सोमवार, 16 जुलाई 2007

अपने-अपने भंवर


अच्छाई, बुराई, नैतिक-अनैतिक के
सवाल रूपी दोराहे पर खड़ा
वैचारिक मतभेद और
मानसिक द्वंद रूपी चौराहे की भीड़ में उलझा
सत्य-असत्य के आक्षेपों से जूझता
अनिश्चितताओं के भंवर में डूबता-उतराता
तीक्ष्ण अकाट्य तर्कों से
कतरा कर गुजरने के प्रयास में है व्यक्ति
व्यक्ति, जो कहता कुछ है, करता कुछ है
पर हो कुछ और जाता है
व्यक्ति जो गिरता जा रहा है
निर्जन, अंधेरी, भयावह खाई में
घिरता जा रहा है
क्षुद्र मानसिक, सांसारिक स्वार्थों के
अनजान भंवर में
भंवर विचारों का है, भंवर संस्कारों का है
सभी का अपना अंर्तद्वंद है
अपने-अपने भंवर हैं।
कोई प्यार के गागर में
तो कोई नफरत के सागर में
आकंठ डूब जाना चाहता है
शायद इसी माध्यम से मोक्ष पाना चाहता है
क्या यह मात्र एक व्यक्ति का मानसिक उद्देग है?
यकीनन नहीं...

आम आदमी की आंखों से
सपने भी चुरा लेने को तत्पर
यह आज के तथाकथित सभ्य लोगों की वास्तविकता है
जो अग्रसर हैं विकास में और चढ़ चुके हैं ऊंची सीढ़ियां
छूकर असीम ऊंचाइयां, नाप चुके हैं अनंत गहराइयां
लेकिन, ये क्या नाप पाए हैं
किसी के अंतर्मन को
भांप पाए हैं किसी असहाय दिल के
दुखद रूदन को?
समझ पाए हैं
किसी लाचार के करुण क्रंदन का अर्थ?
या फिर पढ़ पाये हैं
किसी की सूनी आंखों की भाषा?
बेशक नहीं...।
तो फिर किस चिकित्साशास्त्र की बात करते हैं?
अरे, दिल के भीतर जाने से डरते हैं
और दिलों का इलाज करते हैं...?
(1997)

1 comments:

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

सामाजिक बिंदुओं पर आपकी रचनाएं अच्छा प्रभाव छोड़ती हैं।

 
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