌े बात करते हैं न। नेहा ने कहा।
अब तो प्रिया यंत्रवत नेहा की हर बात मान रही थी। बिना एक पल गवांए ही वो कपड़े चेंज करके उसके पास फिर आ धमकी।
अब बता। बताती हूं। जरा स‌ांस तो लेने दे। तू तो हाथ धोकर मेरे पीछे ही पड़ गई है। नेहा का मूड अच्छा नजर आ रहा था।
उसे अपना मोबाइल नंबर क्यों दिया। फोन करने को क्यों कहा?
'मैं कल उससे मिल रही हूं'
क्या...? प्रिया को लगा कि शायद उसके कान कुछ गलत स‌ुन रहे हैं।
हां, मैं कल मनीष स‌े मिल रही हूं।
क्या करेगी उससे मिलकर? मुझे तो बहुत डर लग रहा है। मैं भी स‌ाथ चलूंगे तेरे।
तू क्यों डरी जा रही है मैं हूं न स‌ब देख लूंगी। मिल ही तो रही हूं उससे कोई शादी थोड़े कर रही हूं। और हां, तुझे मेरे स‌ाथ चलने की कोई जरूरत नहीं है। नेहा ने खीझकर कहा।
तो क्या उसकी मम्मी स‌े मिलने उसके घर भी जाएगी?
प्रिया ने ताना मारने वाले अंदाज में स‌वाल किया?
हां, जाऊंगी। तुझसे मतलब? नेहा ने तुनक कर जवाब दिया।
प्रिया चुप हो गई।
थोड़ी देर के लिए कमरे में खामोशी छा गई।
इस खामोशी को नेहा ने ही तोड़ा। अरे, बाबा इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। अच्छा ठीक है तू भी चलना स‌ाथ में। अब तो ठीक। खुश...?
दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ीं। कमरे का जो माहौल थोड़ी देर पहले बोझिल हो रहा था उस‌े दोनों की हंस‌ी ने खुशगवार बना दिया।
ध्यान स‌े स‌ुन, तू मेरे स‌ाथ तो जाएगी, लेकिन मेरे स‌ाथ नहीं रहेगी। मैं उससे अकेले ही मिलूंगी। स‌मझी। तू कहीं आस‌पास रहना। ओके?
ओके, बॉस! प्रिया ने चहकते हुए कहा। लेकिन प्लानिंग क्या है तेरी ये तो बता।
बस मैं उससे मिल रही हूं और क्या। अब मिलूंगी तो बात भी करूंगी।
क्या बात करेगी तू उससे? यही तो पूछ रही हूं तुझसे।
तेरी शादी की बात करूंगी।
देख मसखरी मत कर। मैं स‌ीरियसली पूछ रही हूं। बता न।
पहले बात कर लूं फिर बताऊंगी। चल अब खान खाने चलते हैं वर्ना कैंटीन बंद हो जाएगी। दोनों को बात करते-करते काफी देर हो चुकी थी।
नेहा और प्रिया कैंटीन स‌े खाना खाकर लौटीं तो घड़ी रात के नौ बजा रही थी। नौ बजे की बात स‌े फिर प्रिया की आंखों के स‌ामने मनीष का चेहरे घूमने लगा। स‌ुबह नौ बजे ही तो फोन करने वाला हो वो प्रिया को। पता नहीं क्या करने वाली है प्रिया? यही स‌ोचते-स‌ोचते प्रिया ने नेहा की तरफ देखा, नेहा स‌ो चुकी थी।
देखो महारानी को कैसे बेफिक्र होकर स‌ो रही है और एक मैं हूं जो इस‌के बारे में स‌ोच-सोच कर अपना दिमाग खाली कर रहूं हूं।
प्रिया एक मैगजीन उठाकर पढ़ने की कोशिश करने लगी। लेकिन दिमाग में नेहा और मनीष ही घूमते रहे। इस‌ी तरह प्रिया की भी आंख लग गई।
आंख तब खुली जब स‌ुबह नेहा ने उसे झिंझोड़ा कितना स‌ोएगी? उठ चलना नहीं है क्या?
कहां? अरे मनीष स‌े मिलने औऱ कहां?
बड़ी बेताब हो रही है उससे मिलने के लिए....कहीं तेरा दिल तो नहीं आ गया उस पर। प्रिया ने चुहलाबजी करते हुए नेहा के गाल पर किस कर लिया।
चल-चल उठ ज्यादा प्यार मत दिखा। तैयार हो नहीं तो देर हो जाएगी।
अरे, अभी तो उसका फोन भी नहीं आया?
आएगा बबा आएगा। नौ बजे फोन करेगा न।
तू इतने दावे के स‌ाथ कैसे कह स‌कती है कि वह फोन करेगा ही? प्रिया को स‌ब कुछ बड़ा आश्चर्यजनक लग रहा था।
कह रही हूं न कि करेगा तो करेगा। नौ तो बजने दे।
प्रिया जल्दी-जल्दी तैयार होने लगी। उसकी नजर घड़ी पर ही टिकी हुई थी। कब नौ बजे और कब मनीष का फोन आए। वह भी तो स‌ुने क्या बात करती है नेहा उससे, कहां मिलने को कहती है उस‌े।
तभी नेहा के मोबाइल की घंटी बजी। नेहा ने फोन उठाया।
अरे, तू क्यों परेशान हो रही है, उसका फोन नहीं है मकान मालिक का। कह रहा था कि कल टंकी का नल खुला छोड़ दिया था।
अभी तो नौ नहीं बजे हैं। इंतजार कर थोड़ा।
कहां हो मैडम? नौ बज चुके हैं। जरा घड़ी पर नजर तो डालो।
इधर नेहा ने घड़ी की तरफ देखा और उधर उसके मोबाइल की घंटी फिर बज उठी।
नेहा ने फोन रिसीव किया। फोन मनीष का ही था।
उड्डपी में आ जाओ। कितनी देर में पहुंचोगे?
ठीक है। 11 बजे मैं भी पहुंच जाउंगी।
नेहा और प्रिया तय वक्त पर उड्डपी पहुंच गईं। नेहा अंदर चली गई और प्रिया बाहर ही उसका इंतजार करने लगी।
नेहा ने अंदर प्रवेश किया तो देखा कि एक टेबल पर मनीष पहले स‌े उसका इंतजार कर रहा है। नेहा जाकर निसंकोच उसके पास बैठ गई।
'अब बताओ क्या बात करना चाहते हो मुझसे' नेहा ने कहा।
'मैं तुमस‌े प्यार करता हूं'
तुमसे शादी करना चाहता हूं
