सोमवार, 11 फ़रवरी 2008

तुम्हारा नाम क्या है?...(3)

अगला दिन और फिर वही डर। कहीं वह लड़का पीछे न पड़ जाए।
लगता है इस बस का इंतजार करने के सिवा उसके पास कोई काम-धाम ही नहीं है। नेहा ने प्रिया की राय जाननी चाही।
हां, बड़े बाप की बिगड़ैल औलाद लगता है। हां कर दे तेरी तो लाइफ बन जाएगी। प्रिया ने फिर चुहलबाजी की।
तू चुप रहेगी या दूं एक घुमा के। नेहा ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा। क्योंकि यह बात कहते हुए उसके होठों पर भी हंसी तैर रही थी।
अभी तक बस नहीं आई...? लगता है आज जरूर लेट होंगे। कुछ देर चुप रहने के बाद नेहा ने आशंका जतायी।
इससे पहले कि प्रिया कुछ बोल पाती बस उनकी आंखों के सामने थी।
दोनों बिना एक पल गंवाए बस में सवार हो गईं।
लेकिन बस में दाखिल होते ही नेहा को जैसे सांप सूंघ गया। एक बार तो उसे लगा कि चलती बस से कूद जाए। वो चुपचाप आकर सीट पर बैठ गई। और प्रिया भी।
दरअसल वह लड़का आज पहले से ही बस में मौजूद था। नेहा को देखते ही वह उसके पास आकर खड़ा हो गया। नेहा लगातार खिड़की से बाहर की ओर देखे जा रही थी। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। एक बार तो उसे लगा कि वह आज उसे फटकार ही दे। लेकिन कुछ सोचकर वह चुप रह गई। नेहा चुप थी। प्रिया भी चुप थी। वह लड़का भी चुप था।
तभी खामोशी टूटी।
आज तुमने वो पिंक वाला सूट क्यों नहीं पहना? वह तुम पर बहुत फबता है। उस लड़के ने सवाल किया जिसमें उसकी राय भी शामिल थी।
नेहा मन ही मन बुदबुदाई। ये तो हद हो गई। वह आज अपना गुस्सा रोक नहीं पाई। सीट छोड़कर खड़ी हो गई।
तुम होते कौन हो, यह पूछने वाले कि मैंने ये क्यों नहीं पहना वो क्यों नहीं पहना। मेरी जो मर्जी मैं पहनूं। तुम यहां से जाते हो या....? प्रिया ने उसे बीच में ही रोक दिया। अरे यार, दिमाग खराब कर रखा है इतने दिनों से। कंटक्टर गाड़ी रुकवाओ। मैंने कहा न, गाड़ी रुकवाओ अभी। हमें यहीं उतरना है। नेहा की आवाज में गुस्सा था और रोष भी।
बस में शोर-शराबा देख ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। नेहा तुरंत नीचे उतरी। प्रिया भी उसके पीछे दौड़ी...और वो लड़का भी।
मेरी बात तो सुनो, मैं तुम्हें अपने मम्मी-पापा से मिलवाना चाहता हूं।
तुम एक बार उनसे मिल तो लो। प्लीज।
प्रिया ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।
बस के यात्री अभी भी उनकी ओर ही ताक रहे थे। कोई हंस रहा था कोई चुपचाप देख रहा था तो कई लोग कमेंट करने से भी बाज नहीं आ रहे थे।
'भाभी को मना लेना' भाई, तभी किसी की आवाज आई।
बस चल पड़ी थी। नेहा का वश करता तो उस कमेंट करने वाले को नीचे खींचकर चप्पल से मारती। लेकिन गाड़ी जा चुकी थी।
बड़े बेशर्म हो तुम। मैंने कह दिया न मुझे तुमसे कोई लेना देना नहीं है। फिर क्यों मेरे पीछे पड़े हो। प्लीज, मुझे बख्श दो और मुझे अपने रास्ते जाने दो। तुम अपने रास्ते जाओ। नेहा ने खीझते हुए कहा।
मैं चला जाउंगा। लेकिन मेरे सवाल का जवाब तो दो। लड़के ने बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से सवाल किया। ((जारी...)

3 comments:

उन्मुक्त ने कहा…

कहानी की रोचकता बढ़ती जा रही है।

mamta ने कहा…

अगली कड़ी का इंतजार रहेगा। कहानी अच्छी लग रही है।

बेनामी ने कहा…

यह तुम मुझे अपनी कथा सरिता में कहाँ बहा ले जा रहे हो?

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | Best Buy Coupons