लेकिन मैं तो तुमसे प्यार नहीं करती?
'क्या कमी है मुझमें? मेरा विश्वास करो, मैं तुम्हें बहुत खुश रखूंगा।'
विश्वास-अविश्वास की कोई बात ही नहीं है मनीष। मैंने कहा न मैं तुमसे प्यार नहीं करती। तो तुम ही बताओ...शादी जैसा फैसला मैं कैसे कर स‌कती हूं?
मनीष चुप हो गया।
अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जी नहीं पाऊंगा।
लगता है तुम फिल्में बहुत देखते हो। फिल्म और हकीकत में फर्क होता है मनीष। स‌मझने की कोशिश करो।
मैं जानता हूं कि फर्क होता है लेकिन मैं जो कह रहा हूं वह हकीकत है।
अगर मैं कहूं कि मैं किसी और स‌े प्यार करती हूं तो?
मैं कैसे यकीन कर लूं? मुझे नहीं लगता तुम्हारी जिंदगी में कोई है
क्यों तुम्हे ऎसा क्यों लगता है। क्या मेरा कोई ब्वायफ्रैंड नहीं हो स‌कता?
नहीं, मेरे कहने का यह मतलब नहीं है।
मेरा मतलब है कि इतने दिनों में मैंने तो कभी तुम्हारे स‌ाथ किसी लड़के को नहीं देखा।
तुम्हें क्या मालूम, तुमने मुझे आफिस के रास्ते और बस में ही तो देखा है।
नहीं, मैंने तुम्हें तुम्हारे हॉस्टल तक देखा है।
अच्छा, तो तुम मेरा पीछा भी कर चुके हो?
मनीष थोड़ी देर चुप रहा। फिर बोला, मैं स‌मझ रहा हूं तुम मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए ऎसा कह रही हो।
आखिर क्या कमी है मुझमें?
तुममें कोई कमी नहीं है मनीष। लेकिन आई एम ऑलरेडी इंगेज्ड।
कौन है वो?
वो बचपन में मेरे स‌ाथ पढ़ता था। परसों रात पांच स‌ाल बाद उसने मुझे फोन किया और पहली बार में ही प्रपोज कर दिया।
और तुमने उसे हां भी कह दिया।
हां,
क्या तुम भी उसे प्यार करती हो।
हां, हम दोनों अच्छे दोस्त थे, लेकिन मैंने उससे कभी नहीं कहा।
तुम्हें मेरा खयाल नहीं आया?
आया था, लेकिन मेरे लिए इससे बड़ी बात क्या हो स‌कती है कि मैं जिसे बचपन स‌े पस‌ंद करती हूं वह मुझे मिल गया।
अभी कहां है वो?
वो बनारस में रहता है। थोडी देर में वो यहां पहुंचने वाला है। खुद ही मिल लेना उससे।
तुम स‌च कह रही हो? मनीष को नेहा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था।
हां मैं स‌च कह रही हूं।
मनीष फिर चुप हो गया।
नेहा ने अपने मोबाइल स‌े प्रिया को कॉल किया।
प्रिया अंदर आकर उनके स‌ाथ बैठ गई।
तुम दोनों स‌ाथ आई थी?
हां, प्रिया ने जवाब दिया।
अच्छा प्रिया तुम बताओ, क्या नेहा स‌च कह रही है, क्या इसका कोई ब्वायफ्रैंड है।
प्रिया ने नेहा की तरफ घूरकर देखा....लेकिन इससे पहले कि वो कुछ बोल पाती नेहा ने ही बोल पड़ी, अरे प्रिया उसके बारे में कुछ नहीं जानती।
ऎसा कैसे हो स‌कता है? मनीष उसकी बातों पर विश्वास करने को तैयार ही नहीं था।
तभी एक लड़का उनकी टेबल की तरफ आया। उसे देखते ही नेहा खड़ी हो गई और उछलकर उसके गले स‌े लिपट गई।
मनीष और प्रिया दोनों के लिए यह वक्त स‌रप्राइज्ड होने का था।
नेहा ने उस लड़के स‌े पहले मनीष का परिचय कराया...मनीष यह है राजेश..और राजेश यह है मनीष और यह है मेरी प्यारी स‌हेली प्रिया।
प्रिया ने रूठने के अंदाज में नेहा की तरफ देखा। जैसे आंखों ही आखों में कहना चाहती हो कि तुमने राजेश के बारे में मुझे नहीं बताया। अपनी स‌बसे पक्की स‌हेली को नहीं बताया।
मुझे पता है मनीष तुम्हें मुझसे मिलकर खुशी नहीं हुई होगी, क्योंकि मैं तुम्हारी फीलिंग स‌मझ स‌कता हूं। मैं तुम्हें नेहा तो नहीं दे स‌कता लेकिन हम दोनों अच्छे दोस्त तो बन ही स‌कते हैं। राजेश स‌ब कुछ एक ही स‌ांस में बोल गया।
ओके, राजेश। ओके प्रिया। अब मैं चलता हूं। अब मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा। बॉय नेहा, बॉय राजेश, बॉय प्रिया। यह कहकर मनीष वहां स‌े निकल गया। किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।
अब चलें प्रिया? नेहा ने पूछा।
हां, चलो। अभी तो मुझे तुमसे बहुत स‌ारी बातें करनी हैं
'मैं जानती हूं तुम्हें क्या बातें करनी है'
आज तो स‌ारी रात तू झगड़ने ही वाली है मुझसे।
झगड़े वाली बात ही है। इतनी बड़ी बात तुमने मुझे नहीं बताई। राजेश के बारे में मुझे नहीं बताया।
अरे, बबा! कल तक ऎसा कुछ था ही नहीं तो क्या बताती खाक?
अच्छा अब चल, कमरे में चलकर झगड़ लेना जितना झगड़ना हो। चलो राजेश, तुम्हें तो आज ही बनारस लौटना भी है।
हां, चलो! तीनों स‌ाथ चल दिए। प्रिया की आंखों में मनीष का मायूस चेहरा घूम रहा था। लेकिन क्या हो स‌कता है...यही तो जिंदगी है। प्रिया ने खुद को स‌मझाने की कोशिश की और उनसे स‌ाथ अपने भी कदम बढ़ा दिए। (समाप्त)

12 comments:

L.Goswami ने कहा…

sundar kahani.padh kar samne jiwant ho uthi.aage bhi likhte rahen

बालकिशन ने कहा…

ये तो बॉस "खोदा पहाड़ निकली चुहिया" वाली बात हो गई.

राकेश जैन ने कहा…

sundar !!

राकेश जैन ने कहा…

sundar !!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद दोस्तों, दरअसल यह कहानी स‌च्ची है। इसका क्लाइमेक्स भी स‌च्चा है, स‌िर्फ कहानी के पात्रों को बदला गया है और कुछ स‌ंवादों का स‌हारा लिया गया है।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया कहानी.

Rajesh R. Singh ने कहा…

काफी बढ़िया कहानी है बहुत अच्छा लिखा गया है .

Prashant Jain ने कहा…

acchi kahani hai ek bar shuru karne ke bad puri khatam karke hi hata hu

editor ने कहा…

Kahaani umda hai. Anjaam zarur kuchh mukhtalif sa hai...

चिराग जैन CHIRAG JAIN ने कहा…

achchhi kahaani hai bhai saahab

itna kaise likh lete ho?

-www.chiragjain.com

Unknown ने कहा…

kahani to bahut samanay thi lekin lekin pathak ko bandh ke rakhne ka dum tha isme.

बेनामी ने कहा…

its really nice to read.... :-)
uttam rachna..!! :-)

 
